Thursday, January 19, 2012

ममफोर्डगंज में पीपल का पेड़ और हाथी

यहाँ ममफोर्डगंज में पीपल के पेड़ के नीचे एक हाथी रहता था। चुनाव की घोषणा होने के बाद उसे नहीं देखा मैने। सोचा, शायद बहुजन समाज पार्टी के प्रचार में लग गया होगा।

[caption id="attachment_5057" align="aligncenter" width="584" caption="ममफोर्डगंज, इलाहाबाद में वह स्थान जहां हाथी रहता था, पीपल के पेड़ तले। बहुत दिनों से वह नहीं था यहां।"][/caption]

अन्यथा दफ्तर जाते हुये उसे पीपल के पेड़ के नीचे देखा करता था। एक पैर लोहे के जंजीर से बंधा रहता था। कभी कभी उसका मेक अप किया मिलता था और कभी सादी अवस्था में। एक दो बार उसे सड़क पर चलते देखा था।

पेड़ के नीचे वह पीपल या किसी अन्य पेड़ के पत्ते खाया करता था।

बहुत दिनों से मैं उस हाथी को मिस कर रहा था।

अचानक आज सवेरे मुझे दूर से ही दिखा कि हाथी अपने स्थान पर वापस आ गया है। मोबाइल बड़े मौके पर निकल आया और चलते वाहन से एक तस्वीर ले पाया मैं उसकी। एक दिन पहले ही उस स्थान का चित्र चलते वाहन से लिया था, जब वह नहीं था!

[caption id="attachment_5058" align="aligncenter" width="584" caption="आज सवेरे उस हाथी को कई सप्ताह बाद मैने फिर नियत जगह पर देखा। उसके रखवाले-महावत भी वहां थे। प्रसन्नता की बात है न?!"][/caption]

बहुत अच्छा लगा ममफोर्डगंज में उस हाथी को अपने स्थान पर वापस देख कर। उसके रखवाले-महावत भी पास में बैठे दिखे। हाथी अपने कान फड़फड़ा रहा था -
हथिया रे हथिया तोर बड़े बड़े कान। (ओनसे) तोर माई पछोरई नौ मन धान। (हाथी रे हाथी, तेरे बड़े बड़े कान हैं। उन्हे सूप की तरह प्रयोग करते हुये तेरी मां उससे नौ मन धान साफ करती है!) 

25 comments:

प्राइमरी के मास्साब said...

यह तो शायद ममफोर्डगंज चौराहे से जगराम चौराहे के बीच वाला चौराहा है ...क्या ?
क्योंकि यहाँ हमने सन ९३-९७ के बीच हाथी देखे थे !



क्या यह फोटो चलते चलते खींचे हैं ...अच्छे है .....ब्लर भी नहीं !

kirtish said...

हाथी लौट आया हमारी भी चिंता दूर हुई. ...यूपी में चुनाव का टाइम है, ऐसे में हाथी जैसे जीव के साथ राजनैतिक/ संवैधानिक/ दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है. :)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

हाथी की फोटू खींच पाने के लिए आपको बधाई।

भारतीय नागरिक said...

चुनाव आयोग की नजर नहीं पड़ी अब तक!

आशीष श्रीवास्तव said...

"हथिया रे हथिया तोर बड़े बड़े कान। (ओनसे) तोर माई पछोरई नौ मन धान। "

ये छत्तीसगढी़ मे ही है या किसी और बोली मे ? बचपन मे ननीहाल मे कुछ ऐसा ही सुना हुआ याद आ रहा है! :-D

प्रवीण पाण्डेय said...

आपकी इस पोस्ट को कपड़ा उढ़ाने का फरमान आने पर क्या उपाय कीजियेगा...

Gyandutt Pandey said...

यह तो अवधी है। मेरे स्थान की भाषा। निश्चय ही छत्तीसगढ़ी में भी ऐसा कुछ होगा जरूर। हाथी के कान देख ऐसा ही बोलने का मन करता है सबका!

Gyandutt Pandey said...

अगर चुनाव आयोग ढंकने को कहे तो मैं गौरव महसूस करूंगा! :-)
अन्यथा मैं अपनी पोस्ट को इतना बड़ा नहीं मानता कि वह लेवल प्लेइंग फील्ड को डैमेज कर सके।

Gyandutt Pandey said...

आपको बधाई देने के लिये धन्यवाद।

Gyandutt Pandey said...

हां, मुझे भी व्यग्रता थी! :-)

Gyandutt Pandey said...

हां यह वही जगह है। मैं भी दशकों से वहां हाथी देखता आया हूं।
गंगाजी के अलावा बाकी जगह के फोटो मेरे द्वारा सामान्यत चलते वाहन से लिये जाते हैं, सो आदत पड़ गयी है मोबाइल साधने की!

Neeraj said...

