Tuesday, February 7, 2012

छ लोगों के ब्लॉगिंग (और उससे कुछ इतर भी) विचार

कल शाम हम छ लोग मिले बेंगळुरू में। तीन दम्पति। प्रवीण पाण्डेय और उनकी पत्नी श्रद्धा ने हमें रात्रि भोजन पर आमंत्रित किया था। हम यानि श्रीमती आशा मिश्र और उनके पति श्री देवेन्द्र दत्त मिश्र तथा मेरी पत्नीजी और मैं।

[caption id="attachment_5223" align="aligncenter" width="584" caption="बांये से - प्रवीण, देवेन्द्र और आशा"][/caption]

प्रवीण पाण्डेय का सफल ब्लॉग है न दैन्यम न पलायनम। देवेन्द्र दत्त मिश्र का भी संस्कृतनिष्ठ नाम वाला ब्लॉग है - शिवमेवम् सकलम् जगत। श्रद्धा पाण्डेय और आशा मिश्र फेसबुक पर सक्रिय हैं। मेरी पत्नीजी (रीता पाण्डेय) की मेरे ब्लॉग पर सक्रिय भागीदारी रही ही है। इस आधार पर हम सभी इण्टरनेट पर हिन्दी भाषियों के क्रियाकलाप पर चर्चा में सक्षम थे।

सभी यह मानते थे कि हिन्दी में और हिन्दी भाषियों की सोशल मीडिया में सक्रियता बढ़ी है। फेसबुक पर यह छोटी छोटी बातों और चित्रों को शेयर करने के स्तर पर है और ब्लॉग में उससे ज्यादा गहरे उतरने वाली है।

[caption id="attachment_5225" align="aligncenter" width="584" caption="देवेन्द्र और आशा मिश्र (सम्भवत: सिंगापुर में) चित्र आशा मिश्र के फेसबुक से डाउनलोड किया गया।"][/caption]

देवेन्द्र दत्त मिश्र बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल विद्युत अभियंता हैं। वे एक घण्टा आने जाने में अपने कम्यूटिंग के समय में अपनी ब्लॉग-पोस्ट लिख डालते हैं। चूंकि उन्होने लिखना अभी ताजा ताजा ही प्रारम्भ किया है, उनके पास विचार भी हैं, विविधता भी और उत्साह भी। वे हिन्दी ब्लॉगिंग को ले कर संतुष्ट नजर आते हैं। अपने ब्लॉग पर पूरी मनमौजियत से लिखते भी नजर आते हैं।

आशा मिश्र के फेसबुक प्रोफाइल पन्ने पर पर्याप्त सक्रियता नजर आती है। वहां हिन्दी भाषा की पर्याप्र स्प्रिंकलिंग है। वे उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के उन भागों से जुड़ी हैं, जहां अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता हवा में परागकणों की तरह बिखरी रहती है।

प्रवीण हिन्दी ब्लॉगरी में अर्से से सक्रिय हैं और अन्य लोगों की पोस्टें पढ़ने/प्रतिक्रिया देने में इस समय शायद लाला समीरलाल पर बीस ही पड़ते होंगे (पक्का नहीं कह सकता! :lol: )। प्रवीण ने विचार व्यक्त किया कि बहुत प्रतिभाशाली लोग भी जुड़े हैं हिन्दी ब्लॉगिंग से। लोग विविध विषयों पर लिख रहे हैं और उनका कण्टेण्ट बहुत रिच है।

[caption id="attachment_5224" align="aligncenter" width="584" caption="प्रवीण और श्रद्धा पाण्डेय अपने बच्चों के साथ। चित्र श्रद्धा पाण्डॆय के फेसबुक से डाउनलोड किया गया।"][/caption]

मेरा कहना था कि काफी अर्से से व्यापक तौर पर ब्लॉग्स न पढ़ पाने के कारण अथॉरिटेटिव टिप्पणी तो नहीं कर सकता, पर मुझे यह जरूर लगता है कि हिन्दी ब्लॉगरी में प्रयोगधर्मिता की (पर्याप्त) कमी है। लोग इसे कागज पर लेखन का ऑफशूट मानते हैं। जबकि इस विधा में चित्र, वीडियो, स्माइली, लिंक, टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी की अपार सम्भावनायें हैं, जिनका पर्याप्त प्रयोग ब्लॉगर लोग करते ही नहीं। लिहाजा, जितनी विविधता या जितनी सम्भावना ब्लॉग से निचोड़ी जानी चाहियें, वह अंश मात्र भी पूरी नहीं होती।

