Monday, July 23, 2012

ज्ञान धर दुबे

मेरे समधी हैं श्री ज्ञान धर दुबे। मिर्जापुर के पास धनावल गांव है उनका। एक बरसाती नदी पर जलप्रपात बनता है - बिण्ढ़म फॉल। उससे लगभग तीन किलोमीटर पश्चिम-उत्तर में है उनका गांव। उनकी बिटिया बबिता से मेरे लड़के का विवाह हुआ है पिछले महीने की चौबीस तारीख को। विवाह के बाद कल वे पहली बार अपनी बिटिया (और हम सब से) मिलने आये थे हमारे घर शिवकुटी।

[caption id="attachment_5895" align="alignright" width="800"] हमारे घर आये श्री ज्ञानधर दुबे।[/caption]

श्री ज्ञानधर बहुत संकोची जीव हैं। बहुत ही कम बोलते हैं। उनके साथ उनके ताऊ जी के लड़के श्री सतीश साथ थे और अधिक बातचीत वही कर रहे थे। ज्ञानधर किसान हैं और जैसा लगता है, पूरी मेहनत से किसानी करते हैं। उनके पास एक ट्रेक्टर है - नया ही है। मैने पूछा कि उनकी खेती के अतिरिक्त ट्रेक्टर कितना काम करता है? अपना सवाल मुझे सही उत्तर के लिये री-मार्शल भी करना पड़ा। उनका जवाब था कि जितना समय वे अपनी खुद की खेती पर देते हैं, उतना ही ट्रेक्टर प्रबन्धन पर भी लगता है। वे सवेरे नौ बजे से काम पर लग जाते हैं और दोपहर के भोजन के समय एक घण्टा आराम के अलावा सूर्यास्त तक काम पर रहते हैं। यह जरूर है कि किसानी के लिये कई ज्यादा गतिविधि के समय होते हैं, और कई आराम के। यह फसल रोपाई का समय है - कस कर मेहनत करने का समय!

श्री ज्ञानधर मेहनती भी हैं और दूसरो की सहायता करने वाले भी। मुझे याद है कि एक बात, जिसके आधार पर मैने उनके परिवार से सम्बन्ध करने का निर्णय लिया था, वह थी बबिता का यह कहना कि उसके पिताजी रात बिरात भी अपने आस पास वालों की सहायता करने को तत्पर रहते हैं।

मैने ज्ञानधर जी से कहा कि गांव में रहने के अपने आकर्षण हैं। मेरे पिताजी ने टोका - गांव में बीमार होने पर इलाज करा पाना मुश्किल है। इसपर श्री ज्ञानधर का स्वत: स्फूर्त उत्तर था - पर गांव में आदमी बीमार भी कम होता है। कई लोग उनके कहे से सहमत न हों, पर जब मैं अपनी सात दवा की गोलियां सवेरे और तीन शाम को लेने की बात याद करता हूं, तो लगता है कि कहीं न कहीं उनकी बात में सच्चाई है।

उनके गांव में दिन में दो-तीन घण्टा बिजली आती है। घर के पास लगभग ६००-८०० मीटर तक पक्की सड़क नहीं है। किसानी के बाद अनाज रोक कर रखना - तब तक, जब तक दाम अच्छे न मिलें, उनके लिये बहुधा सम्भव नहीं होता। फिर भी, उनकी जीवन शैली मुझे ललचाती नजर आती है। उसमे एक विविधता पूर्ण अन्तर है और अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को कम करने की बाध्यता भी। दोनो में अपनी चुनौती भी है और एक तरह की मोनोटोनी तोड़ने का कम्पल्शन भी।
मुझे याद है कि एक बात, जिसके आधार पर मैने उनके परिवार से सम्बन्ध करने का निर्णय लिया था, वह थी बबिता का यह कहना कि उसके पिताजी रात बिरात भी अपने आस पास वालों की सहायता करने को तत्पर रहते हैं।

मेरे आस पार रेल की पटरियां हैं। उनके पास बिण्ढ़म और टाण्डा फॉल हैं, सिरसी डैम है, उत्तर में गंगा नदी हैं और दक्षिण में शोणभद्र...। मेरे पास सभ्यता की जंजीरें हैं, उनके पास प्रकृति का खजाना...

खैर, मैं मैं रहूंगा और ज्ञानधर ज्ञानधर रहेंगे। ज्ञानदत्त ज्ञानधर नहीं हो सकते। पर ज्ञानदत्त के पास सपने देखने की आजादी है, जो (शायद) जायेगी नहीं...

[caption id="attachment_5897" align="alignright" width="584"] गूगल अर्थ पर बिण्ढ़म फॉल का दृष्य। यह स्थान श्री ज्ञानधर दुबे के गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर है।[/caption]

22 comments:

G Vishwanath said...

नवदंपति को हमारा आशीर्वाद्।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

Dineshrai Dwivedi said...

नवदम्पत्ति को शुभकामनाएँ!
सपने तो ज्ञानधर जी के पास भी हैं। पर शायद आप न देख पाए हों। अब देख पाएँ।

PN Subramanian said...

