(कल दफ्तर में) लंचटाइम। मेरी टेबल पर टाटा नैनो में भारत यात्रा के दो ट्रेवलॉग हैं। उन्हे पलटने पर मजा नहीं आता। लोगों को यात्रा कर किताब लिखने भर की पड़ी है शायद। यात्रा के दौरान यात्रा से कई गुना देखना न हो तो वह ट्रेवलॉग किस काम का।
और देखना कैमरे की आंख से कम, मन से अधिक होना चाहिये। मन देखता है। कैमरा किसी कोण विशेष से चित्र लेता है और उस बीच मन उसके लिये शब्द तलाशता है। मेरे साथ यह कई बार हुआ है। हर बार होता है। शायद उन सभी के साथ होता है जो लेखक नहीं शब्द-तलाशक हैं! उन सभी के साथ – लिखना जिनका मुख्य उद्यम नहीं है।
मैं किताब परे हटा अपने चेम्बर से निकल लेता हूं। अच्छा है कि छोटे लाल नहीं देख रहा मुझे बाहर जाते, अन्यथा कयास लगाता कि साहब कहां गये होंगे। अपने फोन में रनकीपर ऑन कर देता हूं, जिससे यह पता चले कि कितना चला।
दफ्तर परिसर में कई खण्ड हैं। मैने उन्ही के चक्कर लगाये। उन्हे जोड़ते रास्ते के कवर्ड शेड हैं। गर्मी और बरसात में उनके नीचे चलना सुरक्षित रहता है। आज धूप नहीं, बारिश थी। मेघाच्छादित आसमान। कभी तेज, कभी धीमे और कभी रुकी होती बारिश। लंचटाइम में सामान्यत जो लोग लॉन में बैठे दीखते, वे इन रास्तों में खड़े या चल रहे थे। आपस में बोलते बतियाते या अपने में रमे लोग। बारिश से किसी का कोई खास लेना देना नजर नहीं आ रहा था।
महाप्रबन्धक प्रकोष्ठ से उत्तरमधय रेलवे मुख्यालय का लॉन बहुत सुन्दर दीख पड़ता है मैने उसका एक चित्र लिया। कहीं वह खराब आये, इसलिये दूसरा बैक-अप चित्र भी लिया। ऐसा बैक-अप लेते ही रहते हैं। अंतत इतने चित्र और इतने बैक-अप हो जाते हैं कि न मूल काम आता है न बैक-अप!
[caption id="attachment_7097" align="aligncenter" width="584"] महाप्रबन्धक प्रकोष्ठ से लॉन का चित्र और बैक अप[/caption]
एक जगह बारिश के कारण काम रोक कर लॉन संवारने वाली दो महिलायें रास्ते में बैठीं आराम कर रही थीं। आपस में बतिया रही थीं। दूर खड़े कर्मचारियों ने मुझे उनका चित्र लेते देखा तो कटाक्ष किया – “नजरे इनायत हो गयी हैं”! मैं अपनी रफ्तार से उनके पास से गुजरा, पर वे मौन हो चुके थे। मैं तो खैर नजरें इनायत नहीं कर रहा था, पर जिस तरह का उनका कहना था और जिस जगह वे खड़े थे, वे जरूर नजरें इनायत कर रहे थे!
[caption id="attachment_7098" align="aligncenter" width="584"] लॉन में काम करने वालीं महिलायें।[/caption]
एक पौधा था बाड़ के अन्दर। उसके फैलाव को अब लोहे की जाली रोक रही थी। जाली के प्रोटेक्शन की अब जरूरत नहीं रही उसको। माली शायद जल्दी ही बाड़ हटा ले। शायद बारिश के मौसम के बाद।
[caption id="attachment_7099" align="aligncenter" width="584"] प्रोटेक्शन और गली के खरपतवार का संग[/caption]
एक कोने में, जहां कम ही लोग जाते हैं और जहां बारिश की नमी, और कम इस्तेमाल किये रास्ते के कारण काई जमा थी, एक सीमेण्ट का गमला था क्रोटन के साथ। उसके साथ स्पर्धा करता हुआ खरपतवार/घास भी था। दोनो बराबर ही प्रसन्न लग रहे थे। बहुत कुछ वैसे जैसे मेमसाहब का बेबी गली के बच्चों के साथ खेल कर प्रसन्न होता है!
कुछ फूल जो बारिश और बयार में झूम रहे थे, बहुत खुश नजर आ रहे थे। वो ट्रेवल नहीं कर रहे थे। कर नहीं सकते थे। जड़ से बन्धे थे। पर जड़ नहीं थे। उनकी प्रसन्नता अगर उनका स्टेण्डलॉग लिखती तो अत्यंत पठनीय होता वह। टाटा नैनो के ट्रेवलॉगों से ज्यादा पठनीय।
[caption id="attachment_7100" align="aligncenter" width="584"] फूल लिखेंगे अपना स्टैण्डलॉग?[/caption]
पर किसी फूल को आपने अपना लॉग - स्टेण्डलॉग लिखते देखा है? ऐसी निरर्थक कार्रवाई में नहीं पड़ते फूल। उन्हे खुशी बिखेरने के और भी तरीके आते हैं!