हमने श्रद्धा पाण्डेय का वेस्ट मैनेजमेण्ट पर उनके घर-परिवेश में किया जाने वाला (अत्यंत सफल) प्रयोग देखा। उन्होने बहुत उत्साह से वह सब हमें बताया भी। रात हो गयी थी, सो हम पौधों और उपकरणों को सूक्ष्मता से नहीं देख पाये, पर इतना तो समझ ही पाये कि जिस स्तर पर वे यह सब कर रही हैं, उस पर एक नियमित ब्लॉग लिखा जा सकता है, जिसमें हिन्दी भाषी मध्यवर्ग की व्यापक रुचि होगी। ... पर ऐसा ब्लॉग प्रयोग मेरे संज्ञान में नहीं आया। मुझे बताया गया कि श्री अरविन्द मिश्र ने इसपर एक पोस्ट में चर्चा की थी। वह देखने का यत्न करूंगा। पर यह गतिविधि एक नियमित ब्लॉग मांगती है - जिसमें चित्रों और वीडियो का पर्याप्त प्रयोग हो।

तो, ब्लॉगिंग/सोशल मीडिया से जुड़े लोगों की कलम और सोच की ब्रिलियेंस एक तरफ; मुझे जो जरूरत नजर आती है, वह है इसके टूल्स का प्रयोग कर नयी विधायें विकसित करने की। और उस प्रॉसेस में भाषा  के साथ प्रयोग हों/ परिवर्तन हों तो उससे न लजाना चाहिये, न भाषाविदों की चौधराहट की सुननी चाहिये!

43 comments:

राहुल सिंह said...

''धरमपुर भरमपुर भरमपुर धरमपुर
मैंगलोर बैंगलोर बैंगलोर मैंगलोर''
रेल चली.

काजल कुमार said...

रास्ते में ही पोस्ट लिख लेना तो ब्लागिंग से भी बड़ी बात है :)

ललित शर्मा said...

@प्रवीण पाण्डेय जी, प्रतिक्रिया देने में इस समय शायद लाला समीरलाल पर बीस ही पड़ते होंगे (पक्का नहीं कह सकता! )

पक्का कह सकते हैं :)

Gyandutt Pandey said...

हाँ। वहां लोगों को देखा शाम के खाने पर। फिर अपने ठहरने के स्थान पर आ कर उनलोगों का ब्लॉग और फेसबुक खंगाला और जानने के लिये।

बाकी, लिखना वही था, जो मन में था! :lol:

Gyandutt Pandey said...

अरे, आप भी कहेंगे तो समीरलाल जी को अच्छा लगेगा?
(हमारा कहना तो शायद टिप्पणी-डिश में अनिवार्य मिर्च की अधिक मात्रा समझ कर झेल जाते हों!) :lol:

sanjay said...

प्रयोगधर्मिता की कमी की बात सही है लेकिन एक पक्ष ये भी है कि बहुत से ब्लॉगर्स(हमारे जैसे) कम्प्यूटर की औपचारिक शिक्षा नहीं पा सके थे, फ़िर भी देखदाख कर कुछ न कुछ प्रयोग करते ही रहते हैं। सुधार की गुँजायश हमेशा रहती है। एक और बात, एक स्वतंत्र विधा होने के कारण बेशक इसका दुरुपयोग करने वाले भी हैं, लेकिन बहुत से ऐसे ब्लॉगर्स हैं जिनके लिये ये प्लेटफ़ार्म बहुत मुफ़ीद है और बिना इसके शायद हम उनके विचार, अभिव्यकियों से कभी रूबरू नहीं हो पाते।
अच्छा लगता है जब ऐसी आयतमेज वार्ताओं :) में हिन्दी ब्लॉगिंग पर हुये विचार विमर्श के बारे में जानने को मिलता है।

अरविन्द मिश्र said...

विभूतियों और विदुषियों से मिलाना अच्छा रहा मैंने फेसबुक फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी है ....यह अवसर देने के लिए आपका धन्यवाद भी ..प्रवीण जी के व्यक्ति और कृति से जुड़ने का गौरव मिला है ...श्रद्धा जी में सृजन और कल्पनाशीलता की अजस्र संभावनाएं दिखी थीं मुझे...आदरणीय रीता जी से भी मुझे एक बार मिलने का सौभाग्य मिला है ...और याद बनी हुयी है ...श्रीमती आशा मिश्र और श्री देवेन्द्र दत्त मिश्र से मुलाक़ात तो नहीं है मगर प्रवीण जी के ब्लॉग से उनका परिचय हुआ है ....देवेन्द्र जी का ब्लॉग भी कभी कभार देखा है -निश्चय ही वे प्रशस्त व्यक्तित्व और लेखन प्रतिभा के धनी है .....श्रीमती आशा मिश्र अपने जार जवार की हैं और यह लगता भी है -निश्चय ही यह एक यादगार सम्मिलन रहा है -
आप का लेखन प्रोफेसनलिज्म की एक ऊंचाई पा गया है और हमें चुनौती देता है .......

