[caption id="attachment_6568" align="alignright" width="300"] गंगा किनारे।[/caption]
सर्दी एकबारगी कम हो कर पल्टा मार गयी। शुक्र-सनीचर को सब ओर बारिश हुई। कहीं कहीं ओले भी पड़े। ट्विटर पर रघुनाथ जी ट्वीट कर रहे थे कि दिल्ली में ओले भी पड़े। बनारस से अद्दू नाना ने फोन पर बताया कि देसी मटर पर पाला पड़ गया है। ओले पड़े थे, उसके बाद फसल खराब हो गयी। इधर मेरे इन्स्पेक्टर श्री एस.पी. सिंह ने बताया कि बारिश हल्की हुई है उनके गांव जमुनीपुर कोटवां में (गंगापार झूंसी में); पर कछार में लगाई सरसों-गेहूं के लिये बहुत फायदेमन्द है यह बारिश।
मौसम - कहीं फायदेमन्द, कहीं नुक्सानदायक!
आज रविवार को सवेरे दस बजे समय निकाल कर शिवकुटी में गंगा किनारे गया। घटा हुआ है गंगा का पानी। अब शायद पौष पूर्णिमा या मौनी अमावस तक पानी छोड़ा जाये। अभी तो बहुत रेत है और बीच बीच में टापू उभर आये हैं गंगाजी में। अलबत्ता, पानी पहले से कुछ साफ जरूर है।
[caption id="attachment_6569" align="aligncenter" width="500"] गंगाजी में जल कम ही है।[/caption]
चिरंजीलाल दिखे। नेकर-कमीज पहने। मूड़े पर गमछा लपेटे थे। अपनी क्यारी में सरपत की बाड़ लगा रहे थे।
[caption id="attachment_6570" align="aligncenter" width="500"] सरपत की बाड़ लगाते चिरंजीलाल।[/caption]
इस बार आधे मन से खेती की है कछार में चिल्ला-सलोरी वालों ने सब्जियों की। पहले आशंकाग्रस्त थे कि कुम्भ का मेला क्षेत्र शिवकुटी तक न घोषित हो जाये और उनकी मेहनत बरबाद हो जाये। वह तो नहीं हुआ, पर यह आशंका बरकरार है कि अगर पानी काफी छोड़ा गया मुख्य स्नान पर तो कोंहड़ा-ककड़ी की फसल डूब सकती है। फिर भी पहले की अपेक्षा आधे से कुछ कम खेती तो की ही है इस साल भी।
[caption id="attachment_6571" align="aligncenter" width="500"] सरपत की बाड़।[/caption]
चिरंजीलाल से मैने पूछा - सरपत कहां से लाते हैं? उन्होने बताया कि एक पूला (गठ्ठर) सरपत चालीस रुपये का आता है। मानिकपुर (इलाहाबाद-सतना मार्ग पर बीच में पड़ने वाली जगह) से मंगाते हैं यह सरपत। कुल मिला कर सरपत की बाड़ सस्ती नहीं पड़ती। पर खेती अप्रेल में खत्म कर बाड़ की सरपत सहेज कर वापस ले जाते भी देखा है इन लोगों को। उसके बाद मड़ई छाने या ईंधन के रूप में भी प्रयोग करते होंगे इसका।
[caption id="attachment_6572" align="aligncenter" width="500"] कोंहड़ा का पौधा।[/caption]
धूप अच्छी थी, ठण्डी हवा सनन् सनन् चल रही थी। किनारे पर कुछ लोग स्नान कर कपड़े बदल रहे थे और अपने गीले कपड़े सरपत की बाड़ पर ही सुखा रहे थे। कोंहड़ा के पौधे स्वस्थ थे और हवा का आनन्द ले रहे थे। ऐसे मौसम में एक दो मड़ई बन जाती थीं खेत के किनारे। इस साल एक भी मड़ई नहीं दिखी।
रेत एक दो दिन पहले हुई बारिश से गीली थी। कम ही लोग चले थे उसपर। काले रंग की चिड़ियां, जो गंगाजी के पानी की सतह के समीप उड़ते हुये जल में से छोटे छोटे जीव बीनती हैं, रेत में स्नान कर रही थीं - लोग गंगा नहाते हैं, वे रेत में नहा रही थीं।
[caption id="attachment_6573" align="aligncenter" width="500"] रेत में नहाती काली चिड़ियां।[/caption]
शिवकुटी घाट के पास रास्ते में बल्लियां गाड़ कर बिजली के बल्ब टांगे गये हैं - सी.एफ़.एल. रोशनी की व्यवस्था। यह इस कुम्भ के दौरान मुख्य स्नानों पर भोर में नहाने वाले धार्मिक लोगों की सुविधा के लिये हैं। इस व्यवस्था के अलावा और कोई इन्तजाम नजर नहीं आता शिवकुटी के घाट पर कुम्भ को ले कर।
[caption id="attachment_6574" align="aligncenter" width="500"] मेला में की गई बिजली की व्यवस्था।[/caption]
सरपत की बाड़ एक बार फिर निहारता मैं घर वापस चला आया।
[caption id="attachment_6577" align="aligncenter" width="500"] सरपत की बाड़ पर लोगों ने नहाने के बाद गीले कपड़े सुखाने डाल रखे थे।[/caption]
10 comments:
चलिए अच्छा है आपका भ्रमण फिर लौट आया :)
कुम्भ की भीड़ से अधिक अच्छा होगा यहाँ स्नान करना..
अच्छी लगी यह पोस्ट।
अच्छा किये घुमा दिये अपने साथ हमको भी। पक्षी रेत स्नान कर रहे हैं- क्या मजे हैं। क्या बात है :)
आपको फिर से देखकर खुशी हो रही है. स्वास्थ्य का ख्याल रखिये. किसान (विशेषत: छोटी और मध्यम जोत वाला) अन्नदाता है, इसमें कोई शक नहीं और अन्नदाता का वैसा ही हाल है जैसा नालायक बेटे अपने बाप का बनाकर रखते हैं.
सरपत बखान और बाकी सब बातें तो अपनी जगह। अच्छी खबर यह मिली इस पोस्ट से कि आप घर लौट आए हैं और जीवन क्रम सामान्य हो चला है। आप पूर्ण स्वस्थ बनें रहे। बस।
आपके साथ हमने भी सरपत की बाङ के सहारे गंगा की सैर कर ली।
:-)
नये वर्ष में आपका स्वास्थ्य उत्तम रहे और गंगा किनारे हम आपके साथ चलते रहें ।
सरपट कोशायद बेशरम की झाड़ी भी कहते हैं.
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