Monday, March 26, 2012

गुटखा - पानमसाला

[caption id="attachment_5703" align="alignright" width="225" caption="श्री योगेश्वर दत्त पाठक। हमारे वाणिज्य निरीक्षक।"][/caption]

हमारे मुख्य वाणिज्य प्रबन्धक (माल यातायात) सुश्री गौरी सक्सेना के कमरे में मिले श्री योगेश्वर दत्त पाठक। श्री  पाठक उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय के वाणिज्य निरीक्षक हैं। उनके काम में पार्सल से होने वाली आय का विश्लेषण करना भी है।

श्री पाठक जागरूक प्रकार के इंसान हैं। अपने आस पास, रेलवे, खबरों आदि को देखते समझते रहते हैं। उन्होने बताया कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि पानमसाला बनाने वाली कम्पनियां उसे प्लास्टिक पाउच में नहीं बेच सकतीं। पानमसाला बनाने वाली कम्पनियां कानपुर में बहुत हैं। इस निर्णय से उनके व्यवसाय पर कस कर लात पड़ी। उन्हे अपने पाउच के डिजाइन बदलने में परिवर्तन करने में तीन महीने लगे। इन तीन महीनों में बाजार में गुटखा (या पानमसाला) की उपलब्धता कम हो जाने के कारण लोगों की गुटखा सेवन की प्रवृत्ति में अंतर आया। कई लोग गुटखा-पानमसाला से विमुख हो गये।

कानपुर से रेल पार्सल के रूप में बहुत सा गुटखा/पानमसाला बाहर जाता है। कानपुर की पार्सल आय लगभग एक करोड़ रुपये प्रतिमास हुआ करती थी, जो श्री पाठक के अनुसार अब पैंसठ लाख तक गिर गयी है। यह पानमसाला यातायात में भारी कमी होनेके कारण हुआ है। श्री पाठक ने बताया कि यह लोगों के पानमसाला सेवन की प्रवृत्ति में कमी के कारण भी हो सकता है। अब प्लास्टिक की बजाय पेपर के पाउच में बनने के कारण इसकी कीमत 1 रुपये से बढ़ कर दो रुपये हो गयी है। इसके अलावा पहले प्लास्टिक पाउच होने के कारण शेल्फ लाइफ आसानी से 6 महीने हुआ करती थी, पर अब पेपर पाउच में गुटखा डेढ़ महीने में ही खराब होने लगा है। निश्चय ही लोग गुटखा विमुख हुये हैं।

श्री पाठक ने बताया कि उत्तरप्रदेश में पिछली सरकार ने गुटखा पर उत्पादकर भी बहुत बढ़ा दिया था। अत: कुछ पानमसाला यूनिटें यहां से हट कर उत्तराखण्ड (या बेंगळूरु ?) चली गयी हैं।

[caption id="attachment_5704" align="aligncenter" width="584" caption="कोटेश्वर महादेव, शिवकुटी के प्रांगण में माला-फूल बेचने वाली मालिन। इनके पास गुटखा/पानमसाला के पाउच भी मिल जाते हैं। गुटखा भक्त सेवन करते हैं, शिव नहीं!"][/caption]

यह सूचना मिलने पर मैने कोटेश्वर महदेव मन्दिर के प्रांगण में फूल बेचने वाली महिला (जो सिगरेट-पानमसाला भी रखती है) से दो पाउच गुटखा खरीदा - राजश्री और आशिकी ब्राण्ड के। दोनो दो रुपये के थे। इनके पाउच पर मुख के केंसर का चित्र लगी चेतावनी भी थी। ये पाउच कागज के थे। आशिकी ब्राण्ड का पूर्णत: कागज था पर राजश्री ब्राण्ड के कागज पर एक चमकीली परत (शायद उसमें अल्यूमीनियम का अंश हो) थी।

[caption id="attachment_5705" align="alignleft" width="300" caption="मालिन जी से खरीदे दो रुपये वाले दो गुटखा पाउच।"][/caption]

मैने मालिन जी से पूछा गुटखा की बिक्री के बारे में। उन्होने बताया कि पिछले साल दो-तीन महीने तो ये पाउच आने बन्द हो गये थे। पर अब तो आ रहे हैं। लोग खरीदते भी है। उनके अनुसार बिक्री पिछले साल जैसी ही है - "सब खाते हैं, किसी को बीमारी की फिकर नहीं"!

