Friday, January 27, 2012

कन्दमूल-फल, चिलम और गांजा

वह लड़का बारह-तेरह साल का रहा होगा। एक जैकेट और रफू की गई जींस का पैण्ट पहने था। माघ मेला क्षेत्र में संगम के पास सड़क के किनारे अखबार बिछा कर बैठा था। खुद के बैठने के लिये अखबार पर अपना गमछा बिछाये था।

वह कन्दमूल फल बेच रहा था। सफेद रंग की विशालकय जड़ का भाग सामने रखे था और पांच रुपये में तीन पीस दे रहा था। बहुत ग्राहक नहीं थे, या मेरे सिवाय कोई ग्राहक नहीं था।

[caption id="attachment_5178" align="aligncenter" width="448" caption="माघ मेला क्षेत्र में कन्दमूल फल बेचता लड़का"][/caption]

मैने कौतूहल से पूछा - क्या है यह?

कन्दमूल फल। उसके अन्दाज से यह लगता था कि मुझे रामायण की समझ होनी चाहिये और जानना चाहिये कि राम-सीता-लक्षमण यह मूल खाते रहे होंगे। कौतूहल के वशीभूत मैने पांच रुपये में तीन पतले पतले टुकड़े - मानो ब्रिटानिया के चीज-स्लाइस हों, खरीद लिये। पूछा - और क्या बेच रहे हो?

उसके सामने दो तीन और सामान रखे थे। छोटी छोटी खूबसूरत चिलम थीं, पीतल के लोटे थे और दो कटोरियों में कुछ पत्थर जैसी चीज।

वह बोला - चिलम है। फिर खुद ही स्पष्ट करता बोला - वह जिससे गांजा पीते हैं

गांजा? तुम्हारे पास है?

लड़का बोला - हां। फिर शायद उसने मुझे तौला - मैं पर्याप्त गंजेड़ी नहीं लगता था। शायद उसे लगा कि मैं इस विधा का सही ग्राहक नहीं हूं। लपेटते हुये बोला - गांजा नहीं, उसको पीने वाली चिलम है मेरे पास

मुझे समझ में आया कि सड़क के किनारे कन्दमूल फल ले कर बैठा बालक फसाड (मुखौटा) है गांजा बेचने के तंत्र का। पूरे सीनेरियो में कोई आपत्तिजनक नहीं लगेगा। पर पर्दे के पीछे बैठे गांजा-ऑपरेटर अपना काम करते होंगे।

मुझे जेम्स हेडली चेज़ या शरलक होम्स का कीड़ा नहीं काटे था। काटे होता तो चिलम खरीदने का उपक्रम कर उस लड़के से बात आगे बढ़ाता। वैसे भी मेला क्षेत्र में टहलने के ध्येय से गया था, गांजा व्यवसाय पर शोध करने नहीं! सो वहां से चल दिया। कन्दमूल फल की स्लाइसों की हल्की मिठास का स्वाद लेते हुये।

पर मुझे इतना समझ में आ गया था कि गांजा बेचना हो फुटकर में, तो कैसे बेचा जाये! :lol:

26 comments:

Chandra Mouleshwer said...

गांजा बेचो या रेल का टिकट... काऊंटर तो चाहिए ही ना :)

आशीष श्रीवास्तव said...

ये कंद मैने भी खाया है, छत्तीसगढ़ मे! आदीवासी लोग इसे रामकंद कहते है, हल्की मिठास लिये हुये अच्छा लगता है।

पा.ना. सुब्रमणियन said...

गांजे के बारे में हमने भी नहीं सोचा. रामकंद के बारे में कुछ पूछ ताछ जरूर कर लेता. क्या उस लड़के के हाथ कोई कपडे या स्पोंज का टुकड़ा था.

Gyandutt Pandey said...

ध्यान नहीं दिया। पर कुछ अजीब नहीं लग रहा था। पर सामने कटोरी में जाने क्या रखे था।
बच्चा सरल सा था और हंसमुख भी।

दीपक बाबा said...

इसमें कुछ भी अजीब नहीं है... दुनिया में सब कुछ है... भांग - धतुरा से ले कर चरस हफीम तक है... चोईस आपकी... क्योंकि इस्तेमाल आपने करना है.. बाकि ये सब पुरातन विद्या है. आपको तो सब मालूम होना चाहिए क्योंकि आप गंगामाई की गोद में हैं... और सही बतायूं तो ये कंद मूल मैंने भी खाया है; और तो और इस गांजे का दम भी लगाया है ........

बोल शंकर भगवान की जय....

ANIL KUMAR (@AnilAarush) said...

कंदमूल फल वाकई स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है | पता नहीं गांजा का इतना व्यापार, अपने गाँव में ऐसे ही बारी झारी में उगा रहता था | कुछ चाचा लोग तो सेवन भी करते थे इसका |

काजल कुमार said...

