Wednesday, April 25, 2012

लिमिटेड हाइट सब वे (Limited Height Sub Way)

[caption id="attachment_5773" align="alignright" width="300" caption="चौखट को अंतिम टच।"][/caption]

रेल की पटरियों को काटते हुये सड़क यातायात निकलता है और जिस स्थान पर यह गतिविधि होती है, उसे लेवल क्रॉसिंग गेट (समपार फाटक) कहा जाता है। समपार फाटक रेल (और सड़क) यातायात में असुरक्षा का एक घटक जोड़ देते हैं।

जैसे जैसे रेल और सड़क यातायात बढ़ रहा है, उनके गुणे के अनुपात में समपार फाटक की घटनाओं/दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। अगर दुर्घटनायें नहीं भी होती, तो भी सड़क वाहन द्वारा समपार फाटक क्षतिग्रस्त करने की दशा में सुरक्षा नियमों के अंतर्गत ट्रेनों की गति कम करनी पड़ती है और रेल यातायात प्रभावित होता है।

रेलवे का बस चले तो सभी समपार बन्द कर या तो ओवरब्रिज बना दिये जायें, या अण्डरब्रिज। पर ओवरब्रिज बनाना बहुत खर्चीला है और परियोजना पूरा होने में बहुत समय लेती है। यह तभी फायदेमन्द है जब समपार पर रेलxरोड का यातायात बहुत ज्यादा हो। इन परियोजनाओं में रेलवे और राज्य प्रशासन की बराबर की भागीदारी होती है। बहुधा दोनों के बीच तालमेल के मुद्दे बहुत समय ले लेते हैं।

इनकी बजाय कम ऊंचाई की पुलिया (लिमिटेड हाइट सब-वे) बनाना ज्यादा आसान उपाय है। तकनीकी विकास से यह कार्य त्वरित गति से किया जा सकता है।

लिमिटेड हाइट सब वे (एलएचएस) बनाने की एक तकनीक कट एण्ड कवर की है। इसके लिये पांच छ घण्टे के लिये रेल यातायात रोक दिया जाता है। इस समय में चौकोर गढ्ढा खोद कर उसमें पुलिया के आकार की प्री-फेब्रीकेटेड कॉंक्रीट की चौखट फिट कर दी जाती है। इन्ही पांच छ घण्टे में चौखट के आस पास मिट्टी भर कर उसके ऊपर रेल पटरी पूर्ववत बैठा दी जाती है। छ घण्टे बाद रेल यातायात निबाध गति से प्रारम्भ हो जाता है।

इस चौखट में सड़क बिछाने का काम रेल यातायात को बिना प्रभावित किये पूरा कर लिया जाता है। कुछ ही दिनों में बिना समपार फाटक के सड़क यातायात निर्बाध चलने लगता है।

रेलवे ने इस तरह के कट एण्ड कवर तकनीक से बहुत से समपार फाटकों को एलएचएस बना कर समाप्त करने की योजना बनाई है। इस योजना के अंतर्गत हमारे झांसी मण्डल में ग्वालियर और झांसी के बीच आंत्री और सन्दलपुर के बीच अप लाइन (ग्वालियर से झांसी जाने वाली) पर एक समपार को इस तकनीक से इसी महीने बदला गया। इस तकनीक से उत्तर मध्य रेलवे पर यह पहला कार्य था। छ अप्रेल के दिन सवेरे सात बजे से सवा बारह बजे के बीच यह कार्य किया गया। इस दौरान कुछ सवारी गाड़ियां डाउन लाइन (झांसी से ग्वालियर जाने वाली) की रेल पटरी से निकाली गयीं।

कार्य विधिवत और समय से सम्पन्न हुआ। मेरे झांसी रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक श्री एखलाक अहमद ने मुझे इस कार्य के चित्र भेजे हैं, जिन्हे आप नीचे स्लाइड-शो में देख कर अनुमान लगा सकते हैं कि किस प्रकार यह कार्य सम्पन्न हुआ होगा।    [slideshow]

28 comments:

akaltara said...

स्‍वागतेय.

indiasmart said...

बहुत सही तरीका है। हमारे देश को ऐसे ही हल चाहिये। जानकारी का अभार!

indiasmart said...

अच्छा तरीका है, जानकारी का अभार. पिछला कमेंट शायद गायब हो गया!

Gyandutt Pandey said...

गायब नहीं हुआ। आंखमिचौली खेला शायद! :-)

Kajal Kumar said...

वाह चि‍त्रों ने बात एकदम आसान कर दी.
वि‍श्‍व भर में अब लगभग प्रि‍फ़ेब्रीकेटेड तकनीक का ही प्रयोग होता है. भारत में यह तकनीक बहुत धीरे धीरे आ रही है और वह भी केवल वहीं जहां mass scale काम होता है वाक़ी जगह श्रमि‍क दर कम होने के कारण अभी भी ऑनसाइट कन्‍सट्रक्‍शन ही है जब कि‍ समूह- भवन नि‍र्माण में भी इसे बड़े पैमाने पर प्रयोग कि‍या जाना चाहि‍ये

Kajal Kumar said...