रनकीपर एप्प ने बताया कि एक किलोमीटर से कुछ ज्यादा चला होऊंगा मैं। नैनो यात्रा का नैनो ट्रेवलॉग! :lol:
कछार
Saturday, August 17, 2013
यात्रा एक किलोमीटर
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Thursday, August 15, 2013
इत्ता बड़ा था सांप, मदारी पकड़ कर ले गया!
[caption id="attachment_7091" align="aligncenter" width="584"] छोटा बच्चा पाने में तैरता-नहाता हांक रहा था - इत्ता बड़ा था सांप! मदारी पकड़ कर ले गया।[/caption]
नदी (गंगाजी) फिर बाढ़ पर हैं। 1-2 अगस्त को जितना बढ़ी थीं उससे अभी डेढ़-दो फिट कम हैं पर यह पिछले एक दशक में इसी साल ही हुआ है कि इतना बढ़ी हों और शिवकुटी घाट की सीढ़ियाँ डूबी हों।
आज पन्द्रह अगस्त की शाम के समय वहां गया तो घाट पर तीस चालीस लोग थे। अधिकांश बाढ़ की रह चह लेने वाले मेरी तरह के लोग। कुछ वहां पूजा अर्चना करने वाले थे। एक सज्जन दीप दान कर रहे थे। उनके आगे बढ़ी गंगाजी के मटमैले पानी में एक छोटा लड़का नहा रहा था। कभी डुबकी लगाता, कभी दो चार हाथ तैर लेता। रेलिंग थामे दो उससे कहीं ज्यादा बड़े लड़के उसे देख-बतिया रहे थे। एक कुछ दूर छोटा सांप जैसा बहता गया। दोनो बड़े चिल्ला उठे - अबे देख सांप।
छोटा डरा नहीं एक डुबकी लगा कर उतिराया। उसके बाद बड़ी कॉंफिडेण्टली फैंका उसने - इससे बहुत ज्यादा बड़ा था उस दिन। उसने कुछ दूर तैर कर बताया - इत्ता।
फिर क्या हुआ?
होना क्या था बे। मदारी पकड़ कर ले गया।
अच्छा! दोनो बड़े मुंह बा कर सुन रहे थे उसे। उनमें से कोई यह नहीं बोला कि सांप संपेरा पकड़ता है, मदारी नहीं। छोटे बच्चे की फैंकॉलॉजी चल रही थी...
छोटा बच्चा - पक्का नेता मेटीरियल है। केवट हुआ तो भी आगे चल कर केवटों का सरदार बनेगा। होनहार बिरवान के होत चीकने पात!
नदी (गंगाजी) फिर बाढ़ पर हैं। 1-2 अगस्त को जितना बढ़ी थीं उससे अभी डेढ़-दो फिट कम हैं पर यह पिछले एक दशक में इसी साल ही हुआ है कि इतना बढ़ी हों और शिवकुटी घाट की सीढ़ियाँ डूबी हों।
आज पन्द्रह अगस्त की शाम के समय वहां गया तो घाट पर तीस चालीस लोग थे। अधिकांश बाढ़ की रह चह लेने वाले मेरी तरह के लोग। कुछ वहां पूजा अर्चना करने वाले थे। एक सज्जन दीप दान कर रहे थे। उनके आगे बढ़ी गंगाजी के मटमैले पानी में एक छोटा लड़का नहा रहा था। कभी डुबकी लगाता, कभी दो चार हाथ तैर लेता। रेलिंग थामे दो उससे कहीं ज्यादा बड़े लड़के उसे देख-बतिया रहे थे। एक कुछ दूर छोटा सांप जैसा बहता गया। दोनो बड़े चिल्ला उठे - अबे देख सांप।
छोटा डरा नहीं एक डुबकी लगा कर उतिराया। उसके बाद बड़ी कॉंफिडेण्टली फैंका उसने - इससे बहुत ज्यादा बड़ा था उस दिन। उसने कुछ दूर तैर कर बताया - इत्ता।
फिर क्या हुआ?
होना क्या था बे। मदारी पकड़ कर ले गया।
अच्छा! दोनो बड़े मुंह बा कर सुन रहे थे उसे। उनमें से कोई यह नहीं बोला कि सांप संपेरा पकड़ता है, मदारी नहीं। छोटे बच्चे की फैंकॉलॉजी चल रही थी...
छोटा बच्चा - पक्का नेता मेटीरियल है। केवट हुआ तो भी आगे चल कर केवटों का सरदार बनेगा। होनहार बिरवान के होत चीकने पात!
