कुल पौने तीन सौ टिकट बिकते हैं मितावली रेलवे स्टेशन में हर रोज। केवल सवारी गाड़ियां रुकती हैं। आस पास गांव दूर दूर दिखाई नहीं पड़ते। खेत हैं। ज्यादातर खेतों में धान जैसी चीज नहीं, चारा उगा दिखता है।
मैं पुशट्राली पर निरीक्षण करते हुये यहां पंहुचा। स्टेशन मास्टर साहब को लगता है पहले से खबर रही होगी – एक व्यक्ति हमारे पंहुचते ही कोका कोला छाप पेय की बोतलें ले आया। मेरे लिये शर्करा युक्त पेय उचित नहीं है। यह कहने पर भी दिये ग्लास में पेय आधा कर दो – उस व्यक्ति ने थोड़ा ही कम किया। मेहमाननवाजी स्वीकारनी ही पड़ी स्टेशन मास्टर साहब की।
कुछ ही समय हुआ है स्टेशन में सिगनलिंग प्रणाली में परिवर्तन हुये। पहले लीवर से चलने वाले सिगनल थे – जिन्हे लीवर मैन दोनो ओर बने कैबिनों पर स्टेशन मास्टर साहब के निर्देशानुसार खींच कर आने-जाने वाली गाड़ियों के लिये कांटा सेट करते और सिगनल देते थे। कुल मिला कर कम से कम तीन व्यक्ति इस काम में स्ंलग्न होते थे – स्टेशन मास्टर और दो लीवर/कैबिन मैन।
[caption id="attachment_6064" align="aligncenter" width="584"] मितावली स्टेशन का परित्यक्त केबिन। अब लीवर की प्रणाली का स्थान सॉलिड स्टेट इंटरलॉकिंग ने ले लिया है।[/caption]
अब लीवर हटा कर सारा काम सॉलिड स्टेट इण्टरलॉकिंग से होने लगा है। स्टेशन मास्टर साहब के पास एक कम्प्यूटर् लगा है, जिसके मॉनीटर पर पूरे स्टेशन का नक्शा है। उसी नक्शे पर क्लिक कर वे रूट सेट करने और सिगनल देने का काम करते हैं।
[caption id="attachment_6067" align="aligncenter" width="584"] सॉलिड स्टेट इण्टरलॉकिंग का मॉनीटर।[/caption]
स्टेशन मास्टर साहब हमारे सामने एक मॉनीटर से दूसरे (स्टेण्ड बाई) पर स्विच-ओवर करने का डिमॉन्स्ट्रेशन कर रहे थे तो माउस सरक कर गिर गया। कोल्ड ड्र्ंक लाने वाला जवान तुरत बोला – अरे कछुआ गिर गया नीचे।
[caption id="attachment_6069" align="alignright" width="148"] शिवशंकर।[/caption]
वाह! बेकार ही इस उपकरण को माउस कहा जाता है। देसी भाषा में कछुआ बेहतर शब्द है और इसका आकार भी कछुये से ज्यादा मिलता जुलता है।
उस नौजवान का नाम पूछा मैने – शिवशंकर। यहां के किसी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी का लड़का है और रेलवे के कामकाज के बारे में अपने पिता से कम नहीं जानता होगा शिवशंकर! स्टेशन मास्टर साहब का नाम था सीपी शर्मा।
निरीक्षण कर चलते हुये मैने स्टेशन मास्टर साहब से पूछा – और कोई समस्या? मकान वगैरह तो ठीक हैं यहां पर?
कहां साहब यह तो जंगल है। दिन में भी चले आते हैं। कमरे के बाहर तो दिखते हैं ही; कमरे में भी चले आते हैं। परसों ही आ गया था…
मुझे किसी ने बताया था कि यहां जंगली सूअर हैं नीलगाय के अलावा। मैने सोचा मास्टर साहब शायद किसी चौपाया की बात कर रहे हैं। पूछा – कौन आ जाता है? उत्तर शिवशंकर ने दिया – जी, सांप और बिषखोपड़ा। कमरे में भी चले लाते हैं। घर रहने लायक नहीं हैं। इस कमरे में काम करना भी संभल कर रह कर हो सकता है।
[caption id="attachment_6065" align="aligncenter" width="584"] मितावली के प्लेटफार्म पर बकरियां चराता गड़रिया।[/caption]
सांप, बिषखोपड़ा और नीलगाय् तो यहां आते हुये मैने देखे थे। जंगली सूअर देखने में नहीं आये। मुझे बताया गया कि वे खरतनाक हैं। हिंसा पर उतर आयें तो आदमी को मार सकते हैं। … मितावली स्टेशन के जीव!
फिर भी मैने आस पास घूम कर देखा तो स्टेशन पर कुछ परिवार रहते पाये। एक खटिया पर कुछ स्त्रियां-लड़कियां बैठी कंधी-चोटी करती दीखीं। उनकी प्राइवेसी भंग न हो, मैं वापस आ कर स्टेशन से रवाना हो गया।
चलते हुये स्टेशन मास्टर साहब से हाथ मिलाना और शिवशंकर के कन्धे पर आत्मीयता से हाथ रखना नहीं भूला मैं![slideshow]
17 comments:
कछुए के पूँछ नहीं होती।
कछुआ रेत पर चलता है और एक लम्बी ट्रेल बनती है - पूंछ की माफिक!
हेडिंग के मुताबिक जीव नहीं मिले -निराशा हाथ आयी !
कछुए की पूंछ होती है जी! ये देखीये http://bit.ly/Rib8GR
याददास्त अच्छी है आपकी जो हाथ मिलाना और रखना याद रहा।
याददाश्त से ज्यादा यह शिष्टाचार का मामला है। :-)
Smaller stations like Mitawali have always fascinated me and I enjoyed reading this. I would love to hear more from you about your experience of working with the Indian railways. Kindly post more stuff,
Thanks a lot!
आप जहाँ जाते हैं पाठकों को वहीं पहुँचा देते हैं।
आपके ब्लॉग के साथ ही साथ रेलवे की कार्य प्रणाली के बारे में भी पता चल रहा है... सुंदर सधे हुए शब्द और चित्र.... बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत अच्छा है. कंप्यूटर से निकल के मितावली घूम आये हम.
"अरे कछुआ गिर गया नीचे। "..हा हा हा
.....अब समझ में आया ट्रेने अक्सर कच्छप गति से क्यों चलती है :P
-Arvind K.Pandey
http://indowaves.wordpress.com/
कछुआ :)
कछुआ तार्किक लग रहा है..धीरे धीरे टचपैड आना चाहिये..
पोस्ट पढ कर ही इस ओर ध्यान गया कि माउस का आकार चूहे की अपेक्षा कछुए से अधिक मिलता है। हॉं, बहुत हलकी यारद है कि बचपन में पूँछवाला एक कछुआ देखा था।
एक विषखोपङे के फोटो की कमी रह गयी...
विषखोपडे की फोटो होती तो हम बी जान लेते किये चीज क्या है । वैसे कछुआ शब्द अच्छा है माउस से ।
accha laga
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