हमारा भी नव दंपत्ति को आशीर्वाद. ज्ञान धर जी से सपने शेयर कर सकते हैं.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

दोनो समधियों के नाम के आगे के शब्द..दत्त और धर आकर्षित करते हैं। साथ में ज्ञान जुड़ा हो तो यह माना जा सकता है कि दोनो युगों-युगों से संबंधी हैं।

दोनो को एक दूसरे का जीवन आकर्षित करता है लेकिन दोनो अपना जीवन ही जी सकते हैं। अपनी धरती पर, अपने गगन के तले, अपने सपने ही देख सकते हैं।

एक पंक्ति..बबिता का यह कहना कि..दो बार लिखा गया है।

indowaves said...

मुझे अपने गाँव की याद दिलाने के लिए धन्यवाद. इसी क्षेत्र में मेरा गाँव पड़ता है..गाँव के अपने आकर्षण है पर गाँव में मनुष्य के रूप में घूमते अपने अलग ही टाइप के जहरीले विषधर है. इसलिए जड़ी बूटी लेकर ही गाँवों में विचरण करे :-)

-Arvind K.Pandey

http://indowaves.wordpress.com/

दयानिधि वत्स said...

नवदंपति को ढेरों शुभकामनाएँ. एक अच्छे व्यक्ति को सम्बन्धी बनाने पर आपको भी. कितनी सुन्दर जगह है बिण्ढ़म फॉल .

प्रवीण पाण्डेय said...

आप कभी अपने समधियाने जायें तो विण्ढ़म फाल के सौन्दर्य का विस्तृत वर्णन अवश्य कीजियेगा। श्रम को शरीर और मृदुलता को हृदय पर धरने वाले ज्ञानधरजी जैसे ग्राम्यजीवन के दीप बहुत कम बीमार पड़ते हैं।

Gyandutt Pandey said...

इटैलिक्स में तो मूल लिखे को ब्लॉक-कोट्स मेँ रखा भर है!

Gyandutt Pandey said...

हा हा! गांव का मनई शहर वालों के लिये भी ऐसी ही कुछ धारणा रखता होगा! :-)

Atul Prakash Trivedi said...

बारिश का मौसम है और ऐसे में ही विण्ढम और टांडा फाल जैसी जगहों का सौंदर्य देखा जा सकता है , रास्ते से बरकछा के काले गुलाब जामुन लेना मत भूलिएगा

deepak baba said...

यही टीप सोच रहे थे जी,

Gyandutt Pandey said...

बरकछा के गुलाबजामुन तो कल ही लेते आये थे दुबे जी!

manojiofs said...

ज्ञानदत्त ज्ञान धर तो सकते ही हैं, खासकर जब उन्हें आज़ादी है, चाहे सपने देखने की ही हो।

जब हम ग्रैजुएशन के समय मरनासन्न थे, (शहर में), तो हमें गांव ले जाया गया और स्वस्थ हो एक महीने बाद लौटे पुनः शहर (४० केजी के थे जब गए थे, लौटे तो ६० केजी के होकर)।

Kajal Kumar said...

आपके समधी जी से मिल कर अच्छा लगा

अरविन्द मिश्र said...

अपने नाम के अनुरूप अच्छे समधी ढूंढ लिए हैं ....
ज्ञानधर जी से मिलवाने के लिए शुक्रिया

sanjay @ mo sam kaun.....? said...

पंजाब में मैंने देखा कि किसान अलसुबह से लेकर ज्यादा से ज्यादा दोपहर ग्यारह बारह बजे तक खेतों में व्यस्त रहते हैं, खेती के स्टाईल में या शायद तकनीक का अंतर हो सकता है|
ज्ञान धर जी संकोची होने के बावजूद दूसरों की सहायता को हर समय तत्पर रहते हैं, ये दो गुण(यानी डबल क्वालिटी) हो गए|
गुलाब जामुन तो खैर सभीको आकर्षित करते ही होंगे, क्या धनावल वाले और क्या इलाहाबाद वाले, ' बिण्ढ़म फॉल' का आकर्षण धनावल वालों के लिए भी वैसा ही होगा जैसा हम जैसों के लिए है?

indiasmart said...

सच है ग्रामीण जीवन की चुनौतियाँ और आकर्षण दोनों ही नागर जीवन से भिन्न हैं। लेकिन यह सच है कि अपने ही ग्रामीण क्षेत्र के नियोजन का अधिकार उनके पास कम और नज़दीकी नगर के पास अधिक होता है, लिहाज़ा वे पिछड़ते हैं। अरविन्द पाण्डेय जी की बूटी वाली बात भी (कम से कम उत्तर प्रदेश के) गाँवों के बारे में काफ़ी हद तक सही लगती है। बचपन में मैं कभी गाँव में ही बसने की बात करता था तो मेरे एक परनानाजी यह समझाकर मना करते थे कि गाँव में रहकर सज्जन स्वभाव बरकरार रखना अधिक कठिन है।

indiasmart said...

काला जाम! :)

Gyandutt Pandey said...

काला जाम की खोल कड़ी होती है। यह बहुत ही मुलायम होता है।

अर्शिया अली said...

ज्ञानधर जी से मिलकर अच्‍छा लगा। आभार।

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सतीश चंद्र सत्यार्थी said...

गाँव के जीवन के अपने सुख और अपनी चुनौतियां हैं...
वैसे ही शहरी जीवन के भी...

विष्‍णु बैरागी said...

शारीरिक श्रम, खेती-किसाीन की पहली अनिवार्यता होता है। सस्‍वस्‍थ रहने की यह सबसे कारगर कुंजी है।