Monday, February 27, 2012

यह 2G घोटाले से देश को कितना घाटा हुआ?

[श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की यह अतिथि पोस्ट है। पोस्ट क्या है, एक पहेली है। आप अपना दिमाग लगायें, टिप्पणी करें और इंतजार करें कि श्री विश्वनाथ उनपर क्या कहेंगे। मैं कोई हिण्ट या क्ल्यू नहीं दे सकता - मुझे खुद को नहीं मालुम कि सही उत्तर क्या है!]

यह 2G घोटाले से देश को कितना घाटा हुआ?

माननीय कपिल सिब्बल जी कहते है जीरो (०) करोड।

अन्य लोग कहते हैं १,७०,००० करोड।


किसपर यकीन करूँ?

अच्छा हुआ कि हम इंजिनीयर बने और चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट नहीं बने।

एक किस्सा सुनिए।

इतने सालों के बाद हम एक छोटी सी अकाउण्टिंग समस्या का सही हल नहीं दे सके । हमें शर्मिन्दा होना पडा और अपने आप को कोस रहें हैं। तो इतने बडे घोटाले से हुए नुकसान का अनुमान यदि कोई नहीं कर सका तो कोई अचरज की बात नहीं।

आप शायद सोच रहे होंगे कि बात क्या है?

लीजिए, सुनिए मेरी एक काल्पनिक कहानी।

हाल ही में मैंने एक पुस्तक खरीदी।

एक दोस्त ने मुझ से कहा।

"तुम्हारी यह पुस्तक बडे काम की है। कितने में खरीदी?" मैंने उत्तर दिया: "७० रुपये।"

दोस्त ने कहा: "अरे भाई मुझे यह पुस्तक बहुत पसन्द है। मुझे दे दो। अपने लिए तुम दूसरी खरीद लेना। इस पुस्तक की कीमत मैं तुम्हें दे देता हूँ।"

यह कहकर मेरे दोस्त ने मेरे हाथ में एक सौ का नोट थमा दिया और ३० रुपये वापस लेने के लिए रुका।

मेरे पास छुट्टे पैसे नहीं थे। पास में एक दूकानदार के पास जाकर उसे यह सौ का नोट देकर उससे दस रुपये के दस नोट लेकर, अपने दोस्त के ३० रुपये वापस किए।

दोस्त चला गया। उसके जाने के बाद, दूकानदार ने मेरे पास आकर कहा, "यह सौ का नोट तो नकली है!"। मैंने परेशान होकर, उससे वह नकली नोट वापस  लेकर, अपनी जेब से एक असली १००रु का नोट उसे देकर उसे किसी तरह मना लिया। नकली नोट को मैंने फ़ाडकर फ़ेंक दिया।

अब सवाल है: मेरा कितना घाटा हुआ?

७० ? १००?, १३०? २००? या अन्य कोई रकम?

अच्छी तरह सोचने के बाद मैंने इनमे में से एक उत्तर चुना। वह गलत निकला। कुछ देर बाद एक और उत्तर दिया। वह भी गलत निकला।

आज मुझे सही उत्तर मिल गया और तर्क भी।

क्या आप या अन्य कोई मित्र बता सकते हैं सही उत्तर क्या है और कैसे आपने तय किया?

आशा करता हूँ कि इस दुनिया में मैं अकाउण्ट्स के मामले में अकेला बुद्धू नहीं हूँ और अन्य साथी भी मिल जाएंगे।

शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

[caption id="attachment_5490" align="alignleft" width="180" caption="गोपालकृष्ण विश्वनाथ।"][/caption]

39 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अकाउंटिंग के हिसाब से विश्वनाथ जी को 100 रुपए का घाटा हुआ।

आशीष श्रीवास्तव said...

