[caption id="attachment_6920" align="aligncenter" width="584"] कछार में ऊंट[/caption]
दूर ऊंट जा रहा था। साथ में था ऊंटवाला। मैने पण्डाजी से पूछा – यह किस लिये जा रहा है ऊंट? इस समय तो कछार में लादने के लिये कुछ है नहीं। सब्जियां तो खत्म हो चली हैं।
“वह एक कुनबी का ऊंट है। घास छीलने जा रहा होगा वह। एक दो घण्टा घास इकठ्ठा करेगा। फिर ऊंट पर लाद कर ले जायेगा। उसकी बीवी भी है साथ में। दोनो छीलेंगे। रोज ऐसा करते हैं। ऊंट को खाने के लिये तो चाहिये…” पण्डाजी ने बताया।
अच्छा, तो जरा उसे देख आऊं। ऊंटवाला रमबगिया के पास रुक गया था। उसकी पत्नी घास का निरीक्षण करने लगी थी और वह ऊंट को बांधने की जगह तलाश रहा था।
मैने उसके पास पंहुच कर वार्तालाप खोला – क्या लादने जा रहे हैं ऊंट पर?
लादेंगे क्या? खेती खतम! काम खतम!
तब?
घास छील कर ले जायेंगे। यह ऊंट है। और भैंसे हैं, गाय हैं; उनके लिये चाहिये।
कितने गोरू हैं?
चार भैसें हैं दो गायें। परसाल दो भैसें, एक गाय और सात रोज की एक बछिया कोई खोल ले गया था। बड़ा नुक्सान हुआ। समझो कि एक लाख से ज्यादा का नुक्सान। उसने स्वत: बताया।
अच्छा, इस ऊंट को क्या नाम से बुलाते हो?
[caption id="attachment_6924" align="aligncenter" width="584"] राधेश्याम पटेल और उनका ऊंट[/caption]
ऊंट का क्या नाम?! बस ऊंट है। सात साल पहले बच्चा था, तब खरीदा था मेले में। बहुत भोला भाला है। सो भोला कहता हूं।
अब काम क्या मिलेगा ऊंट को?
अब क्या काम?! ऐसे ही रहेगा। कछार में जब खेती फिर शुरू होगी, तब काम मिलेगा। समझो तो कुआर-कातिक से।
चलिये, जरा ऊंट की आपके साथ फोटो खींच लूं?
आऊ रे! तोर फ़ोटो खेंचाये। ऊटवाले ने ऊंट की नकेल खींच कर अपने पास किया। फिर दोनो नें एक दो पोज दिये।
मैने चलते चलते ऊंटवाले का नाम पूंछा। बताया – राधेश्याम पटेल।
राधेश्याम पटेल ऊंटवाला।
[बोधिसत्व ने कहा कि शब्द होना चाहिये उंटहारा। शब्दकोष न ऊंटवाला दिखाता है, न उंटहारा। वह ऊंटवान दर्शित करता है।]
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14 comments:
Dear Bhaiya
Jaisa Bhola Unt
Vaise Hee Aapka Likhane Ka Bhola Andaz.
Unt Aur Radheshyam Dono Dhanya Huye.
Untwali Nahin Dikhee.
Regards
Anand
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चलिए राधेश्याम जी से भी मुलाक़ात हो गई। ऊँट के इकोनोमिक्स के बारे में कुछ जानकारी तो ली ही होगी. चित्र के पृष्ठभूमि में कोने में छतरी से युक्त एक परकोटा सा दिख रहा है, क्या है।
यह रमबगिया है। रामदास टण्डन का उद्यान। कहते हैं फिल्मों की शूटिंग यहां हुआ करती थी। महल फिल्म की शूटिंग यहीं हुई। अभी भी भोजपुरी फिल्म वाले अपना तामझाम ले कर कभी कभी दीखते हैं यहां!
पशुधन इस तरह चोरी चला जाना तो बहुत दुखद है, पटेल जी की पीड़ा समझ सकते हैं। ऊँट को भी कछार का आनन्द आ रहा होगा।
Aap ki har post bejod hoti hai
धन्यवाद नीरज जी!
वाकई ऊंट भोला है, कई ऊंट कटते भी हैं, इसलिए उनके मुंह पर छिक्का बंधा रहता
है.
मवेशियों की चोरी किसी भी परिवार के लिए बहुत दुखद होती है
ऊंट का अर्थशास्त्र रोचक है! जय हो!
'विषय आसपास बिखरे हैं, देखनेवाली नजर चाहिए।' नई नजर मिली आपकी इस पोस्ट से।
विषय तो आसपास बिखरे हैं। बस, देखनेवाली नजरखहिए।
'नजर चाहिए।'
धान्सू पोज दिया है गौरवान्वित भोला ने। राधेश्याम जी का घाटा जानकार अफसोस हुआ। काफी अंडरइम्प्लॉइमेंट है, ऊँटो के लिए भी सरकार को कोई व्यवस्था चलानी चाहिए ताकि काम के लिए क्वार कातिक तक लंबा इंतज़ार न करना पड़े।
dhanyawaad. kitni door baithe kin kin logon ko apni sahaj sundar bhasha ke "oont" par bitha kar ganga ji ka kachaar ghoomane ke liye dhanyawaad.
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