Saturday, February 18, 2012

सोनतलाई

[caption id="attachment_5313" align="alignright" width="300" caption="सोनतलाई से ट्रेन चली तो नदी। शायद तवा।"][/caption]

घण्टे भर से ज्यादा हो गया, यहां ट्रेन रुकी हुई है। पहले सरसों के खेत देखे। कुछ वैसे लगे जैसे किसी मुगल बादशाह का उद्यान हो। दो पेड़ आपस में मिल कर इस तरह द्वार सा बना रहे थे जैसे मेहराबदार दरवाजा हो उस उद्यान का। उनसे हट कर तीन पेड़ खड़े थे - कुछ कुछ मीनारों से।

एक छोटा कुत्ता जबरी बड़े कुकुर से भिड़ा। जब बड़के ने झिंझोड़ दिया तो किंकियाया और दुम दबा कर एक ओर चला गया। बड़े वाले ने पीछा नहीं किया। सिर्फ विजय स्वरूप अपनी दुम ऊर्ध्वाकार ऊपर रखी, तब तक, जब तक छोटा वाला ओझल नहीं हो गया।

स्टेशन के दूसरी ओर ट्रेन के यात्री उतर उतर कर इधर उधर बैठे थे। स्टेशन का नाम लिखा था बोर्ड पर सोनतलाई। नाम तो परिचित लगता है! वेगड़ जी की नर्मदा परिक्रमा की तीनों में से किसी पुस्तक में जिक्र शायद है। घर पंहुचने पर तलाशूंगा पुस्तकों में।[1]

दूर कुछ पहाड़ियां दीख रही हैं। यह नर्मदा का प्रदेश है। मध्यप्रदेश। शायद नर्मदा उनके उस पार हों (शुद्ध अटकल या विशफुल सोच!)। यहां से वहां उन पहाड़ियों तक पैदल जाने में ही दो घण्टे लगेंगे!

एक ट्रेन और आकर खड़ी हो गयी है। शायद पैसेंजर है। कम डिब्बे की। ट्रेन चल नहीं रही तो एक कप चाय ही पी ली - शाम की चाय! छोटेलाल चाय देते समय सूचना दे गया - आगे इंजीनियरिंग ब्लॉक लगा था। साढ़े चार बजे क्लियर होना था, पर दस मिनट ज्यादा हो गये, अभी कैंसल नहीं हुआ है।

बहुत देर बाद ट्रेन चली। अरे! अचानक पुल आया एक नदी का। वाह! वाह! तुरंत दन दन तीन चार फोटो ले लिये उस नदी के। मन में उस नदी को प्रणाम तो फोटो खींचने के अनुष्ठान के बाद किया!

कौन नदी है यह? नर्मदा? शायद नर्मदा में जा कर मिलने वाली तवा!

अब तो वेगड़ जी की पुस्तकें खंगालनी हैं जरूर से![slideshow]

[फरवरी 9'2012 को लिखी यात्रा के दौरान यह पोस्ट वास्तव में ट्रेन यात्रा में यात्रा प्रक्रिया में उपजी है। जैसे हुआ, वैसे ही लैपटॉप पर दर्ज हुआ। मन से बाद में की-बोर्ड पर ट्रांसफर नहीं हुआ। उस समय मेरी पत्नी जी रेल डिब्बे में एक ओर बैठी थीं। उन्होने बताया कि जब सोनतलाई से ट्रेन चली तो एक ओर छोटा सा शिवाला दिखा। तीन चार पताकायें थी उसपर। एक ओर दीवार के सहारे खड़ा किये गये हनुमान जी थे। बिल्कुल वैसा दृष्य जैसा ग्रामदेवता का गांव के किनारे होता है। ]




[1] सोनतलाई को मैने अमृतलाल वेगड़ जी के तीनो ट्रेवलॉग्स - सौन्दर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे-तीरे नर्मदा - में तलाशा। मिला नहीं। गुजरे होंगे वे यहां से? उनकी पुस्तकों में जबलपुर से होशंगाबाद और होशंगाबाद से ओँकारेश्वर/बड़वाह की यात्रा का खण्ड खण्ड मैने तलाशा। वैसे भी वेगड़ जी तवा के नजदीक कम नर्मदा के किनारे किनारे अधिक चले होंगे। सतपुड़ा के अंचल में तवा की झील के आस पास जाने की बात तो उनकी पुस्तकों में है नहीं। :-(

खैर वेगड़ जी न सही, मैने तो देखा सोनतलाई। छानने पर पता चलता है कि यह इटारसी से लगभग 20-25 किलोमीटर पर है। आप भी देखें।

32 comments:

काजल कुमार said...