खैर, मालिन का परसेप्शन अपनी जगह, पानमसाला यातायात कम जरूर हुआ है। दाम बढ़ने और पाउच की शेल्फ लाइफ कम होने से गुटखा कम्पनियों को लात अवश्य लगी है। दुकानों/गुमटियों पर जहां पानमसाला के लटकते पाउचों की लड़ियों के पीछे बैठा दुकानदार ठीक से दिखता नहीं था, अब उतनी लड़ियां नजर नहीं आती गुमटियों पर।

गुटखा नहीं खा रहे तो क्या खा रहे हैं लोग? सुश्री गौरी सक्सेना (जिन्होने हाल ही में चुनार तक की सड़क यात्रा की है) की मानें तो अब कस्बाई गुमटियों पर भी पाउच कम दीखे, उनमें सामने अंगूर रखे दिखे। अंगूर अब शहरी उच्च-मध्यम वर्ग की लग्जरी नहीं रहे - वे गांव-कस्बों तक  पंहुच गये हैं।

18 comments:

आशीष श्रीवास्तव said...

गुटका की बिक्री कम करने के लिये हर आड़े तेड़े, कानूनी/ग़ैरक़ानूनी तरीके को हमारा आंख मूंद कर समर्थन है जी!

Smart Indian - अनुराग शर्मा said...

@गुटखा नहीं खा रहे तो क्या खा रहे हैं लोग?
1. शराब आती है फिर भी नकली/अनधिकृत बनती है। क्या नकली गुटके नहीं बने?
2. जब गुटके की लत छूट गयी तो शराब की क्यों नहीं छूटती, इसका भी विश्लेषण कीजिये किसी आगामी पोस्ट में
3. यदि गुटके आदि के व्यापार पर निर्भर रहने के बजाय रेलवे प्रो-एक्टिव होकर स्वास्थ्यप्रद व्यवसायों, (यथा अंगूर) को प्रमोट करे तो कैसा रहे?

प्रवीण पाण्डेय said...

गुटके का आधार बंगलोर में आ रहा है, यह तो खतरे की घंटी है। कभी कभी गुटके पार्सल से होने वाली अधिक आय देश को कचोटती है।

kalptaru said...

किसी भी व्यापारिक नुक्सान का असर सभी जगह देखने को मिलता है।

vishvanaathjee said...

काश सर्वोच्च न्यायलय यह आदेश भी दें कि शराब बोतलों में न बेची जाय!
और यदि एक और आदेश दें कि सिगरेट के तंबाकु कागज़ मे न लपेटा जाय तो लोगों का सचमुच कल्याण हो जाएगा।
असली Pro-active judiciary यही है।
सांसदो से उम्मीद रखना बेकार है।
सोच रहा हूँ क्यों न हम इन न्यायाधीशों के powers को और बढा दें?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

अनूप शुक्ल said...

“सब खाते हैं, किसी को बीमारी की फिकर नहीं”!
सब खाने वाले भी यही कहते हैं। :)
सुश्री गौरी सक्सेना (जिन्होने हाल ही में चुनार तक की सड़क यात्रा की है) की चुनार यात्रा का विवरण सचित्र पोस्ट किया जाये। :)

पा.ना. सुब्रमणियन said...

कई प्रदेशों में गुटका प्रतिबंधित है फिर भी लोग ढून्ढ ही लेते हैं.

सलिल वर्मा said...

श्री योगेश्वर दत्त पाठक के आंकड़े वास्तव में एक सुखद सन्देश देने वाले हैं.. कैंसर से अधिक तो बुरी आदतों के कैंसर ने तबाह कर रखा है.. सार्वजनिक स्थलों जैसे सिनेमा हॉल या मॉल के टॉयलेट्स इन गुटखा खाने वालों के द्वारा टोयलेट-पॉट्स में फेंकी गयी पन्नियों के कारण भरे रहते हैं (चुइंग गम भी इनमें शामिल है)..
गुटखा खाने वालों को कैंसर होता हो कि न हो पता नहीं, लेकिन गुटखा उन्हें असभ्य बनाता है, यह तो देखा है.. जितने टन गुटखा की कंसाइनमेंट नहीं जाती होगी, उसके कई गुणा टन तो ये थूक यहाँ-वहाँ फेंकते रहते हैं..
गुटखा से दुराव के संकेत और अंगूर की बेटी के स्थान पर अंगूरों का सेवन.. एक वासंती बयार की तरह है!!

विष्‍णु बैरागी said...

कागज में पेक करने का यह प्रभाव भी हो सकता है - कल्‍पना नहीं थी। सकल रूप से सुखदायक है आपकी यह पोस्‍ट।

neeraj1950 said...

