नदी (गंगाजी) फिर बाढ़ पर हैं। 1-2 अगस्त को जितना बढ़ी थीं उससे अभी डेढ़-दो फिट कम हैं पर यह पिछले एक दशक में इसी साल ही हुआ है कि इतना बढ़ी हों और शिवकुटी घाट की सीढ़ियाँ डूबी हों।
आज पन्द्रह अगस्त की शाम के समय वहां गया तो घाट पर तीस चालीस लोग थे। अधिकांश बाढ़ की रह चह लेने वाले मेरी तरह के लोग। कुछ वहां पूजा अर्चना करने वाले थे। एक सज्जन दीप दान कर रहे थे। उनके आगे बढ़ी गंगाजी के मटमैले पानी में एक छोटा लड़का नहा रहा था। कभी डुबकी लगाता, कभी दो चार हाथ तैर लेता। रेलिंग थामे दो उससे कहीं ज्यादा बड़े लड़के उसे देख-बतिया रहे थे। एक कुछ दूर छोटा सांप जैसा बहता गया। दोनो बड़े चिल्ला उठे - अबे देख सांप।
छोटा डरा नहीं एक डुबकी लगा कर उतिराया। उसके बाद बड़ी कॉंफिडेण्टली फैंका उसने - इससे बहुत ज्यादा बड़ा था उस दिन। उसने कुछ दूर तैर कर बताया - इत्ता।
फिर क्या हुआ?
होना क्या था बे। मदारी पकड़ कर ले गया।
अच्छा! दोनो बड़े मुंह बा कर सुन रहे थे उसे। उनमें से कोई यह नहीं बोला कि सांप संपेरा पकड़ता है, मदारी नहीं। छोटे बच्चे की फैंकॉलॉजी चल रही थी...
छोटा बच्चा - पक्का नेता मेटीरियल है। केवट हुआ तो भी आगे चल कर केवटों का सरदार बनेगा। होनहार बिरवान के होत चीकने पात!
7 comments:
सांप को मदारी पकड़ ले गया। वाह!
केवटों का सरदार तो पता नहीं, हाँ समर्थन मिले तो अंतर्राष्ट्रीय तैराक भी बन सकता है।
पता नहीं क्या बन पायेगा, बच्चों के अन्दर तो कितने महापुरुष तो पैदा होने के पहले ही चल बसते हैं।
मैं तो सांप देखने भाग कर आ गया ! :-)
हा हा हा..
वाह सर! क्या बात कही है।
बच्चा होनहार तो है. रोचक.
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