Tuesday, August 13, 2013
शिवकुटी के मेले की तैयारी
शिवकुटी का श्रावण का मेला कल है। शुक्लपक्ष की अष्टमी को होता है। कल से कोटेश्वर महादेव मन्दिर के तिकोनिया पार्क में झूला लगाने वाले अपना सामान - टेण्ट ले कर आ गये हैं। आज उन्हे सवेरे खुले में सोते देखा। अभी दुकाने नहीं लगी हैं।
दूसरे, परसों से बढ़ रही गंगाजी में आज और बढ़ोतरी दिखी। स्नान करने वालों की जगह सिमट गयी है। कुछ दिन पहले की पिछली बाढ़ में मैने पाया कि शिवकुटी घाट की सीढ़ियों का एक पटिया टूट गया है। पटिया मजबूत था, पर जलराशि के धक्के को झेल न पाया।
घाट पर लोग कयास लगा रहे थे कि अभी और बढ़ेंगी गंगाजी।
दूसरे, परसों से बढ़ रही गंगाजी में आज और बढ़ोतरी दिखी। स्नान करने वालों की जगह सिमट गयी है। कुछ दिन पहले की पिछली बाढ़ में मैने पाया कि शिवकुटी घाट की सीढ़ियों का एक पटिया टूट गया है। पटिया मजबूत था, पर जलराशि के धक्के को झेल न पाया।
घाट पर लोग कयास लगा रहे थे कि अभी और बढ़ेंगी गंगाजी।
Monday, August 12, 2013
कचरा उठता नहीं!
सन 1985 में जब मैने रेलवे की नौकरी में पहली पोस्टिंग रतलाम में ज्वाइन की थी तो वहां मण्डल रेल प्रबन्धक कार्यलय के पास दो-बत्ती इलके में सवेरे 25-30 सफाई कर्मी झाडू लगा कर पानी का छिडकाव किया करते थे। कालांतर में यह व्यवस्था बन्द हो गयी। लगभग 15 साल वहां (दो चरणों में) रहने के बाद जब 2003 में वहां से निकला तो सड़के पहले की अपेक्षा बहुत अधिक धूल भरी और कचरा युक्त हो चुकी थीं।
[caption id="attachment_7078" align="alignright" width="300"] सफाई कर्मी न होने पर सूअर हाथ बटाते हैं![/caption]
कमोबेश हर शहर का यह हाल है। सफाई कर्मियों की संख्या बढ़ी नहीं है। प्रति सफाई कर्मी जितनी सड़क साफ होनी चाहिये, वह नहीं होती और मशीनों का प्रयोग - मशीनों पर बहुत खर्चा करने के बावजूद - नहीं होता। कारण यह है कि हमारी सड़कें और फुटपाथ उन मशीनों के प्रयोग के लिये सही तरह डिजाइण्ड नहीं हैं।
कचरा पहले की अपेक्षा दुगना-तिगुना हो गया है और उसका उतना कलेक्शन ही नहीं होता। इसलिये काफी कचरा शहर की गलियों-सड़कों पर बिखरा दिखता है।
इलाहाबाद में कुम्भ मेले के समय सड़कें सुधरी थीं और साफ सफाई हुई थी। पर हालात बहुत तेजी से सामान्य होते गये हैं। मेन रोड ही टूटने लगी हैं वर्षा से और कचरा इधर उधर बिखरा नजर आता है।
[caption id="attachment_7079" align="aligncenter" width="584"] शिवकुटी मन्दिर की सड़क के किनारे का हाल। आज सावन के मेले का इंतजाम होने जा रहा है यहाँ![/caption]
द बक स्टॉप्स एट रिपन बिल्डिंग नामक शीर्षक से( सन 1913 में बनी रिपन बिल्डिंग में चेन्ने कार्पोरेशन का कार्यालय है) आज द हिन्दू में एक लेख है, जिसमें चेन्ने की सफाई व्यवस्था के बारे में लिखा है। इस लेख में बताया गया है -
[caption id="attachment_7082" align="aligncenter" width="300"] द हिन्दू के ओरीजनल आर्टीकल में चित्र[/caption]
मेरे ख्याल से चेन्ने की व्यवस्था कई उत्तरभारतीय शहरों से कहीं बेहतर होगी। पर जब वहां यह असंतोषजनक है तो अन्य जगहों की व्यवस्था तो भगवान भरोसे!
[caption id="attachment_7078" align="alignright" width="300"] सफाई कर्मी न होने पर सूअर हाथ बटाते हैं![/caption]
कमोबेश हर शहर का यह हाल है। सफाई कर्मियों की संख्या बढ़ी नहीं है। प्रति सफाई कर्मी जितनी सड़क साफ होनी चाहिये, वह नहीं होती और मशीनों का प्रयोग - मशीनों पर बहुत खर्चा करने के बावजूद - नहीं होता। कारण यह है कि हमारी सड़कें और फुटपाथ उन मशीनों के प्रयोग के लिये सही तरह डिजाइण्ड नहीं हैं।
कचरा पहले की अपेक्षा दुगना-तिगुना हो गया है और उसका उतना कलेक्शन ही नहीं होता। इसलिये काफी कचरा शहर की गलियों-सड़कों पर बिखरा दिखता है।
इलाहाबाद में कुम्भ मेले के समय सड़कें सुधरी थीं और साफ सफाई हुई थी। पर हालात बहुत तेजी से सामान्य होते गये हैं। मेन रोड ही टूटने लगी हैं वर्षा से और कचरा इधर उधर बिखरा नजर आता है।
[caption id="attachment_7079" align="aligncenter" width="584"] शिवकुटी मन्दिर की सड़क के किनारे का हाल। आज सावन के मेले का इंतजाम होने जा रहा है यहाँ![/caption]
द बक स्टॉप्स एट रिपन बिल्डिंग नामक शीर्षक से( सन 1913 में बनी रिपन बिल्डिंग में चेन्ने कार्पोरेशन का कार्यालय है) आज द हिन्दू में एक लेख है, जिसमें चेन्ने की सफाई व्यवस्था के बारे में लिखा है। इस लेख में बताया गया है -
[caption id="attachment_7082" align="aligncenter" width="300"] द हिन्दू के ओरीजनल आर्टीकल में चित्र[/caption]
- सन 1991 में चेन्ने में दो डम्प यार्ड थे। आज भी उतने ही हैं।
- 19300 सफाई कर्मी हैं। उनमें से 6900 रोज सड़कें साफ करते हैं। प्रति कर्मी 500 मीटर सड़क साफ होनी चाहिये। पर काम करने वालों में अधिकांश अधेड़ महिलायें हैं। उनसे उतना काम होता ही नहीं।
- प्रति कर्मी औसत 250 किलो कचरा उठना चाहिये पर कार्यकुशलता इस टार्गेट की आधी ही है।
- शहर में 12 मेकेनिकल सड़क सफाई करने वाले यंत्र हैं। ये चार किलोमीटर प्रतिघण्टा सड़क साफ कर सकते हैं। पर उनका प्रयोग सही नहीं हो पाता। सड़कें ठीक से डिजाइन नहीं हैं!