ऊपर वाला अकेला नदी का चित्र वास्तव में ही बहुत मनमोहक है

राहुल सिंह said...

मनोरम ब्‍लागरी सफर की सफरी पोस्‍ट.

प्रवीण पाण्डेय said...

नदी और खेत का चित्र मन मोह गया, आप विश्रान्त भाव से प्रकृति निहार सकें, इसीलिये ब्लाक भी बढ़ गया होगा...यात्रा का विशुद्ध सुख यही तो है...

मनोज कुमार said...

इन कुक्कुरों कि कुक्कुरई हमेशा दिलचस्प ही होता है, जिसमें छोटा वाला दुम दबा कर भागता है अय्र बड़ा वाला दुम उठाकर शान-पट्टी मारता है।
नदियों और प्रकृति के वर्णन में एक रोचकता है, आपकी शैली की तरह।

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

इतने सुन्दर चित्रों के साथ इतना सुन्दर निबन्ध है।

भारतीय नागरिक said...

अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य का रसपान करने और कराने के लिए आपका अभिनन्दन करता हूँ, श्रीमन...

Chandra Mouleshwer said...

वेगड जी को न हम जानते हैं न पढ़ा है पर आप क माध्यम से सोनतलाई के दर्शन करके कृतार्थ हुए- आभार॥

पा.ना. सुब्रमणियन said...

सफ़र में प्राकितिक सौन्दर्य को निहारते रहना बड़ी सुखद होती ही है. समझ में नहीं आया, आप अपने एसी सेलून से तस्वीएँ कैसे उतार लेते हैं. सोनतलाई में तो खैर गाडी रुकी थी.

Gyandutt Pandey said...

सैलून के 60प्रतिशत हिस्से में खिड़कियां खुलने वाली होती हैं, जिनको खोल बिना शीशे के सीधे देखा जा सकता है। पर यह अवश्य है कि चलती गाड़ी में चित्र लेने के लिये कुछ एण्टीसिपेशन, कुछ अभ्यास होना चाहिये।

सलिल वर्मा said...

जिस स्थान का वर्णन/उल्लेख/परिचय आपको वेगड़ जी की तीन-तीन पुस्तकों में नहीं मिला, उस मनोरम नगरी/ग्राम के दर्शन हमने आपके की-बोर्ड (लैपटॉप) और शटर (कैमरे) के द्वारा कर लिए. चित्र इतने सजीव हैं कि उस नदी की शीतलता और हरे-भरे वृक्षों की सुंदरता ने मन मोह लिया.
‘सोनलताई’ नाम भी आकर्षित करता है. ताई का अर्थ मराठी भाषा में बड़ी बहन होता है. पता नहीं इस नाम के पीछे भी कौन सी किम्वदंती प्रचलित है उस अंचल में. पोस्ट चूँकि ऑन द स्पॉट लिखी गई है इसलिए बिलकुल आँखों देखा हाल सा लगती है!

Gyandutt Pandey said...

‘सोनतलाई’ में अभिप्राय शायद तलाई या तलैय्या/तालाब का है। सोने का तालाब। जगह का नाम रखने वाले में सौन्दर्यबोध जबरदस्त होगा। जगह है ही सुन्दर।

Ashish said...

आपकी तस्वीरे बहुत अच्छी होती है, आप थोड़े अच्छे वाले कैमरे(कम से कम ५ मेगा पिक्सेल) वाला मोबाइल ले लीजीये, जिससे उन्हें प्रिंट कर प्रदर्शनी में भेजा जा सके.

सलिल वर्मा said...

इल्यूज़न के कारन मैं "सोनतलाई" को "सोनलताई" पढ़ रहा था.. अभी भूल का पता चला!!

