एक है मम्फोर्डगंज से गुजरते हुये लाजपत रोड पर और दूसरा ब्वॉयज़ हायर सेकेण्डरी स्कूल के बगल में नाले के पास। बहुत दिनों से इनको देखने का मन था। शनिवार 22 जून को एक को देख पाया।
[caption id="attachment_6980" align="aligncenter" width="584"] धोबी घाट का एक दृष्य[/caption]
जैसा अपेक्षा थी, मेरा वहां स्वागत नहीं हुआ। लाजपत राय रोड वाले धोबी घाट में उस समय करीब 10-12 लोग थे। सबसे पास में एक व्यक्ति अपना टिफन खोल कर भोजन कर रहा था। उसके पास पानी में खड़े एक नीले रंग का जांघिया भर पहने व्यक्ति ने मेरी ओर देखा तो उससे मैने पूछा - क्या यह धोबी घाट है?
[caption id="attachment_6983" align="aligncenter" width="584"] नीला जांघिया पहने व्यक्ति, भगवतीप्रसाद, जिनसे बातचीत हुई। काले कपड़े पहने किशोर नांद में कपड़ों में अपने पैरों से दबा दबा कर साबुन लगा रहा है।[/caption]
जी हां। आपको क्या काम है। आपको कपड़े धोने का काम शुरू करना है?
हो सकता है उस व्यक्ति का यह सामान्य सा उत्तर हो - प्रश्न के माध्यम से उत्तर! पर मुझे लगा कि वह मुझे अवांछित मान रहा है।
मैने सफाई दी - नहीं भाई, मैं रोज इसी सड़क से सुबह शाम गुजरता हूं, सो जानने की इच्छा हो आयी कि यहां कैसे काम होता है।
उस व्यक्ति ने मुझे दिखाया कि बड़े से कांक्रीट के (या ईंट के प्लास्टर किये) हौज में कपड़े भिगोये गये थे। "ये कपड़े धोने के लिये हैं।"
[caption id="attachment_6982" align="aligncenter" width="584"] पानी के हौज जिनमें कपड़े भिगोये जाते हैं। बाजू में सूखते कपड़े भी दिख रहे हैं।[/caption]
सरसरी निगाह से देखने पर लगा कि वे सभी कपड़े होटलों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के नहीं थे। शायद घरेलू ज्यादा थे। इसका अर्थ यह कि वाशिंग मशीन के युग में भी लोग अपने घरेलू कपड़े धोबी से धुलाते हैं।
अच्छा, इनमें साबुन कैसे लगाते हैं?
उस व्यक्ति ने मुझे एक तरफ लाइन से बने छोटे साइज के कांक्रीट/ईंट प्लास्टर के चौखाने (नांद) दिखाये। उनमें कुछ कपड़े साबुन मिश्रित पानी में पड़े थे और एक खाने में एक व्यक्ति अपने पैरों से उन्हे मींज रहे थे। इस तरह उनमें अच्छे से साबुन लग जा रहा था।
[caption id="attachment_6981" align="aligncenter" width="584"] कपड़े पटक कर साफ करने का पटिया।[/caption]
उसके बाद कपड़े अन्य बड़े पानी के हौज में ले जा कर लोग हौज की बगल में लगे तिरछे पटिये पर पटक कर साफ करते और फिर पानी में भिगो कर निचोड़ते दिख रहे थे। मोटे तौर पर प्रक्रिया मुझे समझ आ गयी। धोबी घाट में एक ओर कपड़े सूख रहे थे। कुछ कपड़े धोबीघाट की दीवारों पर भी डाले हुये थे सुखाने के लिये।
हौज, पानी की उपलब्धता, कचारने का पटिया, साबुन लगाने के चौखाने इत्यादि; यही उपकरण/सुविधायें थी वहां। अन्यथा सारा काम आदमी अपने श्रम से कर रहे थे। कोई मशीनीकरण नहीं। बिजली का प्रयोग नहीं। कोई वाशर/स्पिनर/ड्रायर नहीं। धोबियों का अपना श्रम। बस।
[caption id="attachment_6979" align="aligncenter" width="584"] कपड़े साफ करता व्यक्ति।[/caption]
मैने कुछ चित्र लिये। नीले जांघिये वाले ने मेरे गाइड की भूमिका निभाई। उसी ने बताया कि वहां करीब चालीस लोग अपनी एसोसियेशन बना कर अपना काम धन्धा करते हैं। नगरपालिका सुविधायें (मुझे तो उसमें पानी की सुविधा भर लगी) देती है। उसने बड़ी सफाई से अपने को किसी फोटो में सामने आने से बचाये रखा।
