Wednesday, May 22, 2013

गड्डी गुरू

[caption id="attachment_6902" align="aligncenter" width="336"]गड्डी गुरू गड्डी गुरू[/caption]

सवेरे गड्डी गुरू अक्सर मिल जाते हैं कछार में सवेरे सैर करते। बड़े ही यूनीक व्यक्तित्व हैं।  सैर करते हुये अक्सर ताली बजाते रहते हैं। इसमें उनका व्यायाम भी होता है। हाथ आगे ले जा कर या ऊपर ले जा कर ताली बजाते हैं। दूर से ताली की आवाज सुनाई पड़े तो अनुमान लगा सकते हैं कि गड्डी गुरू होंगे।

वे पहले कटरा में होलसेल में सुपारी और सिगरेट का व्यवसाय करते थे। अपने लूना पर सुपारी और सिगरेट के बड़े थैले लाद कर इलाहाबाद के कोने कोने में हो आते थे। हर जगह के हर तरह के किस्से उनके पास हैं। और वे किस्से सुनने के लिये आपको बहुत खोदना नहीं पड़ता। बड़े सरल भाव से सुनाते चले जाते हैं वे।

याद करूं तो सबसे पहले गड्डी गुरू को दो तीन साल पहले बरसात के बाद देखा था। बरसात के बाद पानी कम होने लगता है गंगाजी में और उथले पानी में जाल बाँध कर मछेरे पकड़ते हैं मछलियाँ। ऐसा करते मैने पहली बार देखा तो मुझे कौतूहल हुआ। गड्डी गुरू वहीं पास में थे, इस जुगाड़ में कि मछेरों से खरीद सकें मछली। उन्होंने मुझे बताया यह जाल बाँध कर मछली पकड़ने का मेकेनिज्म। तब से मैं उन्हें काफी अरसे तक बंगाली समझता था - उनकी मछली के विषय में विषय-वासना के कारण। पर उनसे मिलते गये और परिचय हुआ तो पता चला कि वे वीरेन्द्र कुमार वर्मा हैं। शुद्ध यूपोरियन और इलाहाबादी जीव।

गड्डी गुरू अब अपना सुपारी का होलसेल का काम छोड़ चुके हैं। उन्होने बताया कि स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता था और जितनी मेहनत वह व्यवसाय मांगता था, उतनी हो नहीं पा रही थी। इस लिये छोड़ दिया। अन्यथा अपने काम के सिलसिले में पूरे इलाहाबाद - दारादंज, मुठ्ठीगंज, रसूलाबाद ... सब जगह हो आते थे। अब वे कमॉडिटी मार्केट में कम्प्यूटर पर लेनदेन करते हैं। उन्होने उसकी इण्ट्रीकेसीज मुझे समझाने की कोशिश की; जो मेरे अन्दर का जिद्दी न-समझ तैयार न हुआ समझने को।

गड्डी गुरू मछली और आचमन के शौकीन हैं। पता चला कि चरनामृत पान की तलाश में कछार में जो अवैध कच्ची शराब के कारखाने चलते हैं गंगाकिनारे और गंगा के टापुओं पर; उनतक भी वे हो आये हैं। उन्होने मुझे बताया कि कैसे आसवन कर वे लोग महुआ, गुड़ आदि से शराब बनाते हैं। बहुत व्यवहारिक अनुभव है उनमें।

[caption id="attachment_6903" align="aligncenter" width="448"]सवेरे की सैर के मित्रगण - बायें से दो सिंह साहब, गड्डी गुरू और रावत जी। सवेरे की सैर के मित्रगण - बायें से दो सिंह साहब, गड्डी गुरू और रावत जी।[/caption]

वीरेन्द्र जी से कछार भ्रमण के कारण बहुत अपनापा हो गया है। वे एक दिन जिज्ञासा व्यक्त कर रहे थे कि मैं इतनी फोटो खींचता रहता हूं, गंगा किनारे; उस सब का करता क्या हूं? मैने उन्हे और उनके साथ दो अन्य सज्जनों को, जो सवेरे की सैर के मित्र हैं, को घर पर आने का आमंत्रण दिया और उन्हे लैपटॉप पर अपनी ब्लॉगिंग की प्रक्रिया दिखाई। मैने उन्हे यह भी बताया कि इस माध्यम से शिवकुटी के कछार को भारत और दुनियाँ के अन्य हिस्सों को परिचित करा रहा हूं मैं। उन्हे मेरे व्यक्तित्व के एक नये आयाम का पता चला और मेरे परिवार को तीन और प्रगाढ़ मित्र मिले।

कुछ दिन पहले गड्डी गुरू बडौदा ग्रामीण बैंक की ओर से एक महा-दौड़ में भाग लेने गये। वहां एक फ़्री में गंजी मिली पार्टिसिपेण्ट्स को। गड्डी गुरू आजकल वही बनियान पहन कर सवेरे दिखते हैं गंगा कछार भ्रमण में!