Gyandutt Pandey said...

अगर मुझे अवसर मिला तो स्टेशन का नाम “सोनतलाई” की बजाय “सोन तलाई” पेण्ट करवाऊंगा; जिससे भ्रम की सम्भावना न बचे!

Gyandutt Pandey said...

पत्नीजी को आपका सुझाव बताता हूं। आपकी प्रशंसा उन्हे पसन्द आयेगी, पर सुझाव कतई नहीं! :-)

sanjay said...

लाईन शाह वाले फ़कीर की मदद ले देखिये(चुनाव परिणाम तक इंतज़ार कर सकते हैं) :)

sanjay said...

चित्र वाकई बहुत खूबसूरत है और नाम भी। इटारसी तक तो गये हैं, दोबारा जाना हुआ तो ये खूबसूरत जगह ध्यान जरूर खींचेगी।

Gyandutt Pandey said...

हा हा! मेरी बिटिया के पास उसका पुराना मोबाइल बड़ी स्क्रीन/कैमरे का है। शायद वह मुझे दे दे! :-)
[उम्र बढ़ने पर यही होता है। जवान नये गैजेट खरीदते हैं, हम लोग उतरन से काम चलाते हैं! ]

समीर लाल "टिप्पणीकार" said...

मनमोहक तस्वीरें...

nivedita srivastav said...

अच्छी प्रस्तुती , अच्छे चित्रों के साथ .......

ashish rai said...

नदी तो तवा ही है , बेतवा हो नहीं सकती . फोटू बहुते चौचक है .

Gyandutt Pandey said...

बेतवा वहां नहीं है। तवा कुछ दूरी बाद नर्मदा में मिल जाती हैं होशंगाबाद (?) के आस पास। इसलिये कुछ शंका मन में थी।

अरविन्द मिश्र said...

समग्र मनोरम!

chaturbhuj bharadwaj said...

nadi ko aapne theek pahchana tawa hi hai. station ka naam hai baagra tawa.

Suman Kapoor said...

तस्वीरों से आँखों को तरलता का भान हुआ ..मनो ..सच में प्रकृति के संग चल रहे हो हम ..

Gyandutt Pandey said...

अच्छा लगता है कोई काव्यमय टिप्पणी मिले! धन्यवाद सुमन जी।

दिनेशराय द्विवेदी said...

एक छोटा कुत्ता जबरी बड़े कुकुर से भिड़ा। जब बड़के ने झिंझोड़ दिया तो किंकियाया और दुम दबा कर एक ओर चला गया। बड़े वाले ने पीछा नहीं किया। सिर्फ विजय स्वरूप अपनी दुम ऊर्ध्वाकार ऊपर रखी, तब तक, जब तक छोटा वाला ओझल नहीं हो गया।

आप के
अंदर का लेखक उक्त पंक्तियों में अभिव्यक्त हो रहा है। यह दृश्य चौराहे पर गुंडे द्वारा एक गरीब की पिटाई की याद दिलाती है, जिस में कोई हस्तक्षेप नहीं करता सब कोई दर्शक बने रहते हैं। पेड़-पौधों, चिड़ियाओँ
और दूसरे जानवरों की भांति।

विष्‍णु बैरागी said...

मुझे कहने दीजिए कि इस बार इबारत पर चित्र भारी पड रहे हैं। इतने भारी कि ऑंखें झपकने से इंकार कर रही हैं।

Gyandutt Pandey said...

धन्यवाद।

अनूप शुक्ल said...

नदी का फोटो बड़ा चकाचक आया है! सोनतलाई नाम अभी तक तो नहीं दिखा! मिलेगा तो बतायेंगे! वैसे वेगड़जी से भी पूछा था उस दिन लेकिन उनको भी याद नहीं आया! :)

Gyandutt Pandey said...

वेगड़ जी ने नर्मदा परिक्रमा की है। पहले मैं नदी को नर्मदा से कनफ्यूज़ कर रहा था। तवा तो नर्मदा की ट्रिब्यूटरी है। अत: यहां से उनका गुजरना नहीं हुआ होगा।

मुकुल said...

beshak
ek gazab aalekh. par sonatalai Road Side Station hai.