धोबीघाट की इमारत पर लिखा है कि यह किसी राज्यसभा सांसद श्री चुन्नीलाल जी की सांसद निधि से सन 2000-2001 मे6 बनाया गया है। घाट अच्छी दशा में प्रतीत होता है, बनने के बारह साल बाद भी। शाम को इसके दरवाजे पर किसी को ताला लगाते भी देखता हूं मैं। रखरखाव ठीकठाक है। [इण्टरनेट पर राज्यसभा की साइट सर्च करने पर पता लगा कि श्री चुन्नीलाल 1996-2002 के लिये भाजपा के उत्तरप्रदेश से राज्यसभा सदस्य थे। तीन दिसम्बर 2000 को इनका देहावसान हुआ था।]
[caption id="attachment_6985" align="aligncenter" width="584"] अपना भोजन भी यहीं करते हैं वे काम के दौरान।[/caption]
करीब पांच मिनट रहा मैं वहां पर। उन लोगों को चलते समय मैने धन्यवाद दिया। घाट के दरवाजे तक छोड़ने के लिये एक दो लोग मुझे आये भी। वो जांघिया पहने व्यक्ति भी आये थे। मैने उनका नाम पूछा। मुझे आशंका थी कि उसने फोटो नहीं खिंचाई तो शायद नाम भी न बताये। पर लगता है पांच मिनट ने कुछ आत्मीयता बना दी थी। उसने जवाब दिया - भगवती प्रसाद।
मैं भगवती प्रसाद को नमस्कार कर अपने वाहन में बैठ कर चल दिया। धोबी घाट की जिज्ञासा काफी हद तक शांत हो चली थी। मेरे मोबाइल में वहां के कुछ चित्र आ गये थे। ब्लॉग पोस्ट लिखना शेष था; अब वह भी कर दिया।
[caption id="attachment_6984" align="aligncenter" width="584"] श्री चुन्नीलाल, सांसद राज्यसभा की सांसद निधि से 2000-01 में बना था यह धोबीघाट।[/caption]
किसी दिन दूसरा वाला धोबीघाट भी देखूंगा। वह वाला चलते वाहन से देखने में कुछ बड़ा प्रतीत होता है।
13 comments:
बढिया रपट रही। दिलचस्प।
यहाँ बम्मई के महालक्ष्मी स्टेशन के पास वाला धोबीघाट भी सीमेंट के हौज और पटियों से ही बना है। अक्सर वहां कोई न कोई विदेशी फोटो खेंचते दिखता है। धोबीघाट के आसपास की दुकानों की छत किराये पर उठा दी जाती है जहां लोहे की पाइपों वाले पर्मानेंट स्टैंड लगे रहते हैं जिनपर अक्सर होटलों, अस्पतालों आदि के कपड़े सूखते नजर आते हैं।
अच्छी सैर कराई धोबीघाट की इतवार के दिन!
मैंने अत्याधुनिक धोबी खाना देखा है, २०० रु के शर्ट धोने वाला। श्रम आधारित तन्त्र के कार्बन अवशेष कम ही रहते हैं। साधुवाद स्व सांसद जी का।
बहुत अच्छा लगा यदि मैं वहां धोबी होता तो आपके प्रश्न के उत्तर में वही जवाब देता :-)
सामान्य सी लगने वाली जगह धोबी घाट को आप ने अपने विशिष्ट
लेखन शैली से रोचक बना दिया । सिर्फ पांच मिनट के दौरे ने हम
लोगो को महीने भर पढ़ कर आनंदित रहने का खुराक दे दिया ...और
भाई सतीश पंचम जी की महालक्ष्मी धोबी घाट की जानकारी सोने
पे सुहागा .......प्रणाम भैया ...
रोचक रहा जानना। कछार रिपोर्टर का रिपोर्टिंग क्षेत्र अब विस्तृत होता जा रहा है यह देख/पढ़कर अच्छा लगा।
:)
औरों का तो पता नहीं पर मैंने फ़िल्मों के अलावा घोबीघाट आज पहली बार आपके माध्यम से ही देखा है, धन्यवाद.
धोबी घाट सब एक जैसे ही होते हैं.. विस्तृत रिपोर्टिंग है आपकी
मुझे भी पता नहीं था कि धोबीघट सचमुच होते हैं।
धोबीघात घुमाने का शुक्रिया। देश को चौधरी चुन्नी लाल जैसे जनप्रतिनिधियों की आवश्यकता है।
क्षमा कीजिये, धोबीघाट ...
यह पोस्ट हिट हो गयी ..
अच्छी रपट है। भगवती प्रसाद से आपकी धुलाई होते-होते बची।
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