Gyandutt Pandey said...

आप अपनी ऊंचाई में मस्त रहें। आपको चुनौती देने का कोई इरादा न था, न है, न होगा! :lol:

Gyandutt Pandey said...

अब यह तो है कि भाषा को अपनी चेरी मानने वाले पत्रकार-साहित्यकार वर्ग की घिसीपिटी "प्रयोगधर्मिता" से मुक्त अभिव्यक्ति की अपार सम्भावनायें खुली हैं और प्रयोग करने वाले इन वर्गों से उन्नीस कदापि नहीं हैं!

Shiv Kumar Mishra said...

अच्छा लगा पोस्ट पढ़कर.
आदरणीय अरविन्द जी की यही विशेषता है कि वे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजने में देर नहीं लगाते. यह बात ब्लॉग परिवार को बढाने में मदद करती है. वैसे मेरा मानना है कि आपका गंगा मैया, जवाहिरलाल, ककडी, बथुआ वगैरह पर लेखन अरविन्द जी को तो जाने दीजिये, मुझे भी चुनौती नहीं दे सकते.

प्राइमरी के मास्साब said...

चित्र, वीडियो, स्माइली, लिंक, टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी की अपार सम्भावनायें हैं, जिनका पर्याप्त प्रयोग ब्लॉगर लोग करते ही नहीं।

फॉर एक्जाम्पल?

Gyandutt Pandey said...

हां, दुर्योधन, रतिराम, बापी दास आदि को चिंतन में लगाना चाहिये हिन्दी ब्लॉगरी की ऊंचाइयों को चिन्हित करने में और जवाहिरलाल उनकी बैठकी में अलाव जलाने का काम करेगा। :lol:

Gyandutt Pandey said...

आप तो नेट दायें रहते हैं, मुझसे पूछते हैं! :-)
Hindi blogs are quite insipid blogs!

प्राइमरी के मास्साब said...

quite insipid?
ई प्राणतत्व कैसे मिले?
ब्लॉग बलवान कैसे बने?

वैसे नेट बाएं वाले आब्जर्वेशन के साथ कैलकुलेशन भी कर सकते हैं :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का कहना सही है कि ब्लागर चित्र, वीडियो, स्माइली, लिंक, टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी का पर्याप्त प्रयोग नहीं करते। करना चाहिए।

Gyandutt Pandey said...

और वह करने पर यह रुदन भी कम हो जायेगा कि उन्हे कोई पढ़ता नहीं, कोई टिप्पणी नहीं करता!

प्रवीण पाण्डेय said...

हम तो अभी भी खुदाई में लगे हैं, कुछ न कुछ और रत्न तो मिलेंगे ही..

sanjaybengani said...

मेल-मुलाकात जिन्दाबाद :)

अनूप शुक्ल said...

आपकी पोस्ट सुबह मोबाइल पर पढ़ी! जबलपुर से कानपुर आते हुये पतारा के पास! :)
आपकी पोस्ट में जब यह वाक्य पढ़ा- अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता हवा में परागकणों की तरह बिखरी रहती है। तो आपकी भाषा के बारे में अपनी कही/लिखी बात याद आई:
आपकी हिंदी सोती सुंदरी की तरह है जिसे सालॊं बाद जगाने के लिये कोई राजकुमार झाड़-झंखाड़ काटते हुये, रास्ता बनाते हुये उसके पास तक पहुंचने का प्रयास कर रहा है।
यह बात हम साढ़े चार साल पहिले कहे थे। अब देखकर अच्छा लगता है कि आपके लेखन में लालित्य बढ़ता जा रहा। पढ़ना अच्छा लगता है! :)

अरविंद मिश्र जी के लेखन को आप कब्भी चुनौती नहीं दे सकते। उनके जैसे विद्वता पूर्ण / गंठीली भाषा लिखना उनके ही बस की बात है! :)

प्रवीण पाण्डेय जी बहुत मेहनत करते टिप्पणी करने में। ढेर सारे ब्लॉग पढ़कर उनसे आनन्द उठाकर टिप्पणी करना उनका ब्लॉगिंग के प्रति लगाव दर्शाता है। यह अलग बात है कि कभी-कभी क्या अक्सर ही उनकी टिप्पणी और ब्लॉगपोस्ट का तारतम्य खोजने में बहुत मेहनत लगती है। लेकिन ब्लॉगरों का उत्साह बढ़ाने का काम वे बखूबी करते रहते हैं। समीरलाल जी आजकल व्यस्त टाइप हो गये हैं। इसलिये उनका और प्रवीण जी की तुलना क्या करना!

