Saturday, January 12, 2013

उठो; चलो भाई!

[caption id="attachment_6542" align="alignright" width="224"]बीमार ज्ञानदत्त का लेटेठाले स्केच। बीमार ज्ञानदत्त का लेटेठाले स्केच।[/caption]

अनूप शुक्ला जब भी बतियाते हैं (आजकल कम ही बतियाते हैं, सुना है बड़े अफसर जो हो गये हैं) तो कहते हैं नरमदामाई के साइकल-वेगड़ बनना चाहते हैं। अमृतलाल वेगड़ जी ने नर्मदा की पैदल परिक्रमा कर तीन अनूठी पुस्तकें - सौन्दर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे तीरे नर्मदा लिखी हैं। साइकल-वेगड़ जी भी (नर्मदा की साइकल परिक्रमा कर) ट्रेवलॉग की ट्रिलॉजी लिखें, शुभकामना।

अभी यहां अस्पताल में, जब हाथ में इण्ट्रावेनस इन्जेक्शन की ड्रिप्स लग रही हैं और एण्टीबायोटिक अन्दर घुसाये जा रहे हैं; मैं यात्रा की सोच रहा हूं। यही होता है - जब शरीर बन्धन में होता है तो मन उन्मुक्तता की सोचता है।

मैं रेल की नौकरी वाला, ट्रेने चलवाना जिसका पेशा हो और जिसे और किसी चीज से खास लेना देना न हो, उसके लिये यात्रा - ट्रेवल ही सब कुछ होना चाहिये। पर मेरे पास ट्रेवल ही नहीं है। या ट्रेवल के नाम पर शिवकुटी का गंगाजी का फाफामऊ के पुल से निषादघाट तक का वह क्षेत्र है, जहां से कच्ची शराब का बनना सेफ दूरी से देखा जा सके। मेरे कथन को एक ट्रेवलर का कथन नहीं माना जा सकता।

इस लिये, जब मैं यह अपनी स्कैपबुक में दर्ज करता हूं - एक औसत से कुछ अधिक बुद्धि का इन्सान, जिसे लोगों से द्वेष न हो, जो आत्मकेन्द्रित न हो, जो सामान्य तरीके से मानवता की भलाई की सोचता हो, जो यात्रा कर देखता, परखता, लोगों से इण्टरेक्ट करता और अपनी ऑब्जर्वेशन रिकॉर्ड करता हो; वह मानव इतिहास में आसानी से जगह पा सकता है - तो मैं अपनी सोच ईमानदारी से प्रस्तुत करता हूं। पर उस सोच की सत्यता के बारे में बहुत आश्वस्त नहीं होता। ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस सोच के अनुसार हैं - गुरु नानक, जीसस क्राइस्ट या बुद्ध जैसे भी।

पर मैं साइकल-वेगड़ या रेल-वेगड़ बन कर भी आत्म संतुष्ट हो जाऊंगा।

शैलेश पाण्डेय ने पूर्वोत्तर की यात्रा ज्वाइन करने का न्योता दिया है - मोटर साइकल पर। सुकुल ने साइकल पर नर्मदा यात्रा का। मुझे मालुम है इनमें से दोनों पर मैं नहीं निकलने वाला। ... पर ये न्योते, ये सोच और ये आग्रह यह बताते हैं कि एक आध ठीक ठाक ट्रेवलॉग अपने हिस्से भी भगवान ने लकीरों में लिख रखा है। निकलना चाहिये।

उठो; चलो भाई!

(यह पोस्ट कल १२ जनवरी को पब्लिश होगी। तब तक शायद डाक्टर विनीत अग्रवाल, यहां रेलवे के मुख्य फीजीशियन मुझे अस्पताल से छुट्टी देने का निर्णय कर लें।)

35 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अरे क्या हो गया गुरुदेव? ठंड ने फिर चोट कर दी शायद।
अभी तो मैं भी आपकी रेलगाड़ी पकड़कर रायबरेली आने-जाने लगा हूँ। बहुत डर है ठंड का। :(

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आप प्रेरक बन यूँ ही सदा उत्साहित करते रहें। स्वस्थ हों..दीर्घायु हों..यात्रा का मजा लेते रहें।

neeraj said...

उम्मीद है आप हस्पताल से छुट्टी पा चुके होंगे . ऐसा कीजिये तुरंत मुंबई का टिकट कटाइये, आपको तो परेशानी होगी नहीं इसमें, और चले आईये। मुंबई में हम आपके स्वागत को तैयार रहेंगे। उसके बाद मुंबई से खोपोली तक के रास्ते पे ट्रेवलाग लिखिए। आसपास के मनोरम स्थानों की सैर भी करवा देंगे और अगर आस्था है तो शिर्डी के दर्शन भी। एक हफ्ते के खोपोली प्रवास में आपकी तबियत चकाचक न करवा दी जो थोड़ी बहुत मूंछ बची है वो हम मुढ्वा देंगे,,,कसम से। बस सोचिये मत क्यूँ की सोच सोच के आप अब तक कितने ही साल बर्बाद कर चुके हैं .