- करीब 5200 व्यक्ति ट्राईसाइकल से घर घर कचरा उठाते हैं। पर शहर के लोग कहते हैं कि यह व्यवस्था अपर्याप्त है।
मेरे ख्याल से चेन्ने की व्यवस्था कई उत्तरभारतीय शहरों से कहीं बेहतर होगी। पर जब वहां यह असंतोषजनक है तो अन्य जगहों की व्यवस्था तो भगवान भरोसे!
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Monday, July 29, 2013
मन्दाकिनी नदी पर रोप-वे : अपडेट
शैलेश पाण्डेय ने मंदाकिनी नदी पर फाटा-रेलगांव के पास उत्तराखण्ड की त्रासदी के बाद एक रोप-वे का निर्माण किया था। उस समय यह मेक-शिफ्ट तरीके से बन पाया था। यद्यपि उसपर व्यक्ति आ जा सकते थे, पर एहतियाद के लिये उसका प्रयोग मात्र रिलीफ का सामान नदी पार कराने के लिये किया गया। या जुलाई के प्रारम्भ की बात है।
[caption id="attachment_7051" align="alignright" width="300"] फाटा के पास मन्दाकिनी पर शैलेश की टीम की माल ढुलाई के लिये बनाई रोप वे।[/caption]
वापस आने पर शैलेश और उनके मित्र स्थानीय प्रशासन, लोक सेवकों और सांसदों के सम्पर्क में रहे जिससे इस रोप वे की पुख्ता ग्राउटिंग के साथ इसका व्यापक ढुलाई में प्रयोग हो सके। बीच में वर्षा और खराब मौसम से कई बार हताशा की दशा आयी। कई बार स्थानीय प्रशासन की ढुलमुल दशा को कोसने का मन भी बना। पर अन्तत: स्थानीय लोगों के अपने इनीशियेटिव से दशा बदली और उसपर ७०-८० किलो का सामान एक फेरी में लाया ले जाने लगा।
अब आज मुझे बताया गया कि उस रोप वे से आदमी भी मान्दाकिनी के आर-पार जाने लगे हैं। आज तक डेढ़ सौ से अधिक लोग नदी पार कर चुके हैं रोप वे से।
यूं कहा जाये कि रोप वे Fully Functional हो गया है!
शैलेश, हर्ष और आलोक को बहुत बधाई!
इस विषय में शैलेश पाण्डेय का फ़ेसबुक पर अपडेट यहां पर है! वहां आप कुछ् और चित्र देख पायेंगे रोप-वे के। एक चित्र में तो एक महिला बैठ रही है रोप वे की ट्राली में, नदी पार करने के लिये!
[caption id="attachment_7067" align="aligncenter" width="584"] मंदाकिनी के रोप वे से नदी पार करते स्थानीय ग्रामीण।[/caption]
[caption id="attachment_7051" align="alignright" width="300"] फाटा के पास मन्दाकिनी पर शैलेश की टीम की माल ढुलाई के लिये बनाई रोप वे।[/caption]
वापस आने पर शैलेश और उनके मित्र स्थानीय प्रशासन, लोक सेवकों और सांसदों के सम्पर्क में रहे जिससे इस रोप वे की पुख्ता ग्राउटिंग के साथ इसका व्यापक ढुलाई में प्रयोग हो सके। बीच में वर्षा और खराब मौसम से कई बार हताशा की दशा आयी। कई बार स्थानीय प्रशासन की ढुलमुल दशा को कोसने का मन भी बना। पर अन्तत: स्थानीय लोगों के अपने इनीशियेटिव से दशा बदली और उसपर ७०-८० किलो का सामान एक फेरी में लाया ले जाने लगा।
अब आज मुझे बताया गया कि उस रोप वे से आदमी भी मान्दाकिनी के आर-पार जाने लगे हैं। आज तक डेढ़ सौ से अधिक लोग नदी पार कर चुके हैं रोप वे से।
यूं कहा जाये कि रोप वे Fully Functional हो गया है!