कमेंट ग़ायब ?

Gyandutt Pandey said...

नो नो नो! कमेण्ट कायम!

प्रवीण पाण्डेय said...

बंगलोर मंडल में सम्प्रति ८ स्थानों पर RUB बन रहे हैं, सब के सब Box pushing तकनीक से। २० किमी की गति सीमा, अस्थायी गर्डर और नित्य लगभग १ मी की pushing. डबल लाइन में १५ दिन और सिंगल लाइन में ८ दिन में कार्य संपन्न। कोई ब्लॉक नहीं।
भविष्य में सारे समपार बन्द करने का महाउद्देश्य जो है।

पा.ना. सुब्रमणियन said...

नयी जानकारी से ज्ञानवर्धन हुआ. आभार.

Mukesh Pathak (@MukeshPathakJi) said...

पढकर आँखे खुल गयीं और आशा जगी कि इस नवीन तकनीक का फायदा हमारे शहर रामपुर को भी मिलेगा. अब फ्लाई ओवर की मांग के बजाये एल एच एस की मांग रखना ज्यादा सुगम रहेगा...

Gyandutt Pandey said...

जी हां। इसकी डिमाण्ड पर कार्रवाई की सम्भावना बेहतर है।

sanjay @ mo sam kaun.....? said...

समय के साथ और जरूरत के हिसाब से तकनीक का प्रयोग किया जाए तो सबके हित में है| स्लाईड शो देखकर अच्छा लगा|

Manoj K said...

सिर्फ़ छः घंटे ! यह नई तकनीक वाकई उम्मीद जगाती है.

sharmila said...

jaakaari ke liye dhanyavaad.chitron dwara varnan badhiya raha.

सलिल वर्मा said...

बहुत ही अच्छा उदाहरण रेलवे अभियांत्रिक सेवा का.. मुझे याद आया जब दिल्ली में मेट्रो रेल का काम चल रहा था और भूमिगत कार्य बाराखम्बा रोड और कनॉट प्लेस के बीच हो रहा था.. यह सड़क दिल्ली की व्यस्ततम सडकों में से एक है.. किन्तु उन्होंने पहले एक डायवर्सन के ज़रिये पक्की सड़क बनायी और फिर मुख्य सड़क को बंद किया.. पूरे निर्माण कार्य के दौरान यातायात तनिक भी बाधित नहीं हुआ!!
बहुत अच्छी जानकारी!!

neeraj1950 said...

लिमिटेड हाईट सब के फायदे अधिक हैं नुक्सान कम...नुक्सान सिर्फ बारिश के दिनों में होता है जब पानी इस लो लेवल में भर जाता है और सड़क यातायात अटक जाता है...मुंबई का मिलिन सब वे इसका जीता जागता उधाहरण है...लेकिन ऐसा हर कहीं नहीं होता...इस जानकारी के लिए आपका आभार...

नीरज

Gyandutt Pandey said...

रेल पुल पर भी डायवर्शन डाल कर ट्रेने चलाने और पुल की मरम्मत का काम किया जाता है।

[लगता है गंगाजी के कछार पर लिखने का मसाला न होता तो इसी तरह की चीजें ब्लॉग पर डाल कर मानसिक हलचल को धकाया जा सकता था! :-) ]

Gyandutt Pandey said...

मेरे दफतर के पास एक लिमिटेड हाइट सब-वे है। उसमें पानी नहीं भरता। कभी उसका फोटो/विवरण प्रस्तुत करूंगा।

Sakal Gharelu Ustad said...

is technique ke dwara to chaurahe bhi red-light free kiye ja sakte hain. Aur jahan red-light na ho wahan bhi yatayat niyantrit aur surakshit karne ke liye accha tarika hai. Kya koi aisi pariyojna aayi hai aapki nazar mein?

Gyandutt Pandey said...

रोड-टू-रोड क्रॉसिंग के लिये इसका प्रयोग तो नहीं सुना।

Asha Joglekar said...

नई तकनीक स्वागतेय है ।आपका स्लाइड शो बहुत अच्छा रहा ।

sanjay jha said...

dono ka kambo pack chalta rahe? harz kya hai?

suna pichle dino aswasth rahe.......ab kaise hain?


pranam.

Gyandutt Pandey said...

नमस्कार संजय। अब ठीक ठाक है।
धन्यवाद।

अनूप शुक्ल said...

काटो, बिछाओ, चलो तकनीक शानदार है।

Vijay said...

Sir, your blog is very very informative u r an motivator for me
http://millionsontheweb.wordpress.com/

udantashtari said...

अच्छा तरीका है...

kalptaru said...

इस तकनीक का हुबहू नहीं परंतु इसका भव्य रूप आप बैंगलोर में अंडरपास के रूप मॆं देख सकते हैं, जिससे बहुत सारे चौराहों को लाल बत्ती फ़्री कर दिया गया है ।

प्रवीण चन्द्र रॉय said...

तकनीक साझा करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया जनाब ....................