आप गंगा किनारे चूंकि एक निश्चित जगह के आसपास घूमते रहते हैं इसलिये आपको ले-देकर जवाहर आदि ही मिलते हैं। अभी मैंने अमृतलाल बेगड़ जी की नर्मदा परिक्रमा करने के बाद लिखी किताब पढ़ी । कैसे-कैसे चरित्र हैं। आप सब काम छोड़कर उनकी किताब बांचिये। क्या अद्भुत भाषा और अंदाज है। आप अपनी गंगा किनारे की यात्रा वाला कार्यक्रम करने की फ़िर से सोचिये। मजा आयेगा। उन्होंने नर्मदा की दूसरी परिक्रमा 75 साल की उमर के बाद की। सपत्नीक जैसे आप रीता भाभी के साथ गंगा भ्रमण करते हैं। आज वे 84 साल के हैं और एकदम चुस्त/चैतन्य।

देवेंद्रजी का ब्लॉग देखा ! अच्छा लगा। अब पढ़ा भी जायेगा। आशा जी को फ़्रेंड रिक्वेस्ट भी भेजेंगे लेकिन जरा आराम से! :)

Gyandutt Pandey said...

वेगड़ जी तो मेरे रोल मॉडल हैं। उनका 5-10% भी बन पायें तो...! आप उनसे मिले, आपसे ईर्ष्या है!

अनूप शुक्ल said...

ईर्ष्या न करें! जबलपुर मात्र कुछ घंटे की दूरी पर है। ढेर गाड़ियां चलती हैं इलाहाबाद से जबलपुर के लिये! लिये सैलून चल आयें! खूब मुलाकात कीजिये। आनन्द आयेगा। :)

Arvind K.Pandey said...

आपसे सहमत हूँ पूरी तरीके से ...देखिये कितना ब्लागर बंधू अपने को उन रोगों से अपने को मुक्त रख पाते है जिनसे प्रिंट माध्यम या अन्य माध्यमो के लोग ग्रसित है...आदमी अगर वोही है तो ये समझना मुश्किल है कि कैसे ब्लागिंग को ऊपर रख पायेंगे उन्ही प्रवित्तियो से!!!

-Arvind K.Pandey

http://indowaves.wordpress.com/

induravisinghj said...

ब्लॉगर्स से मुलाकात अच्छी रही,सुखद अनुभूति।

vishvanaathjee said...

हम आ रहे हैं जी, अभी, इसी वक्त, आपसे मिलने।
जी विश्वनाथ
(बेंगळूरु निवासी)

Gyandutt Pandey said...

माध्यम बहुत सशक्त हैं। सोशल मीडिया कई राष्ट्रों में क्रांति का जनक है। यह लोगों की मेधा और क्रियेटिविटी में विस्फोट का भी जनक हो सकता है।

Gyandutt Pandey said...

आप दम्पति, जितना विलक्षण मैने समझा था, उससे अधिक निकले, मिलने पर!
और आप दोनों से मिलने के बाद मेरे मन में भविष्य के प्रति आशावाद बढ़ गया है।
धन्यवाद।

भारतीय नागरिक said...

आपकी पोस्ट पर आने वाली टिप्पणियाँ और भी अधिक आनंद देती हैं.

sanjay said...

एक खुलासा कीजिये सर, विश्वनाथ दंपत्ति के पहुँचने के बाद सम्मिलित प्रतिनिधियों की संख्या आठ हुई या नहीं? इस पोस्ट का पार्ट-टू (बतर्जे धूम-टू) भी बनता है कि नहीं?

Gyandutt Pandey said...

जी, हां। विश्वनाथ दम्पति से मिलने का पोस्ट तो मुझे अपनी लौटानी यात्रा के दौरान लिखना है। और वह वाकई बहुत रोचक है।
लोग जब 60 की उम्र पार कर जायें तो आदर्श रूप में कैसे रहें, व्यवहार करें, वह विश्वनाथ जी से पता चलता है!

विष्‍णु बैरागी said...