शैलेश, हर्ष और आलोक को बहुत बधाई!
इस विषय में शैलेश पाण्डेय का फ़ेसबुक पर अपडेट यहां पर है! वहां आप कुछ् और चित्र देख पायेंगे रोप-वे के। एक चित्र में तो एक महिला बैठ रही है रोप वे की ट्राली में, नदी पार करने के लिये!
[caption id="attachment_7067" align="aligncenter" width="584"] मंदाकिनी के रोप वे से नदी पार करते स्थानीय ग्रामीण।[/caption]
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शैलेश पाण्डेय
Thursday, July 4, 2013
मन्दाकिनी नदी पर रोप-वे बनाने में सफल रही शैलेश की टीम
उनतीस जून को फाटा और रेलगांव को जोड़ने के लिये शैलेश और हर्ष ने योजना बनाई थी रोप वे बनाने के लिये। जब उन्होने मुझे बताया था इसके बारे में तो मुझे लगा था कि रोप वे बनाने में लगभग दस दिन तो लगेंगे ही। पहले इस प्रॉजेक्ट की फ़ण्डिन्ग की समस्या होगी। फिर सामान लाने की। तकनीकी सहयोग की दरकार अलग। पर आज तीन जुलाई है - विचार आने के बाद चौथा दिन।
और आज वह रोप वे बन कर तैयार है।
[caption id="attachment_7051" align="aligncenter" width="584"] फाटा के पास मन्दाकिनी पर शैलेश की टीम की माल ढुलाई के लिये बनाई रोप वे।[/caption]
सरकार को यह काम करना होता तो अभी इस पर बैठक हो रही होती या तहसील स्तर से जरूरत की एक चिठ्ठी भेजी गयी होती जिला मुख्यालय को। जल्दी से जल्दी भी बन कर यह तैयार होता १५ अगस्त के आसपास - और तब स्थानीय एमएलए या डीएम साहब इसका फ़ीता काट उद्घाटन करते। तब तक रेलगांव क्षेत्र के १०-१५ गांव रो-पीट कर अपनी हालत से समझौता कर चुके होते।
मैं इस योजना के क्रियान्वयन और उसकी स्पीड से बहुत प्रभावित हूं और मेरे मन में शैलेश, हर्ष तथा आलोक भट्ट के बारे में अहोभाव पनपा और पुख्ता हुआ है। आशा है भविष्य में इन सज्जनों से और अधिक इण्टरेक्शन होगा - सोशल मीडिया पर और आमने सामने भी।
शैलेश ने दोपहर १:४० पर मुझे यह चित्र भेजा था ह्वाट्स-एप्प पर।
[caption id="attachment_7052" align="aligncenter" width="584"] लोग एक पेड़ से तार बांध रहे हैं रोप वे बनाने के लिये[/caption]
इस चित्र में है कि लोग एक पेड़ से तार बांध रहे हैं रोप वे बनाने के लिये। लगभग ढ़ाई बजे नदी एक ओर तार बांधा जा चुका था। दूसरी ओर चेन-पुली न होने के कारण तार को लोगों द्वारा हाथ से खींच कर बांधना था। वह काम भी शैलेश एण्ड कम्पनी ने ही किया। [स्थानीय लोग अपने तरीके से ऊंचाई से उतर कर मन्दाकिनी पर एक लकडी का पुल बना सामान ढोने में व्यस्त थे। वह काफ़ी श्रमसाध्य काम है और लकड़ी के पुल की जिन्दगी भी मन्दाकिनी के पानी बढ़ने पर समाप्त होने की पर्याप्त आशंका है।] सम्भवत: उन्हे यह समाधान ऑफ-बीट लग रहा था। एक बार वे इस रोप वे पर सरलता से अधिक सामान बिना श्रम आते जाते देखेंगे तो इसकी उपयोगिता स्पष्ट होगी उन्हे।
[caption id="attachment_7053" align="aligncenter" width="584"] क्या फ़ाइव-स्टार लन्च है! शैलेश और साथी शाम चार बजे भोजन करते हुये।[/caption]
काम करते लोगों ने देर से ही भोजन किया होगा - लगभग शाम सवा चार बजे शैलेश ने चित्र भेजा जिसमें जमीन पर बैठे वे भोजन कर रहे हैं - क्या फ़ाइव-स्टार लन्च है! बहुत कम को ही यह वातावरण और यह भोजन नसीब होता होगा!