नीरज

Gyandutt Pandey said...

डॉक्टर साहब ने कहा, कल छोडेंगे.
:-(

neeraj1950 said...

क्या आप भी इत्ती सी बात पे मुंह लटका लिए हैं ।जहाँ इत्ते दिन वहां एक दिन और सही . आपके बिना भी रेलगाड़ियाँ चल रही हैं ना काहे टेंशन लेते हैं,,और हाँ खोपोली आने वाली बात को आप हमेशा की तरह गोल कर गए,,,मत आईये, काटते रहिये डाक्टरों के चक्कर , हम क्या कर सकते हैं।

Sushil Kumar said...

एक-दो बार मैंने आपसे जानना चाहा कि एक महीने से आप कुछ लिख क्यूँ नहीं रहे हैं। मुझे लगा शायद आप व्यस्त होंगे, लेकिन ये पता न था कि आप बीमार हैं। जल्दी से स्वास्थ्य लाभ कीजिये और कुम्भ-क्षेत्र का भ्रमण करके बतायें कि जब संगम में आठ करोड़ श्रद्धालुजन जलप्रवेश करेंगे तो आर्किमिडिज़ के सिद्धांत अनुसार संगम की मछलियाँ किस ओर पलायन करेंगी। :D

Saurabh said...

आप शीघ्र स्वस्थ हो जाइये यही मेरी कामना है। फिर चलिए, पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा की जाएगी
वहां जी भर के लिखियेगा :)

प्रवीण पाण्डेय said...

आप शीघ्र ही ठीक हो जायें। मालगाड़ी दूर दूर तक चली तो जाती हैं, कोई संस्मरण नहीं लिख पाती हैं, काश लिख पाती तो आपका साहित्य प्रखरतम होता।

Gyandutt Pandey said...

:-D :-D :-D

सतीश सक्सेना said...

आप शीघ्र स्वस्थ हों भाई जी ! मंगल कामनाएं आपके लिए ...

indowaves said...

उम्मीद है आप जल्द ही भले चंगे होकर अस्पताल की घुटन भरी खामोशी से बाहर निकल आयेंगे ..वैसे "उठो; चलो भाई!" आपके शीर्षक से विवेकानन्द के इस कथन की याद आना स्वाभाविक है "Arise,awake,stop not until your goal is achieved." जिनके जन्म के 150 साल आज पूरे हो गए।।। इस पर मेरा एक लेख है ..समय मिले तो देखे:

http://indowaves.wordpress.com/2013/01/11/swami-vivekananda-the-maker-of-lions/

-Arvind K.Pandey

अनूप शुक्ल said...

सबेरे जब आपकी यह पोस्ट देखी थी तो उस समय हमारे साथ हमारे संभावित नर्मदा यात्री बैठे थे। हम उनको आपकी पोस्ट दिखाकर कहे कि अब लगता है यात्रा करनी ही पड़ेगी। :)
आपकी पोस्ट पढ़कर ही पता चला कि फ़ेसबुक सूनसान किस लिये रहा इसबीच। वैसे आप ये बिना अनुमति के बीमार कैसे पड़ लेते हैं जी। :)
ये अच्छी बात नहीं। :)
फोन करते हैं अभी जरा इसे पोस्ट करके। साथ ही आपके विभाग की सेवाओं के सहारे प्रस्थान करते हैं कानपुर के लिये।

आप जल्दी से चकाचक होइये। बीमारी में एक पोस्ट बहुत है।
ठीक है न! :)

Gyandutt Pandey said...

अच्छा, यह पोस्ट आप पर यात्रा करने का दबाव प्रस्तुत करेगी, नहीं सोचा था। एक ठीक बाइ-प्रोडक्ट है वह।
मैं सोचता था पोस्ट मुझपर एक दबाव बनायेगी। वह होगा, कहा नहीं जा सकता।

Gyandutt Pandey said...

मेरे ख्याल से विवेकानन्द जी का नाम भी " गुरु नानक, जीसस क्राइस्ट या बुद्ध जैसे" में जोड़ा जा सकता है पोस्ट में।
आपने सही याद दिलाया।

Gyandutt Pandey said...

पिण्डारी ग्लैशियर! ग्रेट!

Gyandutt Pandey said...

लिखना तो व्यस्तता और मनमौजियत - दोनो के कारण नहीं हो रहा था।
मछलियों की दशा दिशा तो आर्किमिदीज़ कम, केवट लोग ज्यादा अच्छा बतायेंगे! :)

Gyandutt Pandey said...

हां, वहां एक सज्जन फेसबुक पर सही सलाह दे रहे थे - MST जिन्दाबाद!

Gyandutt Pandey said...

विचार आता है: एक यात्रा हो सकती है मालगाड़ी के गार्ड के साथ - एक दिन में करीब सौ किलोमीटर की। ... एक कोयले की गाड़ी कतरासगढ़ से रोपड़ तक की। या एक प्याज की गाड़ी नासिक से डिब्रूगढ़ की।

Gyandutt Pandey said...