आपके मित्र ने ७० रूपये की पुस्तक और ३० रूपये शेष: प्राप्त किये : अर्थात आपसे १०० रूपये मूल्य की चीजें प्राप्त की मुफ़्त ।

दुकानदार को आपने जो सौ रुपये दिये उसके ७० रू आपके पास शेष है तथा ३० रूपये आपने अपने मित्र को दीये है।

आपका कुल मौद्रिक नुकसान १०० रूपये का है( पुस्तक का मूल्य ७० रूपये तथा ३० रूपये) लेकिन एक बड़ा नुकसान जो अमूल्य है वह है मित्र की विश्वसनीयता का।

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

सरल उत्तर - आपने 100 का नोट फाड़ा तो घाटा भी सौ का ही होना चाहिये। हाँ किताब के डेप्रीसियेशन, नई किताब की कीमत में अंतर या उसका ऑउट ऑफ़ स्टॉक होना आदि अन्य घटक हैं जो उत्तर को प्रभावित कर सकते हैं। वैसे आजकल का उत्तर आपकी जानकारी से अधिक आपके पोलिटिकल इंक्लिनेशन/अफ़िलियेशन पर निर्भर करता है। हो सकता है कि काला धन, सरकारी कर्ज़ और आतंकवादी गतिविधियों को थोक में माफ़ करने वाली सरकारें नकली नोट चलाने वालों को भी माफ़ करने लगें और संतुलन बनाये रखने के लिये उन्हें नकारने/फाड़ने वालों को सज़ा देने लगें तब घाटे में बढोत्तरी स्वाभाविक है।

Kajal Kumar said...

देखा ! आम आदमी मंत्री नहीं बन सकता . उससे 200 रूपये का तो हिसाब रखा नहीं जाता , उसे उस रकम का पता कैसे लगेगा जिसे गिनने से पहले वह ज़ीरो गिनने के लिए ही कोमे लगा लगा कर गिनना शुरू करता है...

Kajal Kumar said...

70 की किताब के साथ 30 रूपये भी ले गया. सौ का नोट भी फड़वा दिया...

incitizen said...

आप के उत्तर की प्रतीक्षा है. वैसे घाटे के भी अपने अपने पैमाने हैं.

प्रवीण पाण्डेय said...

घाटा तो १०० का ही लग रहा है...हम होते तो किताब ऐसे ही पढ़ने को दे देते, ७० से अधिक घाटा नहीं होता...

राहुल सिंह said...

मित्र को कोई घाटा नहीं, दुकानदार को भी नहीं. सौ का नोट नकली था, वह नष्‍ट होना था, जिसने भरपाई की (आपने) नुकसान उसका.
नोट सौ का फटा तो नुकसान भी सौ का.
सहज बुद्धि का तो यही जवाब बनता है. इससे बेहतर जवाब के लिए किसी न किसी शास्‍त्र का सहारा लेना पड़ेगा.
शास्‍त्रीय बहस में घाटे (हार) में वही रहेगा, जो छोटा पंडित हो, जीत बड़े पंडित की होगी.
फैसला तो वही सही, जो साबित हो सके.

अनूप शुक्ल said...

भौत घाटा हुआ जी! भौत! कोई गणित सूझ नहीं रहा! :)

सलिल वर्मा said...

सबसे बड़ा घाटा तो ये हुआ कि इज्ज़त गयी, दुकानदार ने जालसाज समझा और बड़ी देर तक सच्चा होने पर भी मन धिक्कारती रहा होगा.. इंटरव्यू में एक चार्टर्ड अकाउन्टेंट से सवाल पूछा गया कि सौ और सौ मिलकर कितने होते हैं.. उसका जवाब था (कान के पास मुंह ले जाकर)-बनाने कितने हैं??

PN Subramanian said...

टेंशन नहीं लेने का है. भूल जाएँ कि ऐसा कुछ हुआ था.

Gyanendra said...