मैं दफ़्तर से शाम साढ़े सात बजे निकल रहा था, तब शैलेश का यह चित्र मिला जिससे यह स्पष्ट हुआ कि रोप वे कमीशन हो गया है। सांझ की रोशनी दिख रही है इसमें। नदी की धारा के बीचोंबीच सामान जाता दिख रहा है रोप वे के जरीये। शैलेश ने बताया कि इसमें लगभग ४० किलो वजन था। यद्यपि एक बार में तार की मजबूती के आधार पर लगभग २ क्विण्टल सामान ले जाया जा सकेगा रोप वे पर।
[caption id="attachment_7054" align="aligncenter" width="584"] रोप वे कमीशण्ड हो गया है। पहला पे-लोड भेजने को तैयार। वजन लगभग ४० किलो।[/caption]
पहली बार एक फ़ेरा सामान पंहुचाने में लगभग १० मिनट लगे। शैलेश का कहना है कि यह समय आगे रोप वे के उपयोग में रवां होने के साथ आधा हो जायेगा।
शैलेश का कहना है कि कल से यह रोप वे ग्रामीणों को उपयोग के लिये सौप दिया जायेगा - जिस तरह से भी वे उपयोग करना चाहें। इसको ले कर उनकी बहुत स्पून-फीडिन्ग नहीं की जायेगी।
[caption id="attachment_7055" align="aligncenter" width="584"] रोप वे से जाते सामान का एक अन्य दृष्य।[/caption]
यह रोप वे ग्रेविटी रोप वे नहीं है। तार लगभग धरती के समान्तर बांधा गया है। पर जैसा आप देख सकते हैं, पुली और तार के माध्यम से बहुत हल्के खींचने से ही सामान नदी पार कर सकता है। बल और समय - दोनो की बचत और नदी के उफान में होने पर भी यह काम करता रहेगा।
इतने त्वरित रूप से रोप वे बनने की अपेक्ष मुझे नहीं थी। इलाहाबाद में बैठे मैं थ्रिल महसूस कर रहा हूं। आप भी कर रहे हैं न?
[caption id="attachment_7056" align="aligncenter" width="584"] शैलेश और उनकी रोप वे के निर्माण में लगी टीम।[/caption]
और आज वह रोप वे बन कर तैयार है।
[caption id="attachment_7051" align="aligncenter" width="584"] फाटा के पास मन्दाकिनी पर शैलेश की टीम की माल ढुलाई के लिये बनाई रोप वे।[/caption]
सरकार को यह काम करना होता तो अभी इस पर बैठक हो रही होती या तहसील स्तर से जरूरत की एक चिठ्ठी भेजी गयी होती जिला मुख्यालय को। जल्दी से जल्दी भी बन कर यह तैयार होता १५ अगस्त के आसपास - और तब स्थानीय एमएलए या डीएम साहब इसका फ़ीता काट उद्घाटन करते। तब तक रेलगांव क्षेत्र के १०-१५ गांव रो-पीट कर अपनी हालत से समझौता कर चुके होते।
मैं इस योजना के क्रियान्वयन और उसकी स्पीड से बहुत प्रभावित हूं और मेरे मन में शैलेश, हर्ष तथा आलोक भट्ट के बारे में अहोभाव पनपा और पुख्ता हुआ है। आशा है भविष्य में इन सज्जनों से और अधिक इण्टरेक्शन होगा - सोशल मीडिया पर और आमने सामने भी।
शैलेश ने दोपहर १:४० पर मुझे यह चित्र भेजा था ह्वाट्स-एप्प पर।
[caption id="attachment_7052" align="aligncenter" width="584"] लोग एक पेड़ से तार बांध रहे हैं रोप वे बनाने के लिये[/caption]
इस चित्र में है कि लोग एक पेड़ से तार बांध रहे हैं रोप वे बनाने के लिये। लगभग ढ़ाई बजे नदी एक ओर तार बांधा जा चुका था। दूसरी ओर चेन-पुली न होने के कारण तार को लोगों द्वारा हाथ से खींच कर बांधना था। वह काम भी शैलेश एण्ड कम्पनी ने ही किया। [स्थानीय लोग अपने तरीके से ऊंचाई से उतर कर मन्दाकिनी पर एक लकडी का पुल बना सामान ढोने में व्यस्त थे। वह काफ़ी श्रमसाध्य काम है और लकड़ी के पुल की जिन्दगी भी मन्दाकिनी के पानी बढ़ने पर समाप्त होने की पर्याप्त आशंका है।] सम्भवत: उन्हे यह समाधान ऑफ-बीट लग रहा था। एक बार वे इस रोप वे पर सरलता से अधिक सामान बिना श्रम आते जाते देखेंगे तो इसकी उपयोगिता स्पष्ट होगी उन्हे।
[caption id="attachment_7053" align="aligncenter" width="584"] क्या फ़ाइव-स्टार लन्च है! शैलेश और साथी शाम चार बजे भोजन करते हुये।[/caption]
काम करते लोगों ने देर से ही भोजन किया होगा - लगभग शाम सवा चार बजे शैलेश ने चित्र भेजा जिसमें जमीन पर बैठे वे भोजन कर रहे हैं - क्या फ़ाइव-स्टार लन्च है! बहुत कम को ही यह वातावरण और यह भोजन नसीब होता होगा!
