उनतीस जून को फाटा और रेलगांव को जोड़ने के लिये
शैलेश और
हर्ष ने योजना बनाई थी रोप वे बनाने के लिये। जब उन्होने मुझे बताया था इसके बारे में तो मुझे लगा था कि रोप वे बनाने में लगभग दस दिन तो लगेंगे ही। पहले इस प्रॉजेक्ट की फ़ण्डिन्ग की समस्या होगी। फिर सामान लाने की। तकनीकी सहयोग की दरकार अलग। पर आज तीन जुलाई है - विचार आने के बाद चौथा दिन।
और आज वह रोप वे बन कर तैयार है।
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फाटा के पास मन्दाकिनी पर शैलेश की टीम की माल ढुलाई के लिये बनाई रोप वे।[/caption]
सरकार को यह काम करना होता तो अभी इस पर बैठक हो रही होती या तहसील स्तर से जरूरत की एक चिठ्ठी भेजी गयी होती जिला मुख्यालय को। जल्दी से जल्दी भी बन कर यह तैयार होता १५ अगस्त के आसपास - और तब स्थानीय एमएलए या डीएम साहब इसका फ़ीता काट उद्घाटन करते। तब तक रेलगांव क्षेत्र के १०-१५ गांव रो-पीट कर अपनी हालत से समझौता कर चुके होते।
मैं इस योजना के क्रियान्वयन और उसकी स्पीड से बहुत प्रभावित हूं और मेरे मन में
शैलेश,
हर्ष तथा
आलोक भट्ट के बारे में अहोभाव पनपा और पुख्ता हुआ है। आशा है भविष्य में इन सज्जनों से और अधिक इण्टरेक्शन होगा - सोशल मीडिया पर और आमने सामने भी।
शैलेश ने दोपहर १:४० पर मुझे यह चित्र भेजा था ह्वाट्स-एप्प पर।
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लोग एक पेड़ से तार बांध रहे हैं रोप वे बनाने के लिये[/caption]
इस चित्र में है कि लोग एक पेड़ से तार बांध रहे हैं रोप वे बनाने के लिये। लगभग ढ़ाई बजे नदी एक ओर तार बांधा जा चुका था। दूसरी ओर चेन-पुली न होने के कारण तार को लोगों द्वारा हाथ से खींच कर बांधना था। वह काम भी शैलेश एण्ड कम्पनी ने ही किया। [स्थानीय लोग अपने तरीके से ऊंचाई से उतर कर मन्दाकिनी पर एक लकडी का पुल बना सामान ढोने में व्यस्त थे। वह काफ़ी श्रमसाध्य काम है और लकड़ी के पुल की जिन्दगी भी मन्दाकिनी के पानी बढ़ने पर समाप्त होने की पर्याप्त आशंका है।] सम्भवत: उन्हे यह समाधान ऑफ-बीट लग रहा था। एक बार वे इस रोप वे पर सरलता से अधिक सामान बिना श्रम आते जाते देखेंगे तो इसकी उपयोगिता स्पष्ट होगी उन्हे।
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क्या फ़ाइव-स्टार लन्च है! शैलेश और साथी शाम चार बजे भोजन करते हुये।[/caption]
काम करते लोगों ने देर से ही भोजन किया होगा - लगभग शाम सवा चार बजे शैलेश ने चित्र भेजा जिसमें जमीन पर बैठे वे भोजन कर रहे हैं - क्या फ़ाइव-स्टार लन्च है! बहुत कम को ही यह वातावरण और यह भोजन नसीब होता होगा!
मैं दफ़्तर से शाम साढ़े सात बजे निकल रहा था, तब शैलेश का यह चित्र मिला जिससे यह स्पष्ट हुआ कि रोप वे कमीशन हो गया है। सांझ की रोशनी दिख रही है इसमें। नदी की धारा के बीचोंबीच सामान जाता दिख रहा है रोप वे के जरीये। शैलेश ने बताया कि इसमें लगभग ४० किलो वजन था। यद्यपि एक बार में तार की मजबूती के आधार पर लगभग २ क्विण्टल सामान ले जाया जा सकेगा रोप वे पर।
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रोप वे कमीशण्ड हो गया है। पहला पे-लोड भेजने को तैयार। वजन लगभग ४० किलो।[/caption]
पहली बार एक फ़ेरा सामान पंहुचाने में लगभग १० मिनट लगे। शैलेश का कहना है कि यह समय आगे रोप वे के उपयोग में रवां होने के साथ आधा हो जायेगा।
शैलेश का कहना है कि कल से यह रोप वे ग्रामीणों को उपयोग के लिये सौप दिया जायेगा - जिस तरह से भी वे उपयोग करना चाहें। इसको ले कर उनकी बहुत स्पून-फीडिन्ग नहीं की जायेगी।
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रोप वे से जाते सामान का एक अन्य दृष्य।[/caption]
यह रोप वे ग्रेविटी रोप वे नहीं है। तार लगभग धरती के समान्तर बांधा गया है। पर जैसा आप देख सकते हैं, पुली और तार के माध्यम से बहुत हल्के खींचने से ही सामान नदी पार कर सकता है। बल और समय - दोनो की बचत और नदी के उफान में होने पर भी यह काम करता रहेगा।
इतने त्वरित रूप से रोप वे बनने की अपेक्ष मुझे नहीं थी। इलाहाबाद में बैठे मैं थ्रिल महसूस कर रहा हूं। आप भी कर रहे हैं न?
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शैलेश और उनकी रोप वे के निर्माण में लगी टीम।[/caption]