घाटे का आकड़ा जो मेरी समझ में आता है, वो ये है......
आपके पास बैलेंस में एक ७० रु. की किताब और ३० रु. थे.
उसके बदले जो १०० रु. मिले वो तो बेकार थे. तो ये तो रहा १०० रु. का नुकसान.
आपको वापस उस बैलेंस पेर पहुँचने के लिए १०० रु. और होने चाहिए.
तो टोटल नुकसान (१०० + १००= २००) का हुआ.

Keshav Mishra said...

His friend took the book away and Rs 30 and in return he gave fake Rs 100. So all together, it's Rs100 loss.

Gopalji Gupta said...

घाटा चाहे कितने का भी हुआ हो मगर 100 का जाली नोट फाड़ के आपने अनगिनत रुपयों की बचत की :-)

Gyandutt Pandey said...

हा! हा! ये सही लगता है! :lol:

rakesh ravi said...

before meeting your friend you had: A book(70 Rs)
at the end: 70(10x7 given by shopkeeper)-100(you gave to shopkeeper)-book(70 Rs)
Net loss= 100 Rs. (considering you don't mind and it does not involve extra expenditure in buying a new book)

Vishwnath ji and gyandutt ji thank you for this mind twister.

Shiv Kumar Mishra said...

मेरे हिसाब से तो आपको दो सौ रूपये का घाटा हुआ.

Gyandutt Pandey said...

इसे किसकी टिप्पणी माना जाये - ब्लॉगर की या चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट की?

Shiv Kumar Mishra said...

यह ब्लॉगर की टिप्पणी है.

चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट इसमें उसी किताब को वापस पाने के लिए आने-जाने का किराया, किताब को वापस पाने में लगे समय की कीमत, दूकानदार के सामने हुई किरकिरी के लिए गुडविल की क्षति, नोट फाड़ने में लगे समय की कीमत, और इसके साथ और तमाम बातों का कॉस्ट जोड़ देगा:-)

Himanshu Gupta said...

नोट जितने का फटा उतना नुकसान, जिससे फटा उसका नुकसान ( बन्दूक किसी भी हो, फिंगरप्रिंट जिसके हो पिक्चर में अपराधी वही होता है). सीधा सा हिसाब

रही बात २ जी की तो सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ, ये तो फ्री का आइटम था सरकार पैसवासूली ( मोनोपॉली /दादागिरी के बलबूते ) पर उतारू थी, जो मिला उतना भी नहीं मिलना चाहिए था.
सड़क पर आपको १०० का फटा हुआ नोट पड़ा मिले जिससे बदले बट्टे वाला आपको ६० रूपए देता है तो आपका फायदा ६० का है नाकि ४० का घाटा.

बाकी तो सब राजनीतिक स्यापा !!!

cnu.pne said...

हजूर यह तो आपकी कल्पना है तो नुक्सान कैसा?
नुक्सान तो हमारा हुआ है जो दिमाग ख़राब कर बैठे हैं

मुझे भी खयाली पुलाव बनाने का नुस्का बतला दीजिये

vishvanaathjee said...

सभी मित्रों को मेरा धन्यवाद।
सही उत्तर हम एक या दो दिन में बता देंगे
रोचक बात यह है कि इतने सारे पढे लिखे लोग (इस सूची में मेरा नाम भी जोड दीजिए) एक सीधा सादा सवाल का इतने सारे जवाब कैसे दे रेहे हैं?
इस सवाल को कुछ याहू ग्रूपों में भी पूछा था और ज्ञानजी के ब्लॉग की कडी भी दी थी
सोचा था कि टिप्पणी इसी ब्लॉग में करेंगे पर इन मित्रों नें मुझे अपने जवाब ईमेल किए
उनका ईमेल पता हटाकर और उनके नाम को संक्षिप्त करके उन लोगों के जवाबों को यहाँ पेश कर रहा हूँ
यह जवाब आज सोमवार को रात नौ बजे तक प्राप्त हुए हैं

Comments from yahoo forums

From:
"BSK"
To:
"'G Vishwanath'"

The answer is Rs 100 is the loss. Cost of book + Rs 30 given to the friend
=================================

Re: A simple accounting puzzle
Monday, February 27, 2012 5:44 PM
From:
"SB"

To:
"G Vishwanath"
HI,

You gave your friend book worth Rs.70/-, and though you could have returned the fake Rs. 100/- note with the said friend, you chose to tear and throw it.