मैं दफ़्तर से शाम साढ़े सात बजे निकल रहा था, तब शैलेश का यह चित्र मिला जिससे यह स्पष्ट हुआ कि रोप वे कमीशन हो गया है। सांझ की रोशनी दिख रही है इसमें। नदी की धारा के बीचोंबीच सामान जाता दिख रहा है रोप वे के जरीये। शैलेश ने बताया कि इसमें लगभग ४० किलो वजन था। यद्यपि एक बार में तार की मजबूती के आधार पर लगभग २ क्विण्टल सामान ले जाया जा सकेगा रोप वे पर।
[caption id="attachment_7054" align="aligncenter" width="584"] रोप वे कमीशण्ड हो गया है। पहला पे-लोड भेजने को तैयार। वजन लगभग ४० किलो।[/caption]
पहली बार एक फ़ेरा सामान पंहुचाने में लगभग १० मिनट लगे। शैलेश का कहना है कि यह समय आगे रोप वे के उपयोग में रवां होने के साथ आधा हो जायेगा।
शैलेश का कहना है कि कल से यह रोप वे ग्रामीणों को उपयोग के लिये सौप दिया जायेगा - जिस तरह से भी वे उपयोग करना चाहें। इसको ले कर उनकी बहुत स्पून-फीडिन्ग नहीं की जायेगी।
[caption id="attachment_7055" align="aligncenter" width="584"] रोप वे से जाते सामान का एक अन्य दृष्य।[/caption]
यह रोप वे ग्रेविटी रोप वे नहीं है। तार लगभग धरती के समान्तर बांधा गया है। पर जैसा आप देख सकते हैं, पुली और तार के माध्यम से बहुत हल्के खींचने से ही सामान नदी पार कर सकता है। बल और समय - दोनो की बचत और नदी के उफान में होने पर भी यह काम करता रहेगा।
इतने त्वरित रूप से रोप वे बनने की अपेक्ष मुझे नहीं थी। इलाहाबाद में बैठे मैं थ्रिल महसूस कर रहा हूं। आप भी कर रहे हैं न?
[caption id="attachment_7056" align="aligncenter" width="584"] शैलेश और उनकी रोप वे के निर्माण में लगी टीम।[/caption]
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शैलेश पाण्डेय
Sunday, June 30, 2013
शैलेश की कार्य योजना - फाटा से मन्दाकिनी पर ग्रेविटी गुड्स रोप-वे राहत सामग्री के लिये
शैलेश गुप्तकाशी से चल कर फाटा में हैं। फाटा से मन्दाकिनी के उस पार करीब 10-15 गांवों की सूची है उनके पास। उन गांवों में लगभग चार-पांच हजार लोग हैं को राहत से कटे हैं। भूस्खलन से वहां जाना दुर्गम है। सड़क मार्ग से राहत गुप्तकाशी से कालीमठ-चौमासी होते हुये करीब 70 किलोमीटर चल कर वहां पंहुचाई जा सकती है।
[caption id="attachment_7035" align="aligncenter" width="584"] ग्रेविटी रोप वे[/caption]
फाटा से मन्दाकिनी के उस पार स्थान नीचाई पर है। नदी करीब 70 मीटर चड़ाई में है। अगर ग्रेविटी रोप-वे बनाया जाये (पुली के माध्यम से धरती की गुरुत्व शक्ति का प्रयोग कर रस्सी पर लटका कर राहत लुढ़काई जाये) तो काफी राहत तीव्रता से रेलगांव क्षेत्र में भेजी जा सकती है। जो स्थान/गाव इससे लाभ पायेंगे वे हैं - ग्रामसभा जाल- रेलगांव 600 लोग, जलतल्ला 700, चौमासी 1100, शायूगढ़ 300, ब्योंखी 1200, कुंजेठी - 500, कालीमठ 300, कबील्था 700, मनेरा 200 और खोम 300 की आबादी वाले आदि।
[caption id="attachment_7036" align="aligncenter" width="584"] ग्रेविटी रोप वे में सामान लदता हुआ।[/caption]
अभी शैलेश को सात-आठ हेलीकॉप्टर राहत सामग्री ले कर जाते दीख रहे हैं। पर ये कब तक काम करेंगे और इनकी लागत भी निश्चय ही बहुत होगी। शैलेश का विचार यह रोप-वे चार पांच दिन में कार्यांवित करने का है। इसमें (उनके अनुसार 2-3 लाख का खर्च आयेगा। लोगों ने सहायता देने की बात कही थी। अब वे उनके साथ सम्पर्क करेंगे। अगर सहायता मिली तो ठीक वर्ना अपने रिसोर्स इस यज्ञ में होम करने का विचार पक्का कर चुके हैं वे।
शैलेश के अनुसार; यही काम सरकार भी कर सकती है। पर शायद वहां सभी करने में समय बहुत ज्यादा लगता है। यही काम होने में महीना लग सकता है। आवश्यकता त्वरित काम करने की है।
शैलेश ने मुझे सामान की जरूरत भी बताई - उचित स्पेसीफिकेशन की 150 मीटर रस्सी देहरादून से खरीदनी पड़ेगी। वे लगभग छ पुली लेने की सोच रहे हैं। इसके अतिरिक्त कुछ और रस्सी भी चाहिये होगी। वे यह सामान ग्रामीणों को दे बनाने में उन्हे जोड़ना चाहते हैं। एक फेसीलिटेटर की भूमिका निभाते हुये।
मैने इण्टर्नेट पर ग्रेविटी रोप-वे के बारे में सर्च किया तो बहुत लिंक मिले। शैलेश तो वहां फाटा में हैं; मुझे यहां इलाहाबाद बैठे इस योजना की सरलता सोच कर जोश आ रहा है। ग्रेविटी माल ढुलाई की रोप वे बनाने का एक 6MB का मैनुअल भी मैने डाउनलोड कर लिया है!