यह सच है कि कम्‍प्‍यूटर-ज्ञान के माले में अनेक ('अनेक' के स्‍थान पर 'अधिकांश' लिखने की हिम्‍मत नहीं कर पा रहा हूँ) ब्‍लॉग लेखक 'साक्षर' से अधिक नहीं है। इसलिए भी ब्‍लॉग विधा में तकनीक का वैसा और उतना उपयोग नहीं हो पा रहा है जैसा आपने चाहा है।

कठिनाई यह भी है कि जब भी कोई 'जानकार', तकनीक की जानकारी देता है तो यह मानकर लिखता है मानो पढनेवाले सारे के सारे उसके जितना ही तकनीकी ज्ञान रखते हैं।

मैं मई 2007 से इस क्षेत्र में हूँ किन्‍तु मेरा कम्‍प्‍यूटर ज्ञान अभी भी 'साक्षर स्‍तर' तक नहीं पहुँच पाया है।

अरविन्द मिश्र said...

शिव जी मैं फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार करने में भी देर नहीं करता .....न जाने किस भेष में भगवन ही मिल जायं!

अरविन्द मिश्र said...

अनूप जी ,लाचार हूँ -विद्वता और मूर्खता जन्मजात होती है ..सिम्पली कांट हेल्प इट….आपके कतिपय प्रेक्षण मर्मस्पर्शी बन जाते हैं ,आपकी गहरी दृष्टि का परिचायक बनते हैं और आपके बारे में बार बार पुनर्मूल्यांकन को आमंत्रित करते हैं!

अरविन्द मिश्र said...

आपने भी प्रवीण जी की अन्तः प्रेरणात्मक, सहजबोधी टिप्पणियों पर क्या मजेदार बात कही है ...समीर जी से आगे बढ़ जाना ऐसे ही तो नहीं :)

Gyandutt Pandey said...

आप पते की बात कह रहे हैं, कम्प्यूटर साक्षरता के कोण को तो मैने सोचा नहीं। कई लोगों के साथ वह हैण्डीकैप हो सकता है। पर उत्तरोत्तर ब्लॉगिंग/सोशल मीडिया इतना सुगम होता जा रहा है कि बहुत ज्यादा ज्ञान की आवश्यकता नहीं।

फिर भी यह तो है कि आप जितना गुड़ (प्रयत्न) डालेंगे उतना मीठा होगा!

Chandra Mouleshwer said...

हम आपकी अगली पोस्ट में विश्वनाथजी पर लिखे लेख का इंतेज़ार करेंगे.... क्योंकि हम साठ पार कर चुके हैं :)

Mukut Aggarwal said...

is nayi dunia me main apne aap ko sahaj mahsoos nahi kae paa rahaa hoo.. isliye aap sab se mansik aur atmic samarthan maangata hoo.. kyoki usase mujhme oorja ka jo pravah hoga wo aap se lambe samay tak jude rahne me bahut sahayak hogaaa...
Dhanyawad...aadarniyaa...

Mukut Aggarwal said...

pandey ji main aapki baat kaa samarthan kartaa hoo... beshak ye bahut hi umda jawab hai jitna gud daloge utna hi meetha hoga....

Gyandutt Pandey said...

स्वागत मुकुल जी। आपका मार्ग प्रशस्त हो। शुभकामनायें!

SinghStyleStudio said...

खूब कहा आपने...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मेरे मन मे एक टीस पैदा हो गयी है कि इस आनंद भरी दुनिया में अपने को सक्रिय क्यों नहीं रख पा रहा हूँ? आलस्य को कबतक दोष देता रहूँगा? बहुत सी बातें पढ़ने को छूट गयी हैं और बहुत कुछ लिखने को बाकी रह गया है। फिरभी इधर समय न देना पाना मन को साल रहा है। इन नयी विभूतियों से अबतक न जुड़ पाने का मलाल है।

आपका यह वाक्य पूरी पोस्ट में नगीने की तरह जड़ा हुआ लगा - “वे उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के उन भागों से जुड़ी हैं, जहां अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता हवा में परागकणों की तरह बिखरी रहती है।” एक तो आपकी भाषा में यह चमत्कारिक उभार जैसा लगा और दूसरा कि मैं भी पूर्वांचल की उसी धरती में जन्मा हूँ जहाँ की आप ने इतनी सुन्दर प्रशंसा की।

Sameer Lal Udantashtari wale said...

शायद लाला समीरलाल पर बीस ही पड़ते होंगे - शायद नहीं पक्का !!! :)

Sameer Lal Udantashtari wale said...

निष्कर्ष तो बिल्कुल सही निकाला इसा पोस्ट का....

Sameer Lal Udantashtari wale said...

सत्य को भला मैं निरीह प्राणी कैसे झूठलाऊँ ...हा हा :)