Hence you actually lost Rs. 170/-.

Hope this is correct!!!

Best Regards.

B.S.
=====================
Your loss-
Fake note torn off,amount given to shop keeper =100
Book given to friend = 70
Cash balance given to friend = 30
Total loss =200

V.V.S
====================
From: "PR"
To: "G Vishwanath"
130 rs ??? the 100 u exchanged with shopkeeper plus the 30 u returned to the friend ---

am i correct ??

PR
=====================

Re: A simple accounting puzzle
Monday, February 27, 2012 7:31 PM
From: "O V S
To: "G Vishwanath"

I guess it is simple. You tore away a false note which you thought and accepted as geniuine and hence you lost Rs 100 ONLY.

YS
OVS
==================
Re: A simple accounting puzzle
Posted by: "S V R
Mon Feb 27, 2012 3:33 am (PST)


Dear GV,

It is a very interesting puzzle. I am also not an accountant. But I feel
your loss was Rs.170 - Rs.70/- towards the cost of the book you gave your
friend, and Rs.100/- you gave to the shop keeper. Hope I am not making a
fool of myself.

Regards,

S..V.R
================
Re: A simple accounting puzzle
Posted by: "si"
Mon Feb 27, 2012 3:35 am (PST)


Dear Sri. G.Vishwanath,
You gave genuine Rs30/ and received fale Rs100/ and hemce┬аyou lost Rs 130/. Am I right?
Regards,
svs
================

Re: A simple accounting puzzle
Monday, February 27, 2012 8:40 PM
From: "J"
To: "G Vishwanath"
170.00
===================

vishvanaathjee said...

लीजिए, एक और उत्तर.
अभी अभी प्राप्त हुआ।
तर्क पर भी ध्यान दीजिए!

RE: A simple accounting puzzle
Monday, February 27, 2012 9:10 PM
From:"ak"

Dear All
Total inflow is Rs70/ which the shopkeeper gave you as change.Outflow is Rs30/ you gave to the friend plus the genuine note of Rs 100 / which you gave to the shopkeeper plus Rs 70/- which you orinally spent for the book.The inflow is Rs 70/- and the outflow is Rs 200/-- So the loss is rs130/-
ak

vishvanaathjee said...

यह सबसे मज़ेदार टिप्पणी!

Good evening Sir,

I have worked out the answer and please let me know hum tik hai ke nahi.

kitab ka moolya Rs.70.00

dost ne diya Rs.100.00

dost ko vapas kiya Rs.30.00

हisaab barabar

dost ko diya hua note naqli Rs.100.00

phir se asli note dukaandaar ko diya Rs.100.00

naqli note maine faad diya

ab mera asli 100 ka note aur mera kitab mujse gaya

uttar hai Rs.170.00 (clue 2g scam 1,70,000 crores)

let me whether the answer is correct or wrong.

also if wrong your correct answer with reasoning.

Regards,

R a.r.

मनोज कुमार said...

ज़िन्दगी के हिसाब किताब में कभी बलिन्स निगेटिव नहीं होता।

vishvanaathjee said...

लीजिए, दो और

Re: A simple accounting puzzle
Monday, February 27, 2012 9:54 PM
From: "PR"
To: "G Vishwanath"

pls add the 70 rs of teh book too-- so 200 rs in total :))) it suddenly struck me now :)

pr

On Mon, Feb 27, 2012 at 6:16 PM, PR wrote:

130 rs ??? the 100 u exchanged with shopkeeper plus the 30 u returned to the friend ---

am i correct ??

pr
==================
Re: A simple accounting puzzle
Monday, February 27, 2012 10:37 PM
From:"nr"

Guess your total loss is Rs.170/-

N R
=================

vishvanaathjee said...