जब से बहन जी की पार्टी ने उसे अपना चुनाव चिन्ह बनाया है पूरा हाथी समाज दुखी है दरअसल वो अपने आप को स्वर्ण समझ रहे थे और बन गए दलित...हाथी सोचते हैं हमारी छवि बिगड़ी गयी है...हम इंसान का बोझा ढोने या सूंड उठा कर सलाम करने वाले नहीं हैं हम तो अलमस्त प्राणी हैं जिसके रास्ते में जो आता है उसे कुचल डालते हैं...बहुत नाइंसाफी की है बहन जी ने हाथियों के साथ... वो अपना निशान बकरी क्यूँ नहीं बना लेती...अब हाथियों के इस प्रश्न का जवाब कौन देगा? :-)

काजल कुमार said...

हाथी तो आज की पोस्ट का हीरो हो गया :)

अनूप शुक्ल said...

सधा हुआ फोटो! सधी हुई पोस्ट!

दीपक बाबा said...

गुलाबी रंग की साडी से इसको भी लपेटा क्यों नहीं गया.... :) आपकी इस पोस्ट के लिंक को चुनाव आयोग को प्रेषित करना चाहिए ..:)

Chandra Mouleshwer said...

अब देखना यह है कि इस पर भी पर्दा डाला जाता है या नहीं :)

पा.ना. सुब्रमणियन said...

फोटो तो बेहतरीन है जब की मोबाईल से खींची गयी है. मैं चिंतित हूँ उस गवु को लेकर जो पीछे चर रही है. शायद उसे आदत पड़ गयी होगी.

Gyandutt Pandey said...

इस जगह पर कई बार मैं कुछ भैंसों को बंधा पाता हूं। मेरे ख्याल में उनमें कोई क्लैश ऑफ इण्टरेस्ट नहीं है!

विष्‍णु बैरागी said...

सब अपनी जगह ही ठीक लगते हैं। हाथी भी। शुक्र है, आप खालीपन देखने से मुक्‍त हुए।

मेघराज रोहलण 'मुंशी' said...

सबसे पहले तो दाद देता हूँ आपके हुनर की, जो आप चलते वाहन से भी साफ-सुथरी फोटो खींच लेते हैं और वह भी सही कोण से। यह आसान काम तो नहीं है!

मुझे लगा कि आपने कोई हाथी मोल लिया है, किन्तु पोस्ट पढ़ी तो कुछ और ही निकलकर सामने आया। फिर भी बङा खुशकिस्मत रहा कि चुनाव आयोग की नज़र पङने से पहले ही मैं यहाँ पहुँच गया, वरना इतनी सुन्दर पोस्ट को पढ़ने से महरूम रह जाता।

sanjay said...

पिछले चुनाव तक तो हाथी नहीं गणेश था, देखिये इस चुनाव के बाद क्या होता है।

अरविन्द मिश्र said...

ममफोर्डगंज के हाथी को लेकर अपने इलाहबादी जमानें में बड़े कानूनी फसाद हुए थे....मगर अब हाते में भी हाथी यूपी में तो कम से कम क़ानून से परे हैं ....जब तक सूप का सूपड़ा साफ़ न हो जाए!

समीर लाल said...

चलो, चैन मिला...हाथी वापस आ गया.....बाँध दिजिये अब..वरना फिर लखनऊ पहुँचा तो बहुते उत्पात मचायेगा.

Gyandutt Pandey said...

हाथी न पंहुचे तो साइकल पंहुचेगी। वह घण्टी बजा बजा कर कान खा जायेगी! :-)

jpbansal2001 said...

हाथी की बड़ी सोच है हमे , आपका हाथी जिंदा वापस आ गया , नही तो क्या पता कल बुत के ही दर्शन कर पाते , फिर भी बुत तो बन कर ही रहेगा , क्यों की उनकी दिलचस्पी जिंदा चीज़ों की बूतों मे है ,और एक महाशय तो कह रहे थे , यह मुआ नोटों की गडीयाँ भी खा जाता है , अब उनको क्या पता ,भई साहकारी प्राणी है किसी का खून थोड़े ही न पिएगा, और भाई ऐसी हवा चली की हाथियों का भी धर्म परिवर्तन करवा दिया गया , सबको मुस्लिम बना कर बुर्क़ा पहना दिया गया , बड़े अफ़सोस की बात है सारी दुनिया के हाथ एक हाथी के पीछे ही क्यों पड़े हैं ? इस शान की सवारी को कुत्ता बना दिया , जो मर्ज़ी बोलता है , ज़रा भोंक के तो दिखाओ, मुझे तो लगता है आपका हाथी राजनीति की दल दल मे बुरी तरह फँस चुका है , सुंड समेत ज़मीन मे धँस चुका है , बस कुच्छ बुलबुले से उठते नज़र आ रहे हैं , ताजुब नही है कल यहाँ टाटा का छोटा हाथी (टेंपो) खड़ा होगा , और आपको चिढ़ा रहा होगा की अब खेँचो फोटो , संसकृति बदल रही है , प्रकर्ती बदल रही है , जानवरो की जगह तेज़ी से मशीन ले रही हैं , क्यों की इंसान मशीन बन गया है
स धन्यवाद
आपका सुभेर्थि