[caption id="attachment_7039" align="aligncenter" width="584"] Gravity Goods Roapway - Design[/caption]
जो लोग सहायता देना चाहें, वे शैलेश पाण्डेय को सम्पर्क करें; जो दुआ करना चाहते हैं, वे नीचे टिप्पणी में करें! :lol:
[caption id="attachment_7037" align="aligncenter" width="584"] और चल पड़ा सामान ग्रेविटी रोप वे पर।[/caption]
[caption id="attachment_7038" align="aligncenter" width="584"] नदी की धारा के बीचोबीच ग्रेविटी रोप वे पर सामान[/caption]
[caption id="attachment_7040" align="aligncenter" width="584"] गुप्तकाशी-फाता-रेलगांव गूगल अर्थ पर।[/caption]
[caption id="attachment_7041" align="aligncenter" width="480"] Phata Rail; Guptkashi[/caption]
इस पोस्ट में आगे मिले इनपुट्स के आधार पर एडिटिंग सम्भव है।
[caption id="attachment_7035" align="aligncenter" width="584"] ग्रेविटी रोप वे[/caption]
फाटा से मन्दाकिनी के उस पार स्थान नीचाई पर है। नदी करीब 70 मीटर चड़ाई में है। अगर ग्रेविटी रोप-वे बनाया जाये (पुली के माध्यम से धरती की गुरुत्व शक्ति का प्रयोग कर रस्सी पर लटका कर राहत लुढ़काई जाये) तो काफी राहत तीव्रता से रेलगांव क्षेत्र में भेजी जा सकती है। जो स्थान/गाव इससे लाभ पायेंगे वे हैं - ग्रामसभा जाल- रेलगांव 600 लोग, जलतल्ला 700, चौमासी 1100, शायूगढ़ 300, ब्योंखी 1200, कुंजेठी - 500, कालीमठ 300, कबील्था 700, मनेरा 200 और खोम 300 की आबादी वाले आदि।
[caption id="attachment_7036" align="aligncenter" width="584"] ग्रेविटी रोप वे में सामान लदता हुआ।[/caption]
अभी शैलेश को सात-आठ हेलीकॉप्टर राहत सामग्री ले कर जाते दीख रहे हैं। पर ये कब तक काम करेंगे और इनकी लागत भी निश्चय ही बहुत होगी। शैलेश का विचार यह रोप-वे चार पांच दिन में कार्यांवित करने का है। इसमें (उनके अनुसार 2-3 लाख का खर्च आयेगा। लोगों ने सहायता देने की बात कही थी। अब वे उनके साथ सम्पर्क करेंगे। अगर सहायता मिली तो ठीक वर्ना अपने रिसोर्स इस यज्ञ में होम करने का विचार पक्का कर चुके हैं वे।
शैलेश के अनुसार; यही काम सरकार भी कर सकती है। पर शायद वहां सभी करने में समय बहुत ज्यादा लगता है। यही काम होने में महीना लग सकता है। आवश्यकता त्वरित काम करने की है।
शैलेश ने मुझे सामान की जरूरत भी बताई - उचित स्पेसीफिकेशन की 150 मीटर रस्सी देहरादून से खरीदनी पड़ेगी। वे लगभग छ पुली लेने की सोच रहे हैं। इसके अतिरिक्त कुछ और रस्सी भी चाहिये होगी। वे यह सामान ग्रामीणों को दे बनाने में उन्हे जोड़ना चाहते हैं। एक फेसीलिटेटर की भूमिका निभाते हुये।
मैने इण्टर्नेट पर ग्रेविटी रोप-वे के बारे में सर्च किया तो बहुत लिंक मिले। शैलेश तो वहां फाटा में हैं; मुझे यहां इलाहाबाद बैठे इस योजना की सरलता सोच कर जोश आ रहा है। ग्रेविटी माल ढुलाई की रोप वे बनाने का एक 6MB का मैनुअल भी मैने डाउनलोड कर लिया है!
[caption id="attachment_7039" align="aligncenter" width="584"] Gravity Goods Roapway - Design[/caption]
जो लोग सहायता देना चाहें, वे शैलेश पाण्डेय को सम्पर्क करें; जो दुआ करना चाहते हैं, वे नीचे टिप्पणी में करें! :lol:
[caption id="attachment_7037" align="aligncenter" width="584"] और चल पड़ा सामान ग्रेविटी रोप वे पर।[/caption]
[caption id="attachment_7038" align="aligncenter" width="584"] नदी की धारा के बीचोबीच ग्रेविटी रोप वे पर सामान[/caption]
[caption id="attachment_7040" align="aligncenter" width="584"] गुप्तकाशी-फाता-रेलगांव गूगल अर्थ पर।[/caption]
[caption id="attachment_7041" align="aligncenter" width="480"] Phata Rail; Guptkashi[/caption]
इस पोस्ट में आगे मिले इनपुट्स के आधार पर एडिटिंग सम्भव है।
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