काश आपकी बात सच हो..मुझे तो यहाँ खोपोली में गुटखा खाने वालों में कोई कमी नज़र नहीं आई...हाँ लोग एक आध महीना परेशां जरूर रहे...मुंबई में भी दुकानों के बाहर गुटखे की लम्बी लड़ियाँ वैसी ही दिखीं...सरकार लाख चित्र लगा ले जिनको खाना है उनको खाना ही है...कोई अगर आत्महत्या पर उतारू ही हो जाय तो कोई माँ का लाल उसका भला क्या बिगड़ लेगा...ऊंची बिल्डिंग पर चढ़ने में रोक लगाओगे तो, दरिया की पुलिया पर से कूद जाएगा, पुलिया पर संतरी बिठाओगे तो रेल से कट जाएगा, रेल पटरियों पर फेंसिंग कर भी दोगे तो ज़हर खा लेगा, ज़हर खरीद पर प्रतिबन्ध लगाओगे खुद को आग लगा लेगा, आग बुझा भी दोगे तो ट्रेफिक सिग्नल को क्रास कर किसी से एक्सीडेंट कर मर जाएगा...मरने वाले को जैसे आप नहीं रोक सकते वैसे ही गुटखा बीडी शराब पीने वाले को कैसे रोकोगे...और रोको भी क्यूँ ? खाने दो...उसके मरने पर सरकार की सेहत पर क्या फरक पड़ने वाला है...वैसे भी न जाने कितने बेक़सूर रोज़ किन्हीं दूसरो कारणों से जैसे बीमारी ,भूख, गरीबी, मौसम, राजनैतिक दंगों, दंगा, धर्म के नाम हिंसा, पोलुशन, आदि अनेक कारणों से भी तो मरते ही हैं...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सबको बनारसी मगही पान तो मिलता नहीं...सादी सुर्ती अउर तीन सौ नम्बर का जर्दा डाल के, का करें बिचारे! गुटखे पर मरे जा रहे हैं। सलिल भैया अंगूर की बेटी छोड़ डिरेक्ट अंगूर सेवन पर जोर दे रहे हैं। ब्लॉग जगत साधूओं का अखाड़ा हो गया है का...? हाय राम ! कहां जांय ?

रवीन्द्र कुमार said...

गुठखा खाने के कुछ फायदे मैंने भी लिखे हैं http://vyangduniya.blogspot.in/2010/01/blog-post_5146.html

Saralhindi said...

Business will teach people how to smoke and then how to stop by by marketing their products.This way business creates jobs and effects people's life.

http://tinyurl.com/c8ezqsx

http://youtu.be/wysJTC8kHw4
[youtube http://www.youtube.com/watch?v=DjEU47fBeyU&w=560&h=315]


ભારત કી સરલ આસાન લિપિ મેં હિન્દી લિખને કી કોશિશ કરો……………….ક્ષૈતિજ લાઇનોં કો અલવિદા !…..યદિ આપ અંગ્રેજી મેં હિન્દી લિખ સકતે હો તો ક્યોં નહીં ગુજરાતી મેં?ગુજરાતી લિપિ વો લિપિ હૈં જિસમેં હિંદી આસાની સે ક્ષૈતિજ લાઇનોં કે બિના લિખી જાતી હૈં! વો હિંદી કા સરલ રૂપ હૈં ઔર લિખ ને મૈં આસન હૈં !

भारतीय नागरिक said...

सरकार के आंकड़े कहते हैं कि इससे पैदा होने वाली बीमारी के इलाज पर उससे अधिक धन खर्च हो जाता है जितना इन उत्पादों से टैक्स मिलता है. इसके बाद भी इनके उत्पादों को बंद न किया जाना क्या दर्शाता है.

पंछी said...

kash isi tarah gutka aur anay madak padartho ka sevan kam hota rahe aur ek din band ho jaye..

Gyandutt Pandey said...

दुकान दोनो की चलनी चाहिये। लत की भी और लत से इलाज की भी! :-)

समीर लाल "पुराने जमाने के टिप्पणीकार" said...

खाने वाले कहाँ इन वैधानिक चेतावनियों की फिकर करते हैं..हाँ, मगर एक जागरुकता तो आई है. लोगों ने खाना कम किया है.

Sakal Gharelu Ustad said...

aapka blog aur neeche ki tippaniya padh k 1 hollywood ki film yaad aa gayi- "Thank you for smoking". Kabhi moka mile to avashya dekhiyega. Halaanki saar uparlikhit baato se ekdum vipreet hai, lekin sikke ka dusra pehlu wahi hai.