Three more responses received are apended below
For the first time someone is suggesting a new figure of Rs 60/-
Hopefully these are the last of the responses and there will be no more.
Please await the correct answer with reasoning and my comments on wrong answers hopefully by tonight or latest by tomorow noon.
Regards
GV
===========
Re:  A simple accounting puzzle

I would say the answer is 100 as that is the amount which was torn off. 

BC
Sent from my iPhone


======================
Re:  A simple accounting puzzle

Your loss is Rs.60. You lost Rs.100 to shopkeeper. You lost Rs.30 to your friend. Your total loss is Rs.130. You kept with you Rs.70. So the net loss is Rs.130 - Rs.70 = Rs.60
Regards,
R.S
=========================
Re:  A simple accounting puzzle

Dear GVji, 
I think the total loss would amount to Rs. 200
Rs. 70 (price of the book)+ Rs. 30 (amount given to the friend)+Rs. 100 (amount given to the shopkeeper)
I am pretty sure I am making a fool of myself too!!
Regards
ST
=======

Indian Homemaker said...

70/- for the book.
100-70 =30/- Given to the friend.
100 - given to the shopkeeper.
Now I will check my answer.

Indian Homemaker said...

Asked my mother, she says Rs 200/-
Book of Rs 70/- + 30/- to the friend, and then 100 Rs to the shopkeeper.

रवि said...

राजा (ओं) के मुताबिक - लाभ
सिब्बल (ओं) के मुताबिक - शून्य लाभ / शून्य नुकसान
विपक्ष के हिसाब से - 200रु. नुकसान
नासमझ जनता की समझ से - 100रु नुकसान
पढ़े लिखों की समझ में - 130 रु नुकसान
लिस्ट जारी है...
:)

Gyandutt Pandey said...

हा! हा! हमारा जवाब 140रु के घाटे पर लॉक कर दें? :lol:

vishvanaathjee said...

सभी मित्रों को मेरा धन्यवाद!
आज मुझे सांत्वना मिली।
हम अकेले बुद्धू नहीं, हमें बहुत से साथी मिल गए।

यह प्यारी पहेली मुझे मेरे मित्र विश्वनाथ शर्माने,( जो न्यू ज़ीलैंड में बसे हैं) भेजी थी और मैं भी तर्क (या, यूँ कहिए, कुतर्क) की जाल में फ़ंस गया।

सबसे पहले मेरी स्वभाविक सोच थी :
जरूर यह सीधा सादा मामला नहीं है।
कोई चाल जरूर है।
सौ रुपये कहने वाले तो बहुत मिल जाएंगे।
हम इतनी आसानी से नहीं फ़ंसेंगे।

जरूरत से कुछ ज्यादा सोचकर मैंने यह तर्क अपनाया।
मेरी एक ७० रुपये की किताब तो गई!
ऊपर से कम्बख्त ने ३० रुपये और एंठ लिये।
बस इतना ही नहीं, अपनी जेब से एक असली १०० का नोट भी खो दिया
तो मुझे २०० का चूना लगा, सौ का नहीं जैसा आम लोग सोचते होंगे!

इस उत्तर को शर्माजी को भेजने के बाद, तुरन्त खयाल आया
अरे! यह तो गलत है। मेरे पास दोस्त को तीस रुपये देने के बाद ७० रुपये तो बचे हैं। तो नुकसान तो १३० का हुआ न?