धन्यवाद बेचैन आत्मा जी।
(आपकी आत्मा बेचैन नहीं लगती। बेचैन तो साम्यवादी लगते हैं, उनकी आत्मा ही नहीं होती!)

Gyandutt Pandey said...

धन्यवाद।

Kajal Kumar said...

शीघ्र स्‍वस्‍थ हो कर अपनी दि‍नचर्या में जुटें. शुभकामनाएं. :)

समीर लाल "टिप्पणीकार" said...

साईकल यात्रा द्वारा नर्मदा परिक्रमा कर साइकल सुकुल ही रहने दें वरना साइकल वेगड़ नाम से अति उत्साहित हो यात्रा का ख्याल त्याग ही न दें.... :)

आप शीघ्र स्वस्थ होईये जी अब...बहुते आराम करने लगे हैं आप!!

उठो; चलो भाई!

प्रवीण शाह said...

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@ ये न्योते, ये सोच और ये आग्रह यह बताते हैं कि एक आध ठीक ठाक ट्रेवलॉग अपने हिस्से भी भगवान ने लकीरों में लिख रखा है। निकलना चाहिये।

अच्छे काम में देर नहीं करनी चाहिये, जैसे ही डॉक्टर विनीत अग्रवाल छुट्टी दें, निकल पड़िये... स्वास्थ्य भी अपने मन की करना मिलने पर खुदबखुद चकाचक हो जाता है... :)


...

सलिल वर्मा said...

अरे! यह क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, क्यूँ हुआ?? यह बिलकुल गलत बात है कि आप चुपचाप बीमार पड़ गए और हमें यानि आपके चाहने वालों को खबर ही नहीं.. खैर मजाक से परे, जल्दी ही स्वस्थ हो जाइए और खिचड़ी घर पर सबके साथ मनाइए...
फाफामऊ से लेकर छिवकी तक की यात्रा बहुत है आपके लिए.. आराम कीजिये और जल्द से जल्द से अच्छे होकर नयी कहानी लेकर आइये.. वैसे अच्छे होने का ये मतलब नहीं कि आप बुरे हैं!!
Wish you a speedy recovery!!

mehta said...

phir hospital main, aisa kyon? get well soon. I always remember you. Retired in Nov'12.

Gyandutt Pandey said...

बहुत धन्यवाद मेहता जी! मात्र आपकी ई मेल आई.डी. से पहचान नहीं पाया... जब अपनी गूगल मेल के कॉण्टेक्ट्स सर्च किये तो पता चला कि आप राजीव मेहता जी हैं। आपके साथ तो अनेक स्मृतियां जुड़ी हैं, सर! कहां हैं आप?!

sanjay jha said...

sighra swasthya labh ke liye subhkamnayen.............


pranam.

neeraj said...

डाक्टरों का आपके प्रति मोह भंग हुआ या नहीं या अभी भी आपको हास्पिटल के बेड पर चिपकाए हुए हैं? लौटती डाक से सूचित करें। आपके वहां पतंगें उडती हैं या नहीं,,,उडती हैं तो उड़ाइये और नहीं उड़ती तो उड़ाने के ख्वाब देखिये, तबियत मस्त हो जाएगी।

नीरज

Gyandutt Pandey said...

डॉक्टर साहब ने छोड़ा नहीं, बस पेरोल पर रिहा किया है! :-(

DrArvind Mishra said...

डाकटर ने अब छोड़ दिया होगा -अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखिये

विष्‍णु बैरागी said...

पहली जनवरी से फेस बुक से नाता तोड रखा है और मन अनमना बना हुआ है। सो, सब कुछ आत्‍मकेन्द्रित सा ही बना हुआ है। इसीलिए, आपके अस्‍वस्‍थ होने की पहली सूचना आज मिल पाई। उम्‍मीद है, अब तक आप घर लौट चुके होंगे और पूर्वानुसार अफसरी भी शुरु हो गई होगी।

अपने स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखिएगा। मन-कुरंग न तो थकता है न ही रुकता है। लिहाजा, विवेक से इसे नियन्त्रित किए रहिएगा और घर तथा दफ्तर के अतिरिक्‍त यात्राओं की सोचिएगा भी नहीं। आप स्‍वस्‍थ बने रहेंगे तो सब कुछ होता रहेगा।

आपकी नौकरी ही नहीं, ब्‍लॉग जगत की भी कुछ जिम्‍मेदारी आपके माथे पर बनी हुई है - यह याद रखिएगा। खुद के लिए न सही, बाकी सब के लिए।

ANIL KUMAR (@AnilAarush) said...

Tabhi kahun main mahine se har roj aa raha hu yahan gaari tengda se aage nahin badh rahi hai. swasthya labh ki shubhkamana

RAJESH NAVHAL said...

sir, good afternoon
aap se connect hoker gurv mahasus kar raha hu. Ajkal Assit. Project Manager ki post par AMBALA me posted hu.DFCCIL Eastern Coridor me.

Gyandutt Pandey said...

स्वागत! राजेश!

पा.ना. सुब्रमणियन said...

आपके स्वस्थ्य के लिए मंगल कामनायेन