[caption id="attachment_6914" align="aligncenter" width="475"]बड़ौदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक की टी-शर्ट पहने गड्डी गुरू। बड़ौदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक की टी-शर्ट पहने गड्डी गुरू।[/caption]

गड्डी गुरू के बारे में यह परिचय पर्याप्त है, मेरी ब्लॉग पोस्टों की लम्बाई के हिसाब से। अब वे यदा कदा ब्लॉग पर आते रहेंगे!

गड्डी गुरू के कुछ चित्र स्लाइड शो में -

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19 comments:

ak.mishra@rkbk.in said...

Dear Bhaiya
Have got read about Gaddi Guru.
Very Interesting.

But fail to understand the meaning of
Gaddi from your post.

Perhaps , deals in new currency, being
The season of Sadi-Viyah , he may have been supplying new currency to the needs on taking exchange.
Regards
Anand
Sent from BlackBerry® on Airtel

Smart Indian - अनुराग शर्मा said...

रोचक मुलाक़ात है। आपकी सैर चलती रहे और पाठकों को भी मित्र मिलते रहें। हर हर गंगे!

अनूप शुक्ल said...

गुड्डी गुरु से परिचय अच्छा रहा।
अब आप समझिये कि अपने घर के पास टहलते हुये ही आपको इत्ते मित्र मिल गये तो कहीं आप ’गाफ़िल होकर दुनिया की सैर करने’ निकलते तब कित्ते लोगों से मिलना होता।

Vivek Rastogi said...

नशा पता नहीं कितनी ही व्यवहारिक जगहों की सैर करवा देता है, जहाँ आमतौर पर व्यक्ति कभी जा ही नहीं पाता ।

Gyandutt Pandey said...

आगे के लिये प्रश्न भी रहने चाहियें! :-)

पा.ना. सुब्रमणियन said...

गंगा कछार से और आपके ब्लॉग के एक नए पात्र से परिचय हुअ. अच्छा लगा.

Ram Arya (@aryaraju) said...

जय हो गुड्डी गुरु जी की!

Ram Arya (@aryaraju) said...

काफी रोचक व्यक्तित्व है!!!

प्रवीण पाण्डेय said...

कछार में विस्तार होता जा रहा है, गंगा किनारे ज्ञान पल्लवित हो रहा है।

दीपक बाबा said...

वर्माजी, रोचक तो है, पर इनका नाम गड्डी गुरु क्यों पड़ा..?

दीपक बाबा said...

पिछले कई दिन से आपके ब्लॉग पर कमेंट्स नहीं जा रहा ..

Sanjeet Tripathi said...

आपकी गंगा और कछार रिपोर्टिंग के चलते अपन भी नए नए व्यक्तित्व से परिचित हुए चल रहे हैं। सभी में कुछ न कुछ एक अलग खास बात है।

दीपक बाबा said...

हम्म..... जीमेल से जा रहा है.


2013/5/22 दीपक बाबा

> पिछले कई दिन से आपके ब्लॉग पर कमेंट्स नहीं जा रहा ..
>
>

Gyandutt Pandey said...

आगे के लिये प्रश्न भी रहने चाहियें! :)

S Chander said...

How do you write in Hindi

Gyandutt Pandey said...

One can use Google Transliterate IME for Hindi - http://bit.ly/15Q3Pd5

Abhishek said...

रूचि लेने वाला चाहिए। रोचक तो सभी होते हैं :)

विष्णु बैरागी said...

शीर्षक पढ कर लगा था, कोई श्‍वेत-केशी बूढा होगा आपका नायक। लेकिन वे तो अच्‍छे-खासे 'नौजवान' लग रहे हैं।

कछार की पहली तेज बारिश के बाद | मानसिक हलचल said...

[…] गड्डी गुरू ने कहा कि कोई बंगाली होता तो इन सभी को पकड़ ले जाता। अचार बनता है इनका। बड़े मेढ़क का बड़ा टर, छोटे का छोटा टर! … जीव जीवस्य भोजनम! […]