मैंने कन्दमूल फल कभी नहीं खाया. याद रखूंगा, अब जब भी मौक़ा मिले खाउंगा. जहां तक बात गांजे की है, दिल्ली में पापड़ बेचने वाले आमतौर से भांग के पापड़ भी रखते हैं ठीक वैसे ही जैसे चिलम के साथ-साथ गांजा. बात उसकी भी ठीक है कि कोई खाली चिलम लेकर उसका करेगा भी क्या, ट्यूब के बिना टायर भी कहां बिकता है :)

प्रवीण पाण्डेय said...

केवल गाँजा बेचेगा तो पकड़ा जायेगा या पुलिस वाले को अधिक देना पड़ेगा, कन्दमूलफल खाकर धार्मिकता को चोंगा ओढ़ लिया है छोटू ने...

दिनेशराय द्विवेदी said...

वैसे गांजा भी न होगा उस के पास। वह कहीं और दूसरे के पास भेज देता और शायद दूसरा तीसरे के पास। आप तो तीन से ही धाप कर मुड़ जाते पर गंजेड़ी शायद चौथे और पाँचवें तक पहुँच कर गांजा प्राप्त कर ही लेता।

भारतीय नागरिक said...

बच ही गए आप. आजकल मुफ्त की स्कीमें बहुत चल रही हैं. कहीं कन्दमूल के साथ चिलम और चिलम के साथ गाँजा मुफ्त मिल जाता तो..
:D

Gyandutt Pandey said...

ये तो है! जो आसानी से न धापे, सो परमानन्द पाये।

साधाना का मूल ही है यह! :-)

Gyandutt Pandey said...

वाह! ट्यूब के बिना टायर भी कहां बिकता है :-)

राहुल सिंह said...

पुराना प्रसिद्ध तरीका है- जेब से चिलम गिरा दें, गंजेड़ी भाई टकरा जाएंगे और यह भी कि ठेकों के आसपास की दुकानों पर लिखा होता है 'यहां शराब पीना सख्‍त मना है' यह मनाही जरूरतमंद समझ लेता है.

Abhishek Ojha said...

" मैं पर्याप्त गंजेड़ी नहीं लगता था" कितने प्रतिशत लगते हैं ? :)

अनूप शुक्ल said...

ट्यूबलेस टायर आते हैं जी!
रामकंद तो हम भी खाये हैं।
केवल अनुमान के आधार पर गांजा पुराण !
वैसे यह पहली पोस्ट है जिसमें आपने यह इच्छा जाहिर नहीं की कि उसी की तरह करने लगें (दुकान लगा लें/पटरी पर बैठ जायें।)
यह भेदभाव ठीक नहीं है जी!

Gyandutt Pandey said...

स्वास्थ्य ठीक न चलने से चेहरा लटक गया है। सो 5-10% तो लग ही सकता हूं। :-)

Gyandutt Pandey said...

कन्दमूल का प्रोडक्शन सेण्टर नहीं मालुम था। लॉजिस्टिक समस्या के चलते यह इच्छा जन्म न ले सकी! :-)

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

आपके ऑब्ज़र्वेशन के बारे में क्या कहें, हम तो उस लड़के की ऑब्ज़र्वेशन क्षमता पर ही सरप्राइज़्ड हैं। न जाने "बचपन बचाओ" आन्दोलन वाले कभी चिलम खरीदने निकलेंगे कि नहीं!

rashmiravija said...

बच्चों से क्या क्या करवाए जा रहे हैं....गांजा बेचते -बेचते हुए ये बच्चा भी गांजा पीने ही लगेगा...और फिर हो गयी उसकी जिंदगी नरक.

Gyandutt Pandey said...

मैं सोचता हूं कि मैं अपने असेसमेण्ट में गलत निकलूं। यह बच्चा गांजा बेचने की चेन में शामिल न हो। :-(

Sunil said...

raja piye ganja, bidi piye chor
ch*%#a kahye tambaku
thukey charo aur.

अरविन्द मिश्र said...

कन्दमूल फल की स्लाइसों की हल्की मिठास का स्वाद लेते हुये।
आश्वस्त हुआ यही जानना चाह रहा था

विष्‍णु बैरागी said...

आपकी नौकरी और पद के कारण जन सामान्‍य में आपका घूमना-फिरना, उठना-बैठना बहुत कम होता होगा। अन्‍यथा, किसम-किसम के (आपत्तिजनक) सामान और उन्‍हें बेचने के तरीके किसम-किसम के।

Personal Concerns said...

All the world's a market and all of us sellers!

("William" Amit :) )

समीर लाल said...

हाय!! यह कंदमूल फल...रामकंद खाये जमाना गुजरा.....यूँ तो गाँजे की चिलम लगाये भी जमाना ही गुजरा है. :)

Gyandutt Pandey said...

चिलम चाहिये तो खरीद कर भिजवाऊं। गांजा तो आप को अपने ओर से जुगाड़ना होगा! :-)