नवम्बर २’२०१२
वे तीन थे। एक अधेड़। तहमद पहने और उसे पानी से बचाने के लिये आधा उलटे हुये। ऊपर पूरी बांह का स्वेटर पहने। एक जवान – कमीज-पतलून में। एक किशोर होता बच्चा – वह भी कमीज पतलून पहने था। दोनो ने पतलून पानी से बचने ऊपर चढ़ा रखी थी। उनके पास एक नाव थी; जिसमें नदी से पकड़ी चेल्हुआ मछलियां रख चुके थे। जब मैं वहां पंहुचा तो वे मछलियां पकड़ने के लिये बांधी गयी चारखाने वाले कपड़े की चादर समेटने का काम कर रहे थे। मैने देखा – चारखाने का कपड़ा नया था। शायद इसी सीजन में खरीदा होगा उन्होने और मछली पकड़ने के ही काम आ रहा होगा अभी। बाद में उसकी अच्छी लुंगिंया बन सकेंगी।
उनमें से जो जवान था, वह कुछ मुखर लग रहा था। बच्चे से बोला – देख हम लोगों की फोटो खिंच रही है। पर बच्चा और अधेड़ अपने काम को खत्म करने में ज्यादा रुचि ले रहे थे। काम तो फुर्ती से यह जवान भी कर रहा था। पर मुझसे बात भी करता जा रहा था।
वे बांस या लकड़ी को गंगा की रेती से उखाड़ कर उसके सहारे ताने हुये चारखाने के कपड़े को समेट रहे थे। लड़का लकड़ियां समेट कर नाव में रखने आ-जा रहा था। बची खुची मछलियां लुचकने को आस पास कौव्वे कांव कांव करते इधर उधर फुदक रहे थे। नाव में लदे ढेर को देख कर अन्दाज लग रहा था कि अच्छी खासी संख्या में मछलियां मिली होंगी इन लोगों को।
जवान ने मुझे बताया कि कल रात आठ बजे उन लोगों ने पानी रोकने का काम किया था। रात में पानी बढ़ने के साथ साथ मछलियां भी काफी आ गयी थीं। तड़के उन्होने अपना काम समेट लिया और अब रवाना हो जायेंगे। करीब “दो करेट” मछली है नाव में। अभी जिन्दा हैं। वह इस अन्दाज में बोला कि मैं शायद उन्हे देखने की उत्सुकता जताऊं। पर नाव तक पानी में हिल कर जाना और तड़फती मछलियां देखना मुझे अप्रिय कृत्य लगा। उसकी बजाय बात करना और फोटो खींचना बेहतर काम था।
दो करेट माने कितना किलो होगी मछली? मेरे पूछने का कोई संतोषजनक जवाब न दे पाया वह। उसने अधेड़ से पूछा, पर अधेड़ के पास भी कोई अनुमान न था। उसने बस यही कहा कि मछलियां काफी हैं (अन्दाज से बताया कि बित्ता भर से ज्यादा बडी भी हैं) और यहां स्थानीय बाजार में नहीं जाने वाली – बाहर जायेंगी।
मैं अपनी जिज्ञासा को और आयाम नहीं दे सका। जिन्दा तड़फती मछली के बारे में सोचना प्रिय नहीं लगता मुझे! जाने कितनी दूर अप-स्ट्रीम में उनका बीज पड़ा होगा। कितनी लम्बी यात्रा उन्होने की होगी गंगा नदी में। आज के बाद उनका शरीर जाने कितनी यात्रा कर कहां तक पंहुचेगा और कहां वे उदरस्थ होंगी? यह सब मेरे इस ब्लॉग पोस्ट का विषय नहीं है। मुझे तो इतना ही बताया है जवान ने कि नाव पर मछलियां जिंदा हैं अभी भी!
10 comments:
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pranam.
मछली थोड़े ही होगी, जल तोरई होगी :)
जिन्दा मछलियों को, पानी से बाहर इस तरह देखने की तो कल्पना ही सिहरन पैदा कर देती है।
दो करेट माने कितना किलो होगी मछली?
-यही प्रश्न मेरे मन में भी उठा...अब कौन जबाब देगा इसका?
मछलियों का जीवन चक्र, काल के लिये हम भी तो मछलियाँ ही हुये।
शानदार चित्र हैं।
:)
मोहक चित्रों से सजी चित्रमाला. पटना में भी हमने देखा है बचपन में यह सारा कार्यक्रम!!
ओह !
अपन भी गये इतवार को पास में मछली विहार करने पास की राबर्टसन लेक। मजे आये।
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