मुजे अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करने का एक और अवसर मिल गया और शर्माजी को लिख कर कहा कि घाटा २०० नहीं पर केवल १३० का है। शाबाशी का इन्तजार करते दो दिन बीत गये।

सही उत्तर मुझे कल मिला था और हमें शर्मिन्दा होना पडा।

====================
अब सुनिए सही उत्तर।
१००/-
जी हाँ, केवल सौ रुपये।
बाकी सभी जवाब गलत हैं
=====================

दिनेशराय द्विवेदीजी को मेरी बधाई।
सुबह सुबह पाँच बजे सबसे पहले उनके ताजे मस्तिष्क से यह सही जवाब निकला था।
कुछ अन्य साथी भी सही जवाब दे चुके हैं और उनको भी बधाई।
कई मित्र तो चतुर निकले। उन्होंने बडी चालाकी से टिप्पणी की पर कोई उत्तर न देकर बच निकले!

तर्क सीधा सादा है, नकली नोट का मूल्य = घाटा
इसे और अच्छी तरह समझने के लिए आप आँखों में धूल झोंकने वाली बातों को नजरंदाज़ कीजिए।
अपने आप से पूछिए, केवल दो सवाल
इस घटना से पहले मेरे पास क्या था?
इस घटना के बाद मेरे पास क्या बचा?

इनमें अंतर ही घाटा है।
मेरे पास जेब में १०० का असली नोट था जिसे मैंने दूकानदार को नकली नोट के बदले में दिया था।
मेरे पास एक किताब थी जिसका मूल्य था ७० रुपये
कुल मिलाकर मेरे पास १७०/- थे

"दोस्त" के चले जाने के बाद मेरे पास किताब न रही पर ७० रुपये के असली नोट बचे थे

तो घाटा था १७० - ७० = १००/-
बस इतना ही कहना काफ़ी है। ज्यादा सोच या तर्क की आवश्यकता नहीं है। बाकी सभी बातों का कोई महत्व नहीं और आपके मन को भटकाने के लिये जोड दिए गए हैं।

आज सोच रहा हूँ कि जब लोग कुछ ज्यादा पढ लिख लेते हैं या ब्लॉग पर कुछ ज्यादा टिप्प्णी करते हैं तो आम समझ में कमीं महसूस करते हैं। इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण मैं स्वयं हूँ।

शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

Gyandutt Pandey said...

आप सही हो सकते हैं (और अब यह मैं कह सकता हूं कि पोस्ट लिखते समय मैं भी यह आकलन कुछ जद्दोजहद के बाद कर पाया था)। पर मुझे शिवकुमार मिश्र की पहले की गई टिप्पणी का अंश दमदार लगता है -
चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट इसमें उसी किताब को वापस पाने के लिए आने-जाने का किराया, किताब को वापस पाने में लगे समय की कीमत, दूकानदार के सामने हुई किरकिरी के लिए गुडविल की क्षति, नोट फाड़ने में लगे समय की कीमत, और इसके साथ और तमाम बातों का कॉस्ट जोड़ देगा:-)
इसी तरह सलिल वर्मा की टिप्पणी का यह अंश भी महत्वपूर्ण है -
सबसे बड़ा घाटा तो ये हुआ कि इज्ज़त गयी, दुकानदार ने जालसाज समझा और बड़ी देर तक सच्चा होने पर भी मन धिक्कारती रहा होगा..

harikrishnamurthy said...

Reblogged this on Harikrishnamurthy's Weblog.

डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!

विष्‍णु बैरागी said...

ऑंकडों का हिसाब तो आसानी से लगा लिया किन्‍तु भावनाओं के स्‍तर पर हुए घाटे का आकलन कर पाना मुझे मुमकिन नहीं लगता।

Anil said...

मेरा हानि मेरे दोस्त के लाभ के लिए बराबर है, तो मेरे दोस्त का लाभ = (पुस्तक + 30 रुपए).=.(70 रुपये + 30 रुपए) = 100 रुपये

Personal Concerns said...

nice mental exercise early morning!!!

Ankur Srivastava said...

१०० रुपये का नुकसान हुआ | क्योंकि एक नोट, जो आपके हिसाब से असली थी, उसे